1. हिन्दी समाचार
  2. उत्तर प्रदेश
  3. UP News: ढाई साल से 11 हजार सियासी नियुक्तियां अधर में लटकी, गुटबाजी मुख्य वजह

UP News: ढाई साल से 11 हजार सियासी नियुक्तियां अधर में लटकी, गुटबाजी मुख्य वजह

भाजपा सरकार और संगठन के बीच गुटबाजी के कारण निगम आयोग और बोर्ड में करीब 11 हजार से ज्यादा राजनीतिक नियुक्तियां अधर में लटकी हुई हैं। करीब ढाई साल से सरकार और संगठन के बीच हो रहे बैठक से संगठन के शीर्ष लोग नियुक्तियों को लेकर किसी बिंदु पर पहुंच नहीं पा रहे हैं। ऐसे में इसके ज्यादा चांसेज हैं कि कई बड़ी संस्थाओं में सहयोगी दलों की हिस्सेदारी और नियुक्तियों का मामला दिल्ली के आलाकमान नेताओं के हाथ में जा सकता है।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
Updated:
UP News: ढाई साल से 11 हजार सियासी नियुक्तियां अधर में लटकी, गुटबाजी मुख्य वजह

भाजपा सरकार और संगठन के बीच गुटबाजी के कारण निगम आयोग और बोर्ड में करीब 11 हजार से ज्यादा राजनीतिक नियुक्तियां अधर में लटकी हुई है। करीब ढाई साल से सरकार और संगठन के बीच हो रहे बैठक से संगठन के शीर्ष लोग नियुक्तियों को लेकर किसी बिंदु पर पहुंच नहीं पा रहे हैं। ऐसे में इसके ज्यादा चांसेज हैं कि कई बड़ी संस्थाओं में सहयोगी दलों की हिस्सेदारी और नियुक्तियों का मामला दिल्ली के आलाकमान नेताओं के हाथ में जा सकता है।

यूपी में 25 मार्च 2022 को योगी सरकार दूसरी बार सरकार बनाने में सफल हुए थे। पर, इसके बाद से कार्यकर्ता राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर अपनी आंखे गढ़ाए हुए हैं। भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने इन्हें आश्वासन भी दिया था कि बहुत जल्द अच्छा समय आने वाला है पर हुआ कुछ नहीं। वहीं आयोजनों में नियुक्तियां न होने के खामियाजे को आम जनता को सहना पड़ रहा है।

गुटबाजी नियुक्तियों में देरी की मुख्य वजह

भाजपा के अंदर कई महीनों से चल रही गुटबाजी में जहां एक खेमा सीएम योगी आदित्यनाथ के पक्ष में है तो वहीं दूसरा खेमा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की ओर है। तीसरा खेमा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक का है। चौथा खेमा महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह और RSS से जुड़े लोगों से संपर्क में है।

वहीं पार्टी सूत्रों ने कहा कि सीएम योगी राजनीतिक नियुक्तियों में दखल देना पसंद नहीं करते हैं। संगठन की तरफ से जब पूछा जाता है तो वह अपने नाम देते हैं। पार्टी की ओर से जो प्रस्ताव आता है, उसे मंजूरी दे देते हैं। पर, बाकी को तीन खेमों में अपने-अपने करीबी लोगों को राजनीतिक नियुक्तियों में उपकृत करने की एक होड़ लगी रहती है।

कार्यकर्ताओं की नाराजगी हार की वजह

निगम, आयोग और बोर्ड में नेताओं और कार्यकर्ताओं की नियुक्ति न होने का असर आम चुनाव के आए नतीजों में भी स्पष्ट रूप से दिखा। जानकारों का मानना है कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी और निष्क्रियता का मुख्य कारण उन्हें निगम, आयोग और बोर्ड में पद से वंचित भी रखना है।

भाजपा कार्यकर्ताओं ने आम चुनाव परिणाम की समीक्षा में खुलेआम यह बात सामने रखी। पूर्वांचल के कुछ जिलों में उन्होंने यहां तक कहा कि धनबल और बाहुबल वाले नेताओं को विधान परिषद, राज्यसभा भेजा गया। लेकिन, पार्टी के मूल कैडर की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है।

20 हजार पदों पर हो सकता है समायोजन

सरकार में लगभग 20 हजार से अधिक पदों पर भाजपा और RSS से जुड़े लोगों का समायोजन हो सकता है। इनमें से अभी तक जिला न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक सरकार की तरफ से पैरवी के लिए करीब साढ़े तीन हजार वकील नियुक्त हो चुके हैं। तीन हजार से अधिक कार्यकर्ताओं का सहकारी संस्थाओं में समायोजन किया गया है। लेकिन, अभी भी जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक की बड़ी संस्थाओं में पद विरान पड़े हैं।

कौन हैं दावेदार …

इन नियुक्तियों के दावेदार ऐसा नहीं है कि भाजपा के लोग ही हैं बल्कि भाजपा के सहयोगी भी अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं। भाजपा के एक प्रदेश अधिकारी ने कहा कि सरकार में सहयोगी अपना दल (एस), रालोद, सुभासपा और निषाद पार्टी भी अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं। सर्वाधिक मांग OBC आयोग और अनुसूचित जाति आयोग की है।

दूसरे दलों से आए नेता भी दौड़ में: लोकसभा चुनाव से पहले सपा, बसपा, कांग्रेस के करीब 70 हजार कार्यकर्ताओं, जनप्रतिनिधियों, पदाधिकारियों और पूर्व नौकरशाह को भाजपा में शामिल किया गया। सूत्रों का कहना है कि दूसरे दलों से आए बड़े नेता और नौकरशाह भी अब निगम, आयोग और बोर्ड में जगह चाहते हैं।

अब आगे क्या… दिल्ली दरबार तक जाएंगे नाम

निगम, आयोग, बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियों में सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखना होता है। प्रमुख संस्थाओं में सभी जातियों के लोगों का प्रतिनिधित्व भी तय किया जाता है। यही वजह है कि बड़े आयोग में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के नामों पर सहमति नहीं बन पा रही है। लिहाजा मामला दिल्ली दरबार तक जाएगा। वहां से हरी झंडी मिलने पर ही नियुक्ति की जाएगी।

असर क्या? लंबे समय से नहीं हो रही जनता की सुनवाई

महिला आयोग: अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के पद लंबे समय से खाली होने के कारण महिला उत्पीड़न से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं हो रही है। महिला आयोग की अध्यक्ष और सदस्य जिलों में जाकर भी सुनवाई करते थे, लेकिन वह काम भी बंद है।

अनुसूचित जाति आयोग: अध्यक्ष और सदस्यों के पद खाली होने के कारण दलित उत्पीड़न से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं हो रही है। आयोग में अध्यक्ष का कार्यभार समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण के पास है। लेकिन, उनकी सरकार और भाजपा के कामकाज में व्यस्तता के कारण वह आयोग में इतना समय नहीं दे पा रहे हैं।

पिछड़ा वर्ग आयोग: पिछड़ी जाति के लोगों से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं हो रही है। सूत्रों के मुताबिक आयोग में बड़ी संख्या में शिकायतें और प्रार्थना पत्र लंबित चल रहे हैं।

अफसर संभाल रहे हैं कुर्सी: प्रदेश सरकार के विभिन्न आयोग, बोर्ड और निगम में अध्यक्ष का कार्यभार IAS अफसर संभाल रहे हैं। इनमें अधिकांश संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव या अपर मुख्य सचिव हैं। जानकार मानते हैं कि पिछड़े और दलित वर्ग के लोग, सरकारी विभाग में समस्या का समाधान नहीं होने पर आयोग में जाते हैं। वहां भी वही अफसर अध्यक्ष के रूप में बैठे मिलते हैं, तो उनकी सुनवाई नहीं हो पाती है।

नजरिए का भी फर्क…

जानकार मानते हैं कि आयोग, निगम और बोर्ड में अध्यक्ष पद पर IAS अफसर बैठे हैं। IAS अफसर और नेताओं के सोचने का नजरिया और काम करने के तरीके में अंतर होता है। अफसर हमेशा खुद को सही साबित करने या विभाग के बचाव में काम करते हैं। जबकि राजनीतिक व्यक्ति जनता और सरकार के हित को ध्यान में रखते हुए काम करते हैं। ताकि जनता में उनकी सरकार के प्रति अच्छी धारणा बने, पार्टी का जनाधार बढ़े।

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें गूगल न्यूज़, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...