बरसाना में लड्डू होली, लठामार होली और फाग महोत्सव का 40 दिवसीय आयोजन बसंत पंचमी से शुरू होकर शुक्रवार को भव्य समापन के साथ समाप्त हुआ। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने राधाकृष्ण की लीलाओं का आनंद लिया और मंदिर परिसर जयघोष से गूंज उठा।
“जो जीवैगो सो खेलेगौ…” के साथ हुआ समापन
होली महोत्सव के समापन पर गोस्वामी समाज के लोगों ने समाज गायन किया और “जो जीवैगो सो खेलेगौ, ढप धर दै यार गई अगली बरस की…” के पद का गायन कर धमार का समापन किया।
इस पद में गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भाव समाहित हैं, जिसमें यह संदेश दिया जाता है कि होली की मस्ती और उल्लास को अगली वर्ष तक संजोकर रखा जाए। समाज गायन के साथ ढप, मृदंग, झांझ आदि वाद्य यंत्रों को अगली होली तक के लिए सुरक्षित रख दिया गया।
बसंत पंचमी से शुरू हुआ था महोत्सव
बरसाना की ऐतिहासिक होली का शुभारंभ बसंत पंचमी के दिन लाडली जी मंदिर में ध्वज रूपी डाढ़ा गाड़कर किया जाता है। इसके बाद 40 दिनों तक ब्रज भूमि रंग और भक्ति के रंग में डूबी रहती है। इस दौरान श्रद्धालु राधाकृष्ण की लीलाओं का दर्शन करते हैं और लठामार होली, लड्डू होली समेत विभिन्न होली उत्सवों में भाग लेते हैं।
राधा रानी ने भक्तों पर बरसाई कृपा
महोत्सव के अंतिम दिन, राधा रानी की प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह से निकालकर सफेद छतरी में विराजमान किया गया। इस दौरान भक्तों ने राधाकृष्ण की युगल जोड़ी के दर्शन किए और खुद को धन्य महसूस किया। शाम पांच बजे बृषभान नंदनी के डोला को सेवायतों द्वारा कंधों पर उठाकर संगमरमर की सफेद छतरी में विराजमान किया गया। श्रद्धालुओं ने राधारानी की कृपा प्राप्त करने के लिए भजन-कीर्तन में भाग लिया।
भक्तों की श्रद्धा और उल्लास चरम पर
होली महोत्सव के अंतिम दिन श्रद्धालु राधाकृष्ण के नजदीक से दर्शन करने के लिए उत्सुक दिखे। पूरा मंदिर परिसर राधाकृष्ण के जयघोष से गूंजायमान हो गया। शाम सात बजे लाडली जी के डोले को पुनः मंदिर में ले जाया गया, जहां गोस्वामी समाज की कन्याओं ने आरती उतारी। इस दौरान, भक्तगण श्रद्धा और भक्ति के रंग में सराबोर दिखे।