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Up News: जातिगत जनगणना पर एकजुट हुए अखिलेश यादव और मायावती, बीजेपी के लिए चुनौती

जातिगत जनगणना की मांग को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव की इस मांग का समर्थन किया है। यह राजनीतिक घटनाक्रम भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए एक नई चुनौती साबित हो सकता है।

मायावती ने जातिगत जनगणना का किया समर्थन

बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के संस्थापक कांशीराम की जयंती के अवसर पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जातिगत जनगणना की मांग का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि बहुजन समाज की आबादी 80% से अधिक है और उनके हक को सुनिश्चित करने के लिए जातिगत जनगणना आवश्यक है।

मायावती ने सरकार से आग्रह किया कि संविधान और कानून के तहत बहुजन समाज को उनके अधिकार देने के लिए जातिगत जनगणना जल्द से जल्द कराई जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे को लेकर संसदीय समिति भी चिंतित है और सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

बसपा और सपा की नजदीकियां बढ़ने के संकेत

अखिलेश यादव पहले से ही जातिगत जनगणना की मांग उठाते रहे हैं और इसे लोकसभा चुनाव के दौरान भी प्रमुख मुद्दा बनाया था। मायावती द्वारा इस मांग का समर्थन किए जाने से संकेत मिलता है कि बसपा और सपा के बीच राजनीतिक नजदीकियां बढ़ सकती हैं।

बसपा प्रमुख ने कहा कि राजनीति में जातिवाद और सांप्रदायिकता की बढ़ती प्रवृत्ति समाज को नुकसान पहुंचा रही है। उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और अशिक्षा जैसी समस्याओं को अधिक गंभीर बताते हुए कहा कि इन पर ध्यान देने की जरूरत है।

क्या जातिगत जनगणना से बदलेगा राजनीतिक समीकरण?

जातिगत जनगणना का मुद्दा बहुजन समाज और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं। मायावती के समर्थन के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या आगामी चुनावों में बसपा और सपा एक साथ आ सकती हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि ये दोनों दल एक मंच पर आते हैं, तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। बीजेपी के लिए यह चुनौतीपूर्ण स्थिति हो सकती है, क्योंकि जातिगत जनगणना का मुद्दा सामाजिक न्याय से जुड़ा है और इससे पिछड़े और दलित वर्ग को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।

बीजेपी के लिए नई चुनौती

जातिगत जनगणना को लेकर बसपा और सपा का एकमत होना, बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है। केंद्र सरकार इस मुद्दे पर अब तक स्पष्ट रुख नहीं अपना सकी है, जबकि बिहार में जातिगत जनगणना का सर्वे पूरा हो चुका है। उत्तर प्रदेश में इस मांग के जोर पकड़ने से बीजेपी पर दबाव बढ़ सकता है।

मायावती और अखिलेश यादव की एकजुटता से यह साफ हो गया है कि जातिगत जनगणना आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बनने जा रही है। अब देखना यह होगा कि बीजेपी इस चुनौती का सामना कैसे करती है।

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