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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में सांस्कृतिक विवाद के बीच, यूपी CM योगी आदित्यनाथ ने पीएम मोदी को महाकुंभ में शामिल होने का दिया निमंत्रण

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 को लेकर हाल के दिनों में विवाद काफी बढ़ गया है। इस घटना का केंद्र बना है शंकराचार्य सदानंद सरस्वती का बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि जो लोग "वंदे मातरम" बोलने से परहेज करते हैं, उन्हें महाकुंभ में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

By: Desk Team  RNI News Network
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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में सांस्कृतिक विवाद के बीच, यूपी CM योगी आदित्यनाथ ने पीएम मोदी को महाकुंभ में शामिल होने का दिया निमंत्रण

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 को लेकर हाल के दिनों में विवाद काफी बढ़ गया है। इस घटना का केंद्र बना है शंकराचार्य सदानंद सरस्वती का बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि जो लोग “वंदे मातरम” बोलने से परहेज करते हैं, उन्हें महाकुंभ में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इस पर कई संतों ने शंकराचार्य के विचारों का समर्थन किया है, जिससे ये मुद्दा अब और अधिक चर्चित हो गया है।

शंकराचार्य सदानंद सरस्वती के बयान पर परहेज

शंकराचार्य सदानंद सरस्वती के इस बयान ने कुछ समुदायों में असंतोष को जन्म दिया है, जबकि कुछ धार्मिक नेताओं और अनुयायियों ने इसे सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं की रक्षा के रूप में देखा है। उनके अनुसार, “वंदे मातरम” केवल एक वाक्य नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है।

चंद्रशेखर आजाद के भी एक बयान पर परहेज

दूसरी ओर, सांसद चंद्रशेखर आजाद के महाकुंभ से संबंधित एक बयान ने भी विवाद को हवा दी है। चंद्रशेखर आजाद के कथन में महाकुंभ के प्रबंधन और आयोजन में भेदभाव की आशंका जताई गई थी, जिसने विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस को जन्म दिया है। उन्होंने समुदायों के बीच एकता और समभाव की आगे बढ़ाव के लिए इस तरह के आयोजनों की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर जोर दिया।

इस बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्हें महाकुंभ में शामिल होने का औपचारिक निमंत्रण देने का निर्णय लिया है। यह कदम यह संकेत देता है कि राज्य सरकार महाकुंभ को एक सफल, समावेशी और विवादमुक्त आयोजन बनाने की दिशा में प्रयासरत है।

महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है जो न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि इसका प्रभाव सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से व्यापक होता है। लाखों श्रद्धालु इस पर्व में भाग लेते हैं, और उनके लिए एक सुरक्षित, सुविधा जनक और सांप्रदायिक समरसता वाला वातावरण सुनिश्चित करना सरकार और आयोजन समिति की प्राथमिकता है।

अधिकांश लोगों का मानना है कि इस प्रकार के धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक और सांप्रदायिक विवादों से दूर रखना चाहिए, ताकि यह अपने मूल उद्देश्य – सामाजिक समरसता, धार्मिक प्रगति और सांस्कृतिक धरोहर के प्रसार को सही मायनों में पूरा कर सके। महाकुंभ ऐतिहासिक रूप से एक ऐसा मंच रहा है जहां समाज के विभिन्न वर्गों के लोग एक साथ आकर जुड़ते हैं, और यह समझना महत्वपूर्ण है कि इसे किसी भी प्रकार के विवाद से परे रखा जाए।

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