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SLN LS Election 2024: सुल्तानपुर में सपा का बुरा हाल, 27 दिन में शहर के 25 वार्डों तक भी न पहुंच सके राम भुआल

SLN LS Election 2024: सुल्तानपुर संसदीय सीट(38) से समाजवादी पार्टी अपना खाता खोलने के लिए उत्साहित है। पर उसने जो यहां से निषाद कार्ड खेला है वह सार्थक होता नहीं दिख रहा है। जिसके चलते सुल्तानपुर की आम जनता यह सवाल कर रही है कि आखिर गठबंधन से यहां का उम्मीदवार कौन है। ऐसे में संकेत साफ है कि पार्टी जमीनी स्तर पर उतर कर वोटरों से बात नहीं कतर रही है और हवा में ही चुनाव लड़कर मैदान फतह करने का प्रयास कर रही है।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
Updated:
SLN LS Election 2024: सुल्तानपुर में सपा का बुरा हाल, 27 दिन में शहर के 25 वार्डों तक भी न पहुंच सके राम भुआल

SLN LS Election 2024: सुल्तानपुर संसदीय सीट(38) से समाजवादी पार्टी अपना खाता खोलने के लिए उत्साहित है। पर उसने जो यहां से निषाद कार्ड खेला है वह सार्थक होता नहीं दिख रहा है। जिसके चलते सुल्तानपुर की आम जनता यह सवाल कर रही है कि आखिर गठबंधन से यहां का उम्मीदवार कौन है। ऐसे में संकेत साफ है कि पार्टी जमीनी स्तर पर उतर कर वोटरों से बात नहीं कतर रही है और हवा में ही चुनाव लड़कर मैदान फतह करने का प्रयास कर रही है।

गोरखपुर के राम भुआल मेनका गांधी से मुकाबले के लिए सुल्तानपुर से मैदान में

उल्लेखनीय है कि सीएम योगी के क्षेत्र गोरखपुर से रिप्लेसमेंट टिकट लेकर राम भुआल सपा से सुल्तानपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और इनका सीधा मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार मेनका गांधी से होना है। बता दें कि भुआल को सपा के पूर्व विधायकों और जिलाध्यक्ष की पैरवी पर यहां से प्रत्याशी बनाया गया है। यही कारण है कि यहां के पूर्व विधायकों की आन-बान-सान दांव पर है और सभी अपने क्षेत्र में दम-खम लगाए हुए हैं। पर राम भुआल का हाल ये है कि वे सैर-सपाटे पर आए हों और उनके झोले में स्वयं मतदाता वोट डाल देंगे। माहौल ये है कि शहर हो या गांव हर कैंपेन के लिए जाने पर उनकी गाड़ी का शीशा चढ़ा ही रहता है। वो हॉय हैलो की जगह गाड़ी के अंदर ही रहते हैं और नुक्कड़ सभा में वे अधिकतर मोबाइल पर ही चिपके रहते हैं।

सपा कार्यकर्ता उठा रहे प्रत्याशी की कार्यशैली पर प्रश्न

सत्ताईस दिनों में वो(राम भुआल) कहां गए, क्या कहा, जनता ने मौका दिया तो करेंगे क्या उनको जिले की कितनी जनकारी है कुछ भी पता नहीं। वो इसलिए क्योंकि ना उनके पास मीडिया सेल है, न सोशल मीडिया पर पत्रकारों का कोई सूचना और न ही कोई प्रेस रिलीज। संभवतः उन्हें इस सबकी जरूरत नहीं। उन्होंने संदेह ये पाल रखा है कि जैसे 2014 के चुनाव में मोदी लहर थी।

वैसे गठबंधन की हवा है। हालांकि ऐसा नहीं है, भाजपा के चाणक्य यूपी की एक-एक सीट की मॉनिटरिंग स्वतः कर रहे हैं। ऐसे में उनकी टीम यहां भी गुप्तचरों की तरह काम कर रही है। इस सबके बाद गठबंधन प्रत्याशी किस स्ट्रैटजी के साथ चुनाव लड़ रहे उसे उनकी पार्टी के पदाधिकारी नहीं जान पा रहे। बूथ लेबल पर कार्यकर्ता तो प्रत्याशी की कार्यशैली तक पर सवाल उठा रहे।

अपने नाम पर कम शीर्ष नेताओं के नाम पर मिलेगा गठबंधन प्रत्याशी को वोट

उधर शहर के मतदाताओं में गठबंधन प्रत्याशी की मौजूदगी दर्ज कराने की बात करें तो 17 अप्रैल को रोड शो के बाद आजतक वो दिखे नहीं। वार्ड नंबर 25 के निवासी साजन बताते हैं कि कई लोगों ने उन्हें फोन करके सवाल किया कि गठबंधन से लड़ कौन रहा है। कमोबेश ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिनके मित्र यही सवाल कर रहे हैं। इसलिए ये कहा जा सकता है गठबंधन से आए प्रत्याशी को जो भी वोट मिलते हैं उसमें उसके अपनी मेहनत के 20 % मत होंगे बाकी सारे मत गठबंधन के शीर्ष नेताओं के नाम पर मिल सकते हैं।

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