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ओखला: पक्षी विहार में खत्म होती पक्षियों की प्रजातियां

प्रकृति की गोद में बैठकर इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी जीने का अधिकार है। इसी के साथ इनको संरक्षित और सुरक्षित रखना भी हमरा कर्तव्य है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी मंशा के साथ नोएडा में पक्षी विहार बनाया है, लेकिन जब हमारी टीम पक्षी विहार पहुंची तो इसमें पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां तो दूर एक भी पक्षी नजर नहीं आया।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
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ओखला: पक्षी विहार में खत्म होती पक्षियों की प्रजातियां

प्रकृति की गोद में बैठकर इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी जीने का अधिकार है। इसी के साथ इनको संरक्षित और सुरक्षित रखना भी हमरा कर्तव्य है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी मंशा के साथ नोएडा में पक्षी विहार बनाया है, लेकिन जब हमारी टीम पक्षी विहार पहुंची तो इसमें पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां तो दूर एक भी पक्षी नजर नहीं आया।

 

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार हर प्रजाति के पक्षियों को संरक्षित करना चाहती है। इसके लिए सरकार मोटी रकम भी खर्च कर रही है। लेकिन जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी इस तरफ अपना ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिसकी वजह से पक्षी विहार में पंछी लगातार मरते जा रहे हैं और उनकी प्रजातियां खत्म होती जा रही है।

 

वहीं अधिकारी अपने ऑफिस में खाली बैठकर सरकार का लाखों रुपए बरबाद कर रहे हैं। बता दें कि दिल्ली से सटे नोएडा में ओखला पक्षी विहार बर्ड सेंचुरी बनाई गई हैं। लेकिन इसमें एक भी पक्षी नजर नहीं हैं। जबकि वहां पर लोगों से बर्ड सेंचुरी घूमने के लिए टिकट के नाम पर 30 रुपए से लेकर 1000 रुपए तक वसूले जा रहे हैं। इस पक्षी विहार में सुरक्षा का भी कोई इंतजाम नहीं है। हमारी टीम जब वहां पहुँची थी तो हमें सिर्फ एक कर्मचारी लोगों के टिकट काटता नजर आया।

 

इसके बाद यूपी की बात टीम नोएडा सेक्टर-एक स्थित वन विभाग के दफ्तर पहुंची। जहां वन विभाग के चीफ मेरठ से आकर इसी दफ्तर में बैठे थे। काफी देर इंतजार के बाद वन विभाग के चीफ नरेश कुमार जानू मीडिया के कैमरे से बचते नजर आए और उन्होंने मिलने से साफ मना कर दिया।

 

जबकि मुख्यमंत्री के वन विभाग के अधिकारियों को साफ निर्देश हैं कि विभाग की जमीन, जंगल और पेड़ों को संरक्षित रखा जाय। लेकिन वन विभाग के अधिकारी इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं और फिलहाल मुख्यमंत्री के आदेशों को वन विभाग के अधिकारी नजरंदाज करते दिखाई दे रहे हैं। अधिकारी काम के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं और अपनी जवाबदेही से बचते नजर आ रहे हैं।

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