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Lok Sabha News: बदायूं से बीएल वर्मा के हार के बाद भी बीएल वर्मा कैबिनेट में शामिल, ये 5 कारण…

BL Verma included in the cabinet even after BL Verma's defeat from Badaun, these 5 reasons...

BL Verma included in the cabinet even after BL Verma's defeat from Badaun, these 5 reasons...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काल शाम अपने तीसरे कार्यकाल का शपथ राष्ट्रपति भवन में लिया वहीं इस कैबिनेट में बदायूं के बीएल वर्मा भी शामिल किए गए हैं। ऐसा उन स्थिति में हुआ है, जब बीजेपी यह सीट हार चुकी है। यहां एक तरफ ब्रजक्षेत्र अध्यक्ष दुर्विजय शाक्य की हार की समीक्षा हो रही है तो दूसरी तरफ जिले में दोबारा लाल बत्ती चमक चुकी है। हालांकि इससे पहले यही अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस बार बीएल की बत्ती बुझ जाएगी, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने सारी अटकलों और कयासों को विराम देकर रख दिया है।

इसकी पांच बड़ी वजह भी निकलकर आई है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीएल की लाल बत्ती बरकरार रखने के पीछे लोकल स्तर के पांच वो कारण हैं, जिनके बलबूते आने वाले पांच साल तक सरकार फायदे में रहेगी।

शिवपाल फैक्ट्रर की रोकथाम

दरअसल बदायूं से सपा नेता शिवपाल यादव के बेटे आदित्य एमपी चुने गए हैं। चूंकि शिवपाल की प्रदेश की राजनीति में अलग छाप है और वह खुद में बड़ा चेहरा हैं। जाहिर है कि जब बेटा एमपी है तो शिवपाल भी यहां की राजनीति में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक्टिव रहेंगे। उनके एक्टिव रहने से बदायूं ही नहीं बल्कि आसपास जिलों में सपा का असर बढ़ेगा। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में यहां केंद्रीय नेतृत्व का एक बड़ा चेहरा होना जरूरी समझा गया, ताकि समय-समय पर शिवपाल फैक्ट्रर की रोकथाम की जा सके।

पार्टी पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ाना

बीजेपी की सीट हारने के बाद यहां संगठन कार्यकारिणी में असुरक्षा की भावना बढ़ना लाजिमी है। हार की समीक्षा चल रही है। इन हालात में जिम्मेदारों के अपनी कुर्सी खिसकती दिखने लगी है। जबकि बीएल को दोबारा मंत्रीमंडल में शामिल करने यह एहसास कराया गया है कि कार्रवाई केवल उन पदाधिकारियों या नेताओं पर होना है, जिनकी लापरवाही वाकई में रही है। किसी बेकसूर की कुर्सी नहीं जाएगी।

लोकल की राजनीति का तजुर्बा

बीएल को जहां एक ओर लोकल की राजनीति का पूरा तजुर्बा है, वहीं सहकारिता मंत्री रहते हुए वह गृहमंत्री अमित शाह के संपर्क में भी रहे हैं। ऐसे में विपरीत हालातों में किस लहजे में काम करना है, इसका अनुभव भी बीएल को मिला है। ऐसे में उन्हें बदायूं समेत आसपास जिलों में बीजेपी का असर बरकरार रखने के लिए कैबिनेट में शामिल किया गया है।

सूबे के आठ परसेंट वोट संभालना

प्रदेश में लोधी राजपूत वोट तकरीबन 8 परसेंट है। इस वोटबैंक को साधने के लिए बड़े चेहरों में शुमार उन्नाव सांसद साक्षी जी महाराज के अलावा कोई और बड़ा चेहरा नहीं है। हालांकि फर्रुखाबाद से भी मुकेश राजपूत सांसद हैं, लेकिन बीएल पुराना और मंझा हुआ चेहरा इसलिए हैं, क्योंकि वो पूर्व सीएम कल्याण सिंह के शार्गिद रह चुके हैं। बदायूं में भी गंगा की तलहटी में यह बिरादरी मौजूद है। बदायूं समेत पड़ोसी जिला एटा और आसपास जिलों के इस वोटबैंक को सहेजने के लिहाज से भी बीएल कारगर साबित होंगे।

निर्विवाद छवि होना भी बड़ी वजह

बता दें कि लोकल स्तर पर बीएल वर्मा की छवि निर्विवाद नेताओं की है। वे थानों, राशन कोटा और देहात इलाकों की गुटबंदी की राजनीति से खुद को दूर रखते हैं। आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से भी दूरी बनाए रखने में माहिर हैं। हालांकि पार्टी के अंदरखाने कुछ जनप्रतिनिधियों से खट्टी नोक-झोक है पर आम आदमी के लिए वह एक बेहतर छवि वाले नेता हैं।

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