सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर में रियल एस्टेट कंपनियों और बैंकों/एनबीएफसी के बीच साठगांठ की जांच सीबीआई को सौंप दी है। यह फैसला उन हजारों घर खरीदारों की याचिका पर लिया गया है जो सालों से न तो फ्लैट का कब्जा पा सके और न ही बैंक की ईएमआई से राहत मिली।
70 हजार से अधिक बायर्स अब भी कब्जे से वंचित
नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों में आज भी करीब 70 हजार से ज्यादा फ्लैट बायर्स हैं, जिनको बिल्डरों ने वादों के बावजूद कब्जा नहीं दिया। इनमें सुपरटेक, जेपी, आम्रपाली और यूनिटेक जैसे बड़े ग्रुप शामिल हैं।
क्या है सबवेंशन स्कीम, जिसमें फंसे बायर्स?
सबवेंशन स्कीम के तहत बायर्स से केवल 5-20% रकम लेकर बिल्डर ने बाकी रकम का लोन बैंक से पास करवा लिया और कहा कि कब्जा मिलने तक ईएमआई का ब्याज बिल्डर भरेगा। लेकिन कुछ समय बाद बिल्डरों ने ब्याज देना बंद कर दिया, जिससे बायर्स डिफाल्टर की श्रेणी में आ गए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और SIT गठन
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को SIT बनाने का आदेश दिया है। यूपी और हरियाणा पुलिस से अफसर देने को कहा गया है। सुपरटेक के खिलाफ पहली प्राथमिक जांच (PE) दर्ज होगी। कोर्ट ने हर महीने स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा है।
कैसे हुआ बायर्स के साथ धोखा?
बिल्डर ने बैंक से मोटी रकम ली और फ्लैट निर्माण की बजाय उसे दूसरी परियोजनाओं में लगा दिया। नतीजा यह रहा कि न तो फ्लैट बने और न ही बैंक को ब्याज मिला। बायर्स फंसे और अब उन्हें डिफॉल्टर तक घोषित कर दिया गया है।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में क्या है स्थिति?
रिपोर्ट्स के अनुसार, सुपरटेक के 21 प्रोजेक्ट 6 शहरों में हैं, जिनमें 19 बैंक/वित्तीय संस्थाएं शामिल हैं। अकेले सुपरटेक से जुड़े 800 से अधिक बायर्स इस घोटाले से प्रभावित हैं।
नेफोमा अध्यक्ष अन्नू खान की प्रतिक्रिया
नेफोमा के अध्यक्ष अन्नू खान ने कहा कि, “हमने पूरी रकम बिल्डर को दी, लेकिन ना फ्लैट मिला, ना ही ब्याज बैंक को जमा हुआ। यह बायर्स के साथ खुला धोखा है। हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश से न्याय की उम्मीद है।”