मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव ने राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। यह सीट न केवल समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है, बल्कि यह चुनाव जातीय समीकरण और वोट बैंक की राजनीति का अहम मोड़ भी साबित हो सकता है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने मिल्कीपुर में जनसभा कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और डिंपल यादव भी जल्द ही प्रचार अभियान में शामिल होकर पार्टी को मजबूती देने की तैयारी में हैं। इस बार का मुकाबला सपा और भाजपा के बीच सीधा नजर आ रहा है।
सपा और भाजपा के लिए क्यों अहम है मिल्कीपुर?
मिल्कीपुर सीट भाजपा के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली हार का बदला लेने का मौका है। वहीं, सपा के लिए यह सीट अवधेश प्रसाद के इस्तीफे के बाद खाली हुई है, जिसे बरकरार रखना पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। जातीय समीकरण यहां जीत-हार का फैसला करेगा, जो दोनों दलों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
जातीय समीकरण बनेगा गेमचेंजर
मिल्कीपुर में लगभग 3.58 लाख मतदाता हैं, जिनमें दलित, ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की अहम भूमिका है। पासी बिरादरी के 55 हजार, यादव 55 हजार, ब्राह्मण 60 हजार, मुस्लिम 30 हजार, क्षत्रिय और वैश्य 45 हजार, और अन्य जातियों में 20 हजार कोरी, 18 हजार चौरसिया, पाल और मौर्य समुदाय के वोटर शामिल हैं।
सपा का पीडीए फॉर्मूला
सपा इस बार पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर काम कर रही है। लोकसभा चुनाव में इस रणनीति ने सपा को सफलता दिलाई थी। बड़ी संख्या में दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाता सपा के साथ जुड़े थे। इस बार सपा इसी वोट बैंक को मजबूत करने पर जोर दे रही है।
बीजेपी की रणनीति
भाजपा ने सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए चंद्रभानु पासवान को उम्मीदवार बनाया है। इससे पार्टी दलित समुदाय को साधने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही, ओबीसी वोट बैंक को फिर से अपने पक्ष में लाने के लिए भाजपा ने बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया है। भाजपा ने अपने सवर्ण वोट बैंक को बनाए रखने के साथ-साथ दलित और पिछड़े समुदाय को जोड़ने की कोशिश की है।
भाजपा के दिग्गज मैदान में
भाजपा ने इस सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश के छह मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी है। दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने मिल्कीपुर में कई बार दौरा किया है। भाजपा का पूरा फोकस सभी जातीय समूहों को अपने पक्ष में करने पर है।
नतीजा किसके पक्ष में जाएगा?
मिल्कीपुर का उपचुनाव सपा और भाजपा के लिए नाक की लड़ाई बन चुका है। जातीय समीकरण और वोट बैंक की राजनीति इस बार निर्णायक भूमिका निभाएगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा अपने पीडीए फॉर्मूले के सहारे इस सीट पर जीत दर्ज कर पाती है, या भाजपा अपने उम्मीदवार के जरिए जातीय समीकरण को साधकर जीत हासिल करती है।