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UP By Election: उपचुनाव में प्रत्याशियों को चुनाव जिताने के लिए CM YOGI ने पहना कांटों का ताज, मुश्किल सीटों की ली जिम्मेदारी

सीएम योगी की जिम्मेदारी वाली मिल्कीपुर पर सिर्फ 2017 में ही पार्टी चुनाव जीती थी, 2012 व 2022 में यह सीट सपा के कब्जे में रही। इसी सीट से विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने श्रीराम मंदिर बनने से बने माहौल के बावजूद भाजपा को हराकर सांसद चुने गए हैं।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
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UP By Election: उपचुनाव में प्रत्याशियों को चुनाव जिताने के लिए CM YOGI ने पहना कांटों का ताज, मुश्किल सीटों की ली जिम्मेदारी

सीएम योगी की जिम्मेदारी वाली मिल्कीपुर पर bjp सिर्फ 2017 में ही पार्टी चुनाव जीती थी, 2012 व 2022 में यह सीट सपा के कब्जे में रही। इसी सीट से विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने श्रीराम मंदिर बनने से बने माहौल के बावजूद भाजपा को हराकर सांसद बने।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद के साथ ही भाजपा कोर कमेटी में शामिल चार अन्य नेताओं को उपचुनाव वाली 10 विधानसभा सीटों में से दो-दो सीटें जिताने की जिम्मेदारी देकर बड़ा टास्क दिया है।

सीएम ने कटेहरी और मिल्कीपुर की विषम समीकरण वाली सीटों की जिम्मेदारी खुद लेकर लीडरशिप दिखाई है। इन सीटों पर चुनाव जीतना भाजपा ही नहीं, कोर कमेटी के तीन प्रमुख नेताओं सीएम, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के लिए भी कड़ी चुनौती मानी जा रही है।

कटेहरी और मिल्कीपुर सीटों का इतिहास

बीते तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो इन तीनों नेताओं को जिन 6 सीटों की जिम्मेदारी दी गई है, वे समीकरण के लिहाज से भाजपा के लिए मुफीद नहीं रही हैं। सीएम योगी की जिम्मेदारी वाली मिल्कीपुर पर सिर्फ 2017 में ही पार्टी चुनाव जीती थी, 2012 व 2022 में यह सीट सपा के कब्जे में रही। इसी सीट से विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने श्रीराम मंदिर बनने से बने माहौल के बावजूद भाजपा को हराकर सांसद चुने गए हैं।

कुर्मी बहुल कटेहरी सीट पर भी लगातार सपा-बसपा का ही कब्जा रहा है। इस सीट से लालजी वर्मा कई बार विधायक चुने गए हैं। 2022 में वे सपा से चुनाव जीते थे और अब वे सपा से सांसद बन गए हैं। कटेहरी सीट से भाजपा सिर्फ 1991 में और मिल्कीपुर सीट पर 2017 में ही चुनाव जीत पाई है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने इन सीटों को जीतने का टास्क लेकर सपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की है।

ब्रजेश पाठक को सबसे बड़ा टास्क

सीटों के समीकरण के लिहाज से देखें तो सबसे कठिन टास्क डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को मिला है। उन्हें सपा की परंपरागत सीसामऊ और करहल सीट की जिम्मेदारी दी गई है। ये दोनों सीटें भाजपा के लिए कभी मुफीद नहीं रहीं। 1991 से लगातार सपा का ही कब्जा रहा है। दोनों सीटों पर पार्टी को जीत दिलाना पाठक के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

भूपेंद्र चौधरी के हिस्से वाली मीरापुर और कुंदरकी सीट भी समीकरण के लिहाज से जटिल हैं। मीरापुर सीट पर भाजपा सिर्फ 2017 में चुनाव जीती थी, हालांकि 2022 में इस सीट रालोद ने जीत दर्ज की। कुंदरकी सीट पर 1993 के बाद भाजपा कभी नहीं जीती है।

केशव व धर्मपाल की राह थोड़ी आसान

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और भाजपा के प्रदेश महामंत्री धर्मपाल का टास्क अन्य की तुलना में थोड़ा आसाना माना जा रहा है। केशव के जिम्मेदारी वाली फूलपुर और मंझवा सीट और धर्मपाल की जिम्मेदारी वाली खैर और गाजियाबाद सीट पर भाजपा जीतती रही है।

बीते तीन विस चुनाव में चुनाव जीतने वाले दल

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