महाकुंभ 2025 में न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं, बल्कि सनातन धर्म की रक्षा और परंपराओं की शिक्षा भी दी जा रही है। देवसेना नामक संगठन तीर्थयात्रियों को शास्त्रों के साथ शस्त्रों की भी जानकारी दे रहा है। श्रद्धालुओं को सनातन धर्म के देवी-देवताओं के अस्त्र-शस्त्रों से परिचित कराने के साथ ही उन्हें धारण करने की विधि भी सिखाई जा रही है।
हर दिन हजारों श्रद्धालु ले रहे हैं शस्त्रों का ज्ञान
संगम तट पर रोजाना 15,000 से 20,000 श्रद्धालु देवसेना के शिविर में पहुंचकर अस्त्र-शस्त्रों की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। शिविर में पांच मिनट की विशेष पूजा के बाद विधि-विधान से श्रद्धालुओं को शस्त्र धारण कराया जा रहा है। इसके अलावा, सनातनी लोगों से घर में अस्त्र-शस्त्र रखने का संकल्प लेने का आह्वान भी किया जा रहा है।
अध्यात्म और आत्मरक्षा का संगम
पंजाब और हरियाणा में सक्रिय देवसेना संगठन महाकुंभ में श्रद्धालुओं को धार्मिक शिक्षा के साथ आत्मरक्षा की जानकारी भी दे रहा है। शस्त्रों के महत्व को समझाने के साथ हथियारों को संभालने और उपयोग करने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
विशेष प्रशिक्षण और शिविर की व्यवस्था
- 50 लोगों के समूह के लिए प्रशिक्षकों की व्यवस्था
- झूंसी में विशेष प्रशिक्षण शिविर
- प्रदर्शन के लिए कृपाण, तलवार, भाला, कुल्हाड़ी सहित अन्य अस्त्र-शस्त्र
- तीर्थयात्रियों और संतों के लिए शस्त्र धारण प्रक्रिया
धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण का संदेश
देवसेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजभूषण सैनी के अनुसार, सनातन धर्म में शस्त्र धारण करने का विशेष महत्व है। उन्होंने कहा कि हमारे देवी-देवता केवल आध्यात्मिक रक्षा के लिए नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करते हैं। उनका संगठन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आम जनता को जागरूक कर रहा है।
सरकारी नियमों के तहत पंजीकृत संगठन
देवसेना ने बताया कि उनका संगठन सरकारी नियमों के अनुसार पंजीकृत है और शस्त्र रखने वाले श्रद्धालुओं को पहचान पत्र भी जारी किया जाता है। देशभर में 20,000 से अधिक कार्यकर्ता इस अभियान में शामिल हैं और महाकुंभ के बाद विशेष प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किए जाएंगे।
महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं को केवल धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। देवसेना के इस अभियान का उद्देश्य सनातन धर्म और उसकी परंपराओं को सुरक्षित रखना है। श्रद्धालुओं को शास्त्रों के ज्ञान के साथ शस्त्रों का महत्व समझाया जा रहा है, जिससे वे अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहें।