Loksabha Election 2024: बात कर रहे हैं आज लालगंज संसदीय सीट की जहां पिछले छह चुनाव में 4 बार बसपा तो 2 बार सपा के प्रत्याशी को यहां से विजय मिली है। जबकि एक बार इस सीट पर कमल भी खिला है लेकिन कांग्रेस पार्टी को 1984 के चुनाव के बाद जीत नहीं मिली है।
सामाजिक परिवेश में बदलाव के कारण राजनीति की शैली में परिवर्तन
उल्लेखनीय हैं कि 1980 के बाद से यहां की राजनीतिक हवा में बहुत परिवर्तन आया है जिसका मुख्य कारण सामाजिक परिवेश में बदलाव होना मुख्य माना जा रहा है। ऐसे में जिस सीट पर किसी जमाने में कांग्रेस का वर्चस्व होता था, वहां चार दशक से कांग्रेस पार्टी जीतने के लिए मोहताज है। बता दें कि 1984 के चुनाव में आखिरी बार यहां से लालगंज संसदीय सीट पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी। इसके बाद से पंजा कभी भी यहां नहीं आ पाया है।
इस सीट का क्या रहा माहौल
भारत देश के आजाद होने के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव में लालगंज सीट से दो सांसद चुन कर संसद पहुंचे। ऐसे में सभी पार्टियों ने यहां से दो-दो प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। जिसमें कांग्रेस के विश्वनाथ और सीताराम को फतेह मिली। इसके बाद 1962 के आम चुनाव में एक बार फिर विश्राम प्रसाद को इस सीट से फतह मिली।
फिर 1967 में कांग्रेस पार्टी के रामधन का यहां से राजतिलक हुआ। पर 1977 के चुनाव में रामधन ने पाला बदला और बीएलडी के टिकट पर मैदान पर उतरे। उन्होंने कांग्रेस के लालसा को हराकर जीत हासिल की। 1980 के लोकसभा चुनाव में जेएनपी एस के टिकट पर मैदान में आए और छांगुर ने बाजी मारी। उन्होंने इस चुनाव में जेएनपी के रामधन को हराया था।
1984 में रामधन ने एक बार फिर पाला बदला और कांग्रेस के टिकट पर मैदान पर उतरे और जीत दर्ज की, लेकिन इस चुनाव के बाद कांग्रेस फिर से इस सीट पर कभी नहीं जीत दर्ज कर पाई। 1989 में रामधन ने, नई बनी पार्टी जनता दल के टिकट पर मैदान पर उतरे और जीत भी दर्ज की। फिर 1991 में भी उन्होंने इस सीट पर जनता दल के टिकट से चुनाव लड़ा और किले को फतह किया।
आगे इस सीट पर क्या रही स्थिति
आगे इस सीट की स्थिति को समझें तो 1996 में सपा-बसपा पार्टी बनने के बाद बसपा के डॉ. बलिराम ने समाजवादी पार्टी के दरोगा प्रसाद सरोज को हराकर अपने जीत का परचम लहराया। अगले चुनाव में फिर बाजी पलटी और साल 1998 में सपा के दरोगा प्रसाद सरोज ने बहुजन समाज पार्टी के डॉ. बलिराम को पटकनी दी। 1999 में फिर BSP के डॉ. बलिराम ने सपा के दरोगा प्रसाद सरोज को राजनीतिक पटकनी दे दी।
2009 में भाजपा
2004 के चुनाव में सपा के दरोगा प्रसाद सरोज ने बसपा के डॉ. बलिराम को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया। फिर 2009 में बसपा के डॉ. बलिराम ने भाजपा की नीलम सोनकर को हराकर जीत हासिल की। 2014 के जिस चुनाव में नीलम ने सपा के बेचई सरोज को हराकर इस सीट पर जीत हासिल की थी उस समय मोदी की लहर जोरों पर था। पर 2019 के चुनाव में बाजी फिर से पलटी और बसपा की संगीता आजाद ने भाजपा की नीलम सोनकर को हराकर इस सीट पर अपना दायित्व जमाया।