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Mahakumbh 2025: दंडी संन्यासी और उनके जीवन के अद्भुत नियम, सनातन धर्म के विशिष्ट साधक

दंडी संन्यासी सनातन हिंदू धर्म के सर्वोच्च साधक माने जाते हैं। इनकी सबसे बड़ी पहचान उनका ‘दंड’ होता है, जो उनके और परमात्मा के बीच एक पवित्र कड़ी का प्रतीक है।

By: Desk Team  RNI News Network
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Mahakumbh 2025: दंडी संन्यासी और उनके जीवन के अद्भुत नियम, सनातन धर्म के विशिष्ट साधक

दंडी संन्यासी सनातन हिंदू धर्म के सर्वोच्च साधक माने जाते हैं। इनकी सबसे बड़ी पहचान उनका ‘दंड’ होता है, जो उनके और परमात्मा के बीच एक पवित्र कड़ी का प्रतीक है। ये साधु न केवल समाज और राष्ट्र के हित में अपना जीवन समर्पित करते हैं, बल्कि अध्यात्म, आत्मज्ञान और साधना में लीन रहते हैं।

दंड: भगवान विष्णु का प्रतीक

दंडी संन्यासी के दंड को शास्त्रों में भगवान विष्णु और उनकी शक्तियों का प्रतीक माना गया है। इसे ‘ब्रह्म दंड’ भी कहा जाता है। यह मान्यता है कि इस दंड में ब्रह्मांड की दिव्य शक्ति समाहित होती है। हर दंडी संन्यासी प्रतिदिन अपने दंड का अभिषेक, तर्पण और पूजन करते हैं। इसे शुद्ध और सुरक्षित रखना उनका परम कर्तव्य है।

दंडी संन्यासी बनने की प्रक्रिया

दंडी संन्यासी बनने के लिए साधुओं को कठोर नियमों का पालन करना होता है। इनमें 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना, गृहत्याग, निरामिष भोजन, निरपेक्षता, अक्रोध और अध्यात्म में रति जैसे आदर्शों को अपनाना शामिल है। इसके बाद ही वे इस संप्रदाय में दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

दंड की शुद्धता और महत्व

दंडी संन्यासी अपने दंड को हमेशा आवरण में रखते हैं और इसे कभी भी अपात्र या अनाधिकृत व्यक्तियों को नहीं दिखाते। केवल पूजा के समय इसे खुला रखा जाता है। दंड की शुद्धता बनाए रखना उनके जीवन का अहम हिस्सा है।

शंकराचार्य और दंडी संन्यासी का संबंध

दंडी संन्यासी का दावा है कि शंकराचार्य उन्हीं में से चुने जाते हैं। यह प्रक्रिया उनके जीवन में सर्वोच्च आध्यात्मिकता और अनुशासन का प्रतीक है।

दंडी संन्यासी की मृत्यु और मोक्ष की मान्यता

दंडी संन्यासी को मृत्यु के बाद जलाया नहीं जाता। दीक्षा के समय ही उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, जिसे ‘संन्यास दीक्षा’ कहा जाता है। इसे मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है। मृत्यु के बाद उनकी समाधि बनाई जाती है।

महाकुंभ 2025 में दंडी संन्यासी

महाकुंभ 2025 में दंडी संन्यासियों का अखाड़ा सेक्टर 19 में स्थापित किया गया है। यहां वे अपनी आध्यात्मिक साधना में लीन रहेंगे और धर्म का प्रचार करेंगे। दंडी संन्यासियों का यह समर्पित जीवन समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

दंडी संन्यासी सनातन धर्म की आध्यात्मिक परंपराओं के सजीव प्रतीक हैं। उनका जीवन त्याग, अनुशासन और परमात्मा की उपासना का आदर्श प्रस्तुत करता है। महाकुंभ जैसे आयोजन इनकी साधना और उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का अवसर प्रदान करते हैं।

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