Varanasi Gangajal Fact: बनारस जिसे वर्तमान में वाराणसी के नाम से जाना जाता है। इसी के साथ वाराणसी को मोक्ष का द्वार और भगवान शिव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है और काशी इसी शहर का एक प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह दुनिया का एक प्राचीनतम शहर है, जो देवों के देव महादेव भगवान शंकर के त्रिशूल की नोक पर टिका हुआ है।
पतित पावनी मां गंगा नदी के तट पर स्थित इस नगर के बारे में मान्यता है कि यहां से गंगा जल को घर ले जाना वर्जित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है। देश-दुनिया से लाखों लोग यहां पर गंगा में स्नान करने के लिए आते है .साथ ही भगवान विश्वनाथ के दर्शन भी करते हैं और कई श्रद्धालु यहां से जल अपने घर ले जाते हैं।
शिव की नगरी वाराणसी को पौराणिक मान्यता यह है कि कि यहां पर जो जीव, जन्तु और मानव आकर अपने प्राण त्यागता है, तो उसे जन्म और मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। यही कारण है कि यहां अनेक मोक्ष आश्रम बने है। वहीं सनातन धर्म के अनुसार किसी व्यक्ति या जीव को काशी आने के लिए प्रेरित करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है, और दूसरी ओर अगर कोई व्यक्ति इस नगर से किसी जीव को अलग करने वाले व्यक्ति पाप के भागी होते हैं।
आपको बता दें कि पौराणिक मान्यता यह है कि केवल बनारस या काशी को छोड़कर पवित्र गंगाजल को किसी भी स्थान से लिया जा सकता है। जो व्यक्ति काशी से गंगाजल जल ले जाते हैं, वे जल के साथ जल में समाहित जीवों को भी घर ले जाते हैं और साथ ही मोक्ष को प्राप्त करने वाले प्राणियों के शव की राख को भी इसी नदी मे प्रवाहित किया जाता है।]
इसलिए ऐसा करने वाला व्यक्ति पाप का भागी हो जाता है। किसी को भी काशी से अलग करने से उस जीव का मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र बाधित होता है, जिसका वह अधिकारी है। काशी के जीवमात्र को उनके मोक्ष के इस अधिकार से वंचित करना महापाप माना जाता है।
दरअसल, काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र आदि घाटों पर रोजाना हजारों शवों की अंत्येष्टि होती है। यहां अघोरी मसानी शक्तियां सक्रिय रहती हैं। वे काशी में केवल भगवान के भय से शांत रहती हैं और किसी को परेशान नहीं करती हैं। इसका दूसरा कारण यह है कि जब आप गंगाजल काशी से ले जाते हैं, तो उसके साथ अघोरी मसानी शक्तियां आपके घर पहुंच सकती हैं और आपके जीवन को तहस-नहस कर सकती हैं।
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यही नियम संपूर्ण बनारस के गंगाजल के अलावा , गीली मिट्टी, पर भी लागू होता है। गंगाजल की गीली मिट्टी में भी हजारों-लाखों कीटाणुओं की उपस्थिति रहती है। काशी से मिट्टी न ले जाने के कारण यह भी है कि काशी में किसी का दाह संस्कार किया जाता है, तो उसकी राख के कुछ अंश मिट्टी मे भी समाहित होते है, और साथ ही उस मिट्टी में मृतक आत्मा के अंग या अंश, राख या अवशेष आ जाते हैं। इससे भी उसके मोक्ष पाने में बाधा आ सकती है।
THIS POST IS WRITTEN BY PRIYA TOMAR AND EDITED/PUBLISHED BY ABHINAV TIWARI.
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