सरकार एक तरफ जहां हर घर नल-हर घर जल के संकल्प के साथ प्रदेश भर में 2.65 करोड़ ग्रामीण परिवारों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की महाअभियान चला रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह वाटर हेडटेंक, ट्यूबेल आदि का निर्माण करा रही है, तो वहीं सरकारी सिस्टम के उदासीनता के चलते पहले से बने दर्जनों वाटर हेडटेंक, ट्यूबेल धूल फांकते हुए अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं। इनकी सुध कोई लेने वाला नहीं है।
जिसे के सदर साउघाट के नरियाव में एक करोड़ 47 लाख रुपये से बना ओवर हेड टैंक शोपीस बना हुआ है। वहीं हरैया के केशवपुर के निपनिया में भी कुछ ऐसी स्थिति बनी हुई है। यहां पर भी एक करोड़ रुपये से बना वाटर हेडटैंक अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है। हैरानी तो इस बात की है कि कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय साउघाट में बालिकाओं को स्वच्छ जल मुहैया कराने के उद्देश्य से लाखों रुपए खर्च कर वाटर हेडटैंक का निर्माण तो हुआ लेकिन चला आज तक नहीं। क्योंकि इसमें न मोटर लगा और न ही ट्यूबेल।
वाटर टैंकों के निर्माण होने के बाद भी यहां रहने वालों लोगों की पानी की समस्या खत्म नहीं हुई है। जब लोगों द्वारा इसकी शिकायत की जाती है तो जिम्मेदार जांच का आश्वासन कोरम पूरा कर देते हैं।
गांव की रहने वाली एक बुजुर्ग महिला से जब यूपी की बात के संवाददाता धर्मेंद्र द्विवेदी ने पूछा तो महिला ने बताया कि यह तो तीन साल से बंद पड़ा है। जब इसकी वजह जानने की कोशिश की गई तो किसी को भी नहीं पता था कि वैटरटैंक से पानी क्यों नहीं आ रहा है।
बस्ती से संवाददाता धर्मेंद्र द्विवेदी की रिपोर्ट।