यूपी के प्रयागराज के संगम तट पर लोग सुबह से पहुंचकर आस्था की डुबकी लगा रहे हैं और पूर्वजों का तर्पण कर रहे हैं। गौरतलब है कि हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। ऐसे में हर व्यक्ति को पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों (पिता, पितामह और प्रपितामही) के साथ ही नाना-नानी का भी श्राद्ध करना चाहिए। शास्त्रों में पितृपक्ष की अवधि को पितरों का सामूहिक मेला कहा जाता है।
यह ऐसा समय होता है जब एक पक्ष यानी 15 दिनों के लिए पितृ पृथ्वीलोक पर आते हैं। ऐसे में इस समय परिजन अपने पितरों के निमित्त जो भी कार्य करते हैं या दान देते हैं वह उन्हें प्राप्त होता है। इसे प्राप्त कर पितृ तृप्त होकर अपने वंश को फलने-फूलने का आशीर्वाद देते हैं।
आज पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और आश्विन अमावस्या के दिन समाप्त होती है। लेकिन सामान्यत: पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन यानी आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि से मानी जाती है। ऐसे में आज 18 सितंबर 2024 से पितृपक्ष की शुरुआत हुई है और इसी दिन पितरों के निमित्त पहला श्राद्ध किया जा रहा है। पितृपक्ष की शुरुआत का आज पहला श्राद्ध है।
ऐसे में आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है और इसी दिन पितृपक्ष का पहला श्राद्ध किया जा रहा है। इसे प्रतिपदा श्राद्ध को पड़वा श्राद्ध के भी नाम से जाना जाता है।
प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर को सुबह 08 बजकर 04 मिनट से शुरू होगी और 19 सितंबर सुबह 04:19 पर समाप्त होगी। वहीं प्रतिपदा श्राद्ध के लिए इस दिन सुबह 11:30 से दोपहर 03:30 तक का समय रहेगा। यानी अपराह्न काल की समाप्ति से पहले आप प्रतिपदा श्राद्ध संबंधी अनुष्ठान को पूरा कर लें।
शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि श्राद्ध कर्म कभी भी सूर्योदय से पूर्व और सूर्योदय के बाद नहीं करना चाहिए। हमेशा चढ़ते सूर्य के समय ही श्राद्ध या पिंडदान करना चाहिए। इसलिए सुबह 11:30 बजे से लेकर दोपहर 03:30 तक के समय को श्राद्ध और पिंडदान के लिए अच्छा माना जाता है। इसके साथ ही श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान जैसे अनुष्ठान कुतुप, रौहिण जैसे मुहूर्त में ही संपन्न करने चाहिए।