लखनऊ में एक बड़े रियल एस्टेट घोटाले का खुलासा हुआ है, जिसमें एलडीए (लखनऊ विकास प्राधिकरण) के कर्मियों और जालसाजों की मिलीभगत से फर्जी रजिस्ट्री तैयार कर लोगों को ठगा जा रहा है। यह गैंग पॉश इलाकों में खाली प्लॉटों के फर्जी दस्तावेज तैयार कर उन्हें बेचने का काम कर रहा है। जालसाज इस धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए नकली गवाह और फर्जी बैंक खाते भी खोल रहे हैं। जब खरीदार कब्जा लेने पहुंचते हैं, तब उन्हें इस धोखाधड़ी का अहसास होता है। अब तक ऐसे 50 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
एलडीए कर्मियों से मिलती है प्लॉट की जानकारी
फर्जी रजिस्ट्री गिरोह में एलडीए के कुछ कर्मचारी भी शामिल बताए जा रहे हैं। ये कर्मचारी जालसाजों को लंबे समय से खाली पड़े प्लॉटों और अर्जित भूमि की जानकारी उपलब्ध कराते हैं। इसके बाद गैंग के सदस्य वकीलों की मदद से फर्जी दस्तावेज और नकली गवाह तैयार करते हैं। प्लॉट बेचने के लिए गैंग के सदस्य ग्राहकों को ठगने में लग जाते हैं, और खरीदारों को भरोसे में लेने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाए जाते हैं।
एलडीए कार्यालय में ही होती है डीलिंग
ठगों का गैंग एलडीए कार्यालय में ही सौदा तय करता है, जिससे ग्राहक को लगे कि सब कुछ वैध प्रक्रिया के तहत हो रहा है। एलडीए के कुछ बाबुओं की मिलीभगत से फर्जी रजिस्ट्री की पुष्टि करवाई जाती है, जिससे खरीदार पूरी तरह से विश्वास कर लेता है। सौदा होने के बाद गैंग का सरगना पैसों का लेन-देन फर्जी बैंक खातों के जरिए करता है।
फर्जी गवाहों का इस्तेमाल
एलडीए ने ट्रांसपोर्ट नगर के चार भूखंडों की जांच की, जिसमें सभी रजिस्ट्रियां फर्जी पाई गईं। जांच में यह सामने आया कि एक ही व्यक्ति ने 11 रजिस्ट्रियों में गवाही दी थी, जबकि एक अन्य व्यक्ति चार मामलों में गवाह बना था। एलडीए ने इस मामले में दो सेवानिवृत्त कर्मियों सहित 19 लोगों पर एफआईआर दर्ज करवाई थी। इसके बाद भी कई अन्य मामलों में फर्जी गवाहों का नाम सामने आया।
ई-नीलामी में नहीं जोड़े जाते संदेहास्पद प्लॉट
एलडीए द्वारा ई-नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से फ्लैट और प्लॉट बेचे जाते हैं, लेकिन ठगों की मिलीभगत से कई प्लॉट और फ्लैट्स की जानकारी नीलामी प्रक्रिया में शामिल ही नहीं की जाती। इससे फर्जीवाड़ा करने वालों को इन प्लॉटों पर अवैध तरीके से कब्जा करने का मौका मिल जाता है।
फर्जी रजिस्ट्रियों के कई मामले उजागर
संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून-व्यवस्था) की जांच में कई फर्जी रजिस्ट्रियों का खुलासा हुआ है। पांच फर्जी रजिस्ट्रियां पकड़ी जा चुकी हैं, जिनमें प्लॉटों को असली मालिकों से छीनकर किसी और के नाम कर दिया गया था।
उदाहरण के लिए:
विक्रांतखंड प्लॉट (1/124) – नैन सिंह के नाम था, जिसे राजकुमार के नाम कर दिया गया।
विक्रांतखंड प्लॉट (1/125) – आरबी सिंह के नाम था, जिसे अमित कुमार के नाम कर दिया गया।
विक्रांतखंड प्लॉट (1/126) – अमीरा पुनवानी के नाम था, जिसे माया देवी के नाम कर दिया गया।
विक्रांतखंड प्लॉट (1/127) – बैजनाथ के नाम था, जिसे रमेश कुमार चावला के नाम कर दिया गया।
बाराबंकी निवासी नदीम अख्तर की जमीन को दिगंबर सिंह के नाम कर दिया गया।
संभावित फर्जीवाड़े वाले प्लॉटों की सूची
जांच में कई ऐसे प्लॉटों की पहचान हुई है, जिनमें फर्जीवाड़ा होने की आशंका जताई गई है। इनमें शामिल हैं:
क्या होगी दोषियों पर कार्रवाई?
एलडीए के फर्जीवाड़े के इन मामलों को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या दोषी कर्मचारियों और जालसाजों पर कड़ी कार्रवाई होगी या मामला फिर दबा दिया जाएगा? प्रशासन द्वारा अब तक कुछ एफआईआर दर्ज की गई हैं, लेकिन अगर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह घोटाला और भी बड़े स्तर पर फैल सकता है। जरूरत है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता लाने के लिए कड़े सुधार किए जाएं और दोषियों को सख्त सजा मिले।