महाकुंभ के दौरान सेक्टर-12 में आयोजित परमधर्मसंसद में हिंदू पहचान, दिनचर्या और संस्कारों पर विशेष चर्चा हुई। इस दौरान ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म की पहचान और उसके महत्व को बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हर हिंदू को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने के लिए तिलक, चोटी, कंठी, जनेऊ और धोती जैसे धर्मचिह्न धारण करने चाहिए।
धार्मिक प्रतीक और उनकी महत्ता
शंकराचार्य ने बताया कि किसी भी व्यक्ति की पहली पहचान उसकी वेशभूषा और आभूषणों से होती है। अगर कोई हमें देखे तो उसे स्पष्ट रूप से यह आभास होना चाहिए कि हम हिंदू हैं। इसके बाद हमारे आचरण और व्यवहार से भी हमारी धार्मिकता झलकनी चाहिए।
उन्होंने हिंदू धर्म के मूल विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारी पहचान “वसुधैव कुटुंबकम” (संपूर्ण विश्व एक परिवार), “सर्वे भवंतु सुखिनः” (सभी सुखी रहें) और “अहिंसा परमो धर्मः” (अहिंसा परम धर्म है) जैसे सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए।
हिंदू दिनचर्या और जीवनशैली
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदू दिनचर्या को सुव्यवस्थित करने पर बल दिया। उन्होंने बताया कि एक हिंदू को—
संस्कार और धार्मिक कर्तव्य
शंकराचार्य ने हिंदू संस्कारों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रत्येक हिंदू को अपने जीवन में कम से कम 16 संस्कारों में से कुछ को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। ये संस्कार व्यक्ति को आध्यात्मिक और नैतिक रूप से मजबूत बनाते हैं।
धार्मिक पहचान और संकट के खतरे
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि व्यक्ति, वस्तु या विचारों की विशिष्टता ही उसकी पहचान होती है। अगर पहचान का संकट उत्पन्न हो जाता है, तो व्यक्ति सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दबाव में आ सकता है। इसलिए, प्रत्येक हिंदू को अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखना चाहिए ताकि उसे किसी संघर्ष का सामना न करना पड़े।
अन्य संतों ने भी रखे विचार
इस अवसर पर प्रवीण भाई तोगड़िया, स्वामी रंगराजन महाराज, स्वामी दिलीप दास महाराज, धर्मदास महाराज और जन्मेजय शरण महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन देवेंद्र पांडेय ने किया।
संक्षिप्त में
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपने विचारों में धार्मिक पहचान, संस्कार, दिनचर्या और आचरण को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यदि हिंदू समाज अपनी पहचान को सहेजेगा और धार्मिक प्रतीकों को अपनाएगा, तो यह न केवल उनकी आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होगा बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित रखेगा।