जीवन के निर्वाह के लिए भोजन मनुष्य और अन्य जीवित प्राणियों दोनों के लिए आधारभूत आवश्यकता है। कई गरीब देशों में खाद्य पदार्थों में मिलावट आम बात है। यह एक ऐसी समस्या है जो पूरी दुनिया में फैल रही है और इसके स्वास्थ्य जोखिम और वित्तीय नुकसान सहित विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं।
हमारी खाद्य आपूर्ति के जोखिमों और सुरक्षा के बारे में जागरूकता संपूर्ण खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में, उत्पादन, पैकेजिंग, संरक्षण और वितरण से लेकर, भोजन किसी भी समय मिलावटी हो सकता है। भोजन में मिलावट से स्वास्थ्य पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। खाद्य उत्पादों में अक्सर जहरीली मिलावट होती है जो तत्काल या दीर्घकालिक विकार पैदा कर सकता है।
यह विकार सबसे पहले स्टोमक और फिर लीबर को नष्ट करता है उसके बाद हृदय को खराब करता है और अगर आप इन सब से बच गए तो दिमाग तक पैरासाइट के रूप में पहुँच कर आपके दिमाग को खा जाते हैं।
जाहिर है, यह यहीं नहीं रुकता: धूल और पत्थरों के साथ अनाज; चाक पाउडर के साथ चीनी; खनिज तेल के साथ खाद्य तेल; औद्योगिक रंगों के साथ हल्दी पाउडर।
वहीं भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ लगभग 60 फीसद लोग कृषि कार्य में कार्यरत हैं तो ऐसे में किसान लोगों का रक्षक से भक्षक क्यों बन रहा है. यह बात चौकाने वाली है पर सच कहा जाए तो गाजियाबाद के हिंडन नदी के प्रदूषित पानी से साग, पालक, मेंथी, और बथुआ को बेरोक-टोक धुला जा रहा है। ऐसे में क्या कहना उचित है कि! अन्नदाता लोगों का भोजन से पेट भरने के स्थान पर पेट में जहर भर रहा है। या फिर सरकार उन्हें उनके उपज का सही भाव नहीं दे रही हैं। आइए इस पोस्ट के माध्यम से समझते हैं…
किसान मिलावट क्यों कर रहे हैं?
अन्न दाताओं से जब यह सवाल किया गया कि आखिर वे ऐसा करने के लिए क्यों मजबूर हुए हैं. तो पहले तो उनमें से ज्यादातर किसानों ने जवाब देने से मना कर दिया। उन किसानों ने गुस्सा होते हुए कहा कि आप जो करने आए हैं वो करिए हमें अपना काम करने दीजिए। वहीं एक दूसरे किसान ने बात रिकॉर्ड न करने और वीडियो न बनाने के शर्त पर बताया कि आज चाहे फिर वह हरी सब्जी है, दूध हो, तेल हो, उन सभी वस्तुओं में किसी न किसी रूप में मिलावट रहता ही है।
अगर वे मिलावट न करें तो उनकी उस प्रोडक्ट में लगी हुई मूल राशी भी उन्हें नसीब न हो। सरकार की बात पर कहा कि सरकार जो सुविधाएं उन्हें प्रदान करती हैं वो आज के समय में लगभग न के बराबर है। और जो योजनाएं हमारे तक पहुँचती भी है उनमें से पहले ही बिचौलिए अपना काम कर लेते हैं।
एक सब्जी मंडी में प्रतिदिन बड़ी मात्रा में लौकी और कद्दू के अलावा अन्य सब्जियां आती हैं। ये लौकी प्रतिबंधित इंजेक्शन और केमिकल के कारण वजन में तीन गुना भारी हो जाती है। छोटे कद्दू को भी केमिकल और इंजेक्शन के कारण पांच किलो वजन तक फुला दिया जाता है। सब्जी कारोबारी मानते हैं कि ये सब्जी सेहत खराब करने वाली हैं, लेकिन उन्हें भी सब्जी खरीदना पड़ता है।
मिलावट पर सरकार सख्त
सरकार द्वारा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन की बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद इसका धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। दूध बढ़ाने के लिए दुधारु पशुओं को इंजेक्शन के माध्यम से दिए जाने वाले इस दवा का स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही सब्जी उत्पादक भी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सब्जी की फसलों पर इसका प्रयोग कर रहे हैं। जबकि फल, सब्जियां व दूध में प्रयोग होने वाली इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है।
सरकार द्वारा बिचौलिए को हटाने पर किए गए कार्य
सरकार ने किसान या संबंधित विभाग तक ठीक तरह से कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए क्यूआर कोड और ओटीपी जैसे टेकनीक का प्रयोग करना शुरू किया है ताकि ऐसे केमिकल उन्हीं को मिलें जिसे इसकी जरूरत हो। परंतु, सही तरह से भारत के किसानों को इस बात की जानकारी न होने पर वे इससे अनिभज्ञ रहते हैं और लालच में गलत कदम उठा लेते हैं।
इस टेकनीक के अंतर्गत सरकार आपको जिस काम के लिए पैसे दे रही है उसी काम और वस्तु के लिए आप उन पैसों का प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आपको खाद्य विभाग से यूरिया लेना है तो आपको पहले सरकार द्वारा भेजे गए क्यूआर कोड या ओटीपी को खाद्य विभाग के कर्मचारी को दिखाना होगा। ठीक ऐसे ही खाद्य विभाग अधिकारी के साथ होगा उसके पास भी कोड आएगा।
अगर दोनों कोड मैच हो जाते हैं तो पैसा खाद्य विभाग के एकाउंट में ट्रासफर हो जाएगा नहीं तो लेनदेन अधर में लटक जाएगा। जब तक दोनों के कोड मिल न जाएं। इससे सरकार का मानना है कि आत्महत्या के मामले घटेंगे और जिसके लिए सरकार किसानों को रुपए दे रही है उसी के लिए किसान रुपए प्रयोग कर पाएंगे।
सरकार की मिलावट पर क्या नीति है?
हमारे देश में मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने पर सख्त सजा के प्रावधान किए गए हैं। मिलावटी में दोषी पाए जाने पर आरोपी को 6 माह से लेकर उम्रकैद तक की सजा होने का प्रावधान है।
PFA act की धारा 7/16 के अनुसार मिलावट करने पर अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है।
साल 2006 में लाए गए खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 में सात साल से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है।
मिलावट से लोगों पर होने वाला नुकसान
सब्जियों में प्रतिबंधित आक्सीटोसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल कर खासकर लौकी, कद्दू, तोरई जैसी तमाम अन्य हरी सब्जियों को समय से पहले तैयार की जाती हैं। जिसमें मिलावट से लोगों में दमा, कैंसर, हार्ट की बीमारी, फालिश जैसे बीमारी की सौगात उपहार के रूप में मिल रही है।
इस दवा का इस्तेमाल और इसके साइड इफेक्ट्स की चिंता किए बिना बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। कम लागत में ज्यादा से ज्यादा कमाने के फेर में लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है।
मिलावट पर पहले भी हुई है जेल
बता दें जनवरी 2017 में शहबाद के दुधिया मनोज कुमार को दूध में मिलावट का दोषी पाया गया था जिसमें उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। शाहबाद के तत्कालीन प्रथम अपर न्यायिक मजिस्ट्रेट अरविंद मिश्रा ने इसके साथ ही 1 हजार का जुर्माना लगाया था।
भारत में कितना खाना मिलावटी
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्रधिकरण के अनुसार पूरे भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामलों की पहचान में भारी वृद्धि आई है। जिसमें 2012 से 2013 में 15 प्रतिशत मिलावट तो 2018 से 2019 को आंकड़ों के अनुसार यह मिलावट 28 प्रतिशत तक पहुँच गया।
वहीं दुनिया भर में, 57% व्यक्तियों को मिलावटी भोजन खाने के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हुई हैं। अनुमान के मुताबिक, सालाना लगभग 22% खाद्य पदार्थ मिलावटी होते हैं। इन मिलावटों से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और जब खाद्य उत्पादों के साथ छेड़छाड़ की जाती है, तो उपभोक्ता उत्पाद की गुणवत्ता और सुरक्षा में विश्वास खो देते हैं, जिससे मांग कम हो जाती है और बिक्री कम हो जाती है।
सरकार की लोगों को हिदायत
सरकार मिलावटी खाने पर सख्त है इसी के साथ वो समय-समय पर लोगों को जागरुक करती रहती है कि कोई भी सब्जी, पेय पदार्थ या अन्य खाए जाने वाले पदार्थों को जहां तक संभव हो सके पका कर ही खाएं और बाहर के खाने से ज्यादा घर में बनें खाने का सेवन करें। क्योंकि ऐसे कई मामले देश में सामने आए हैं जिसमें कुछ लोग इन वार्निंग को नजर अंदाज कर देते हैं और अपने जान को मौत के हाथों में रख देते हैं।
निष्कर्ष
विभिन्न खाद्य मिलावटों के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में खाद्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता है। मिलावट के संकट से निपटने के लिए एक बहुत बडे़ रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें सक्रिय नीतियां, व्यावसायिक भागीदारी और सबसे बढ़कर, उपभोक्ता जागरूकता का शामिल होना है।
This Post is written by ABHINAV TIWARI…