भगवान शिव के धनुष, त्रिशूल, तलवार, परशु की काशी विश्वनाथ धाम में पूजा होगी। साथ ही विजयदशमी पर शैव शस्त्रों का मंदिर चौक पर प्रदर्शन होगा। पूर्वांचल के कलाकार लाठी, तलवार, त्रिशूल और भाले का प्रदर्शन करेंगे।
श्री काशी विश्वनाथ धाम में पहली बार भक्त अपने आराध्य के शस्त्रों का दर्शन-पूजन कर सकेंगे। विजयदशमी पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ने शैव शस्त्रों की पूजा की तैयारी शुरू कर दी है। इस दौरान श्रद्धालुओं को पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन देखने का भी अवसर मिलेगा। बाबा विश्वनाथ के मंदिर के इतिहास में पहली बार भगवान शिव के शस्त्रों की पूजा का आयोजन होने जा रहा है।
विजयदशमी पर शस्त्र पूजन की परंपरा के तहत बाबा के धाम में सभी शैव शस्त्रों का पूजन किया जाएगा। इसमें धनुष, त्रिशूल, तलवार, परसु प्रमुख शस्त्र होंगे। वहीं, शाम को पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन भी किया जाएगा। इसके लिए पूर्वांचल से शस्त्र चलाने वाले प्रशिक्षित लोगों की टोली को शामिल किया जाएगा। इसमें लाठी, भाला, त्रिशूल और तलवार सहित सभी पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन होगा।
मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र ने बताया कि विजयदशमी पर पहली बार शैव शस्त्रों के पूजन का आयोजन किया गया है। सभी आयोजन परंपरा के अनुसार ही किए जा रहे हैं।
त्रिशूल- भगवान शिवजी का त्रिशूल सत, रज और तम का प्रतीक है। त्रिशूल का संबंध भगवान शिव के स्वरूप से भी है। इसी अस्त्र से शिवजी ने कई दैत्य व दानवों का वध किया।
पिनाक धनुष- भगवान शिव के शस्त्र में पिनाक धनुष भी था, जोकि महाप्रलयकारी था। इसी शस्त्र के कारण शिव का एक नाम पिनाकी पड़ा। भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं इसका निर्माण किया था। भगवान शिव ने इसी धनुष से त्रिपुरों का नाश किया था। इसलिए भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी भी है। बाद में भगवान शिव ने ये धनुष अपने परम भक्त राजा देवरात को सौंप दिया था। ये राजा जनक के पूर्वज थे। देवी सीता के स्वयंवर में भगवान श्रीराम के हाथों ये धनुष भंग हो गया था।
रुद्रास्त्र- यह शिवजी का महाविध्वंसक अस्त्र था। इसे चलाने पर 11 रुद्रों की शक्ति एक साथ प्रहार करती थी। महाभारत के अनुसार अर्जुन ने रुद्रास्त्र के केवल एक प्रहार में ही तीन करोड़ असुरों का वध किया था।
चक्र भवरेंदु– भगवान शिवजी के चक्र का नाम भवरेंदु था। इसे अचूक शस्त्र माना जाता है।
खड़ग – इस अस्त्र से मेघनाद ने लक्ष्मण पर वार कर उन्हें घायल कर दिया था। मेघनाद पराक्रम में रावण से भी अधिक था। उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे खड़ग प्राप्त किया। ये अजेय शस्त्र था, इसलिए लक्ष्मण इसके वार से घायल हो गए थे।
पाशुपात – इस अस्त्र का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। महाभारत के अनुसार अर्जुन ने घोर तपस्या कर शिवजी से ये अस्त्र प्राप्त किया था। इसी अस्त्र से कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन ने कई योद्धाओं का वध किया था।