समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी की ‘नमामि गंगे’ परियोजना पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने वाराणसी में गंगा के पानी को लेकर एनजीटी की टिप्पणी का हवाला देते हुए पूछा कि पिछले दस वर्षों में इस परियोजना के नाम पर जो अरबों रुपये का फंड लिया गया था, वह कहां गया?
अखिलेश यादव ने गंगा के पानी में बढ़ते प्रदूषण को शर्मनाक बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि जिन्होंने माँ गंगा से झूठ बोला, उनके वादों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। ‘नमामि गंगे’ और ‘स्वच्छ गंगा’ के नाम पर धनराशि तो आवंटित की गई, लेकिन यह फंड गंगा के घाटों तक नहीं पहुँचा।
सपा अध्यक्ष ने कहा कि वाराणसी में गंगा इतनी दूषित हो चुकी हैं कि यह जल अब न तो पीने योग्य है और न ही स्नान करने के लायक। उन्होंने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि एनजीटी ने वाराणसी के डीएम से पूछा था कि क्या वे गंगा जल पी सकते हैं।
एनजीटी की मौखिक टिप्पणी में कहा गया कि गंगा के किनारे एक चेतावनी बोर्ड लगवाया जाए कि यह जल पीने-नहाने लायक नहीं है। अखिलेश यादव ने यह कहते हुए भाजपा सरकार पर निशाना साधा कि काशी की गंगा के हालात उनके लिए ‘चुल्लू भर पानी में डूबने’ समान हैं।
एनजीटी की सुनवाई के दौरान वाराणसी के डीएम एस राजलिंगम ने कहा कि गंगा जल का उपयोग पीने और स्नान के लिए नहीं हो सकता है और यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इसके बावजूद सरकार के आदेशों के अनुसार ही अधिकारी कार्य करते हैं।
वाराणसी में गंगा और सहायक नदियों की हालत को लेकर एनजीटी की सख्ती और अखिलेश यादव के इस बयान ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यह स्पष्ट करता है कि गंगा स्वच्छता के दावे जमीनी हकीकत से कितने दूर हैं।