वृंदावन के आराध्य देव ठाकुर श्री बांकेबिहारीजी महाराज से जुड़ा एक लगभग 300 वर्ष पुराना ऐतिहासिक प्रसंग आज भी श्रद्धालुओं के हृदय में अमिट रूप से अंकित है। उस काल में करौली रियासत की रानी साहिबा के अनुरोध पर ठाकुरजी करौली और फिर भरतपुर चले गए थे। उनका वृंदावन वापसी का संघर्षपूर्ण और बलिदानमय प्रसंग इतिहास में गोस्वामी रूपानंद के नाम से दर्ज है, जिन्होंने बिहारीजी को वापस लाने के प्रयास में अपने प्राणों की आहुति दी।
ठाकुरजी की यात्रा: लतामंडप से रंगमहल, फिर करौली और भरतपुर तक
इतिहासकार आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी के अनुसार, ईस्वी सन् 1543 में स्वामी हरिदास द्वारा प्रकट किए गए श्रीबांकेबिहारीजी को 1607 तक लतामंडप, फिर 1719 तक रंगमहल में विराजित किया गया। इसी वर्ष करौली की रानी के प्रेमवश ठाकुरजी उनके साथ करौली चले गए और 1721 तक वहीं रहे। इसके पश्चात 1724 तक भरतपुर में निवास किया।
रूपानंद का बलिदान और वृंदावन वापसी
वर्ष 1724 में गोस्वामी रूपानंद ने ठाकुरजी को पुनः वृंदावन लाने में सफलता प्राप्त की। परंतु इस प्रक्रिया में वे स्वयं शहीद हो गए। उनकी समाधि वर्तमान विद्यापीठ चौराहे के समीप स्थित है। इसके बाद ठाकुरजी 1787 तक पुनः निधिवनराज में विराजमान रहे।
मंदिर की स्थापना और भूमि दान का इतिहास
ठाकुरजी का वर्तमान मंदिर 1748 में जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह द्वितीय के पुत्र महाराजा सवाई ईश्वरी सिंह द्वारा 1.15 एकड़ भूमि पर स्थापित कराया गया। यह भूमि उस समय ब्रज क्षेत्र के अधिकतर भाग पर अधिकार रखने वाले जयपुर राजघराने द्वारा दान की गई थी।
सेवाधिकार की लड़ाई और न्यायिक निर्णय
1755 में महादाजी शिंदे के नेतृत्व में आए ग्वालियर रियासत के अंतर्गत मथुरा जनपद के न्यायाधीश प्रहलाद सेवा ने निष्पक्ष निर्णय देते हुए गोस्वामीजनों को सेवाधिकार सौंपा, साथ ही विरोधी पक्ष के प्रमुख दोषियों को 12 वर्षों के लिए निष्कासित किया।
वर्तमान बिहारीपुरा और मंदिर की अवस्थिति
1787 में सेवायतों ने दुष्यंतपुर (दुसायत) में जयपुर रियासत से मिली भूमि पर छोटा मंदिर बनाकर ठाकुरजी को वहां विराजमान किया। यही क्षेत्र अब “बिहारीपुरा” के नाम से जाना जाता है।
हरिदासजी की विरासत और निधिवन का स्वामित्व
इतिहास के अनुसार, अकबर के नवरत्न सवाई मानसिंह प्रथम ने हरिदासजी के निवास निधिवन की भूमि से संबंधित दस्तावेज जगन्नाथजी को सौंपे थे। इन ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर आज तक गोस्वामी समाज निधिवन के आधिकारिक अधिकारी बने हुए हैं।
अन्य दानपत्र और मंदिर संबंधी भूखंड
1790 में करौली नरेश मानकपाल ने गोपालबाग स्थित भूखंड को बिहारीजी मंदिर को किराए पर दिलवाया। बाद में भूमि विवाद में समाधान करते हुए वह भूखंड माफ़ी जमीन घोषित किया गया। यह क्षेत्र अब मोहनबाग कहलाता है। मंदिर को इसके अलावा किशोरपुरा भूखंड, बिहारिनदेव टीला, और राधाकुंड व कोटा में भूमि दान में प्राप्त हुई।