अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी (एआईएमसी) द्वारा दायर पहली याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में एएसआई सर्वेक्षण को रोकने की मांग की गई है। एआईएमसी के वकील मुमताज अहमद और रईस अंसारी ने दलीलें पेश कीं। दूसरी याचिका में, चार हिंदू महिला वादियों ने अनुरोध किया कि जिला मजिस्ट्रेट को चल रहे ज्ञानवापी सर्वेक्षण के दौरान खोजे गए सबूतों को संग्रहीत करने का आदेश दिया जाए। इस मामले में वादी(plaintiff), पक्ष की ओर से अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने पैरवी की।
एआईएमसी ने तर्क दिया था कि हिंदू, वादी(plaintiff) एएसआई सर्वेक्षण शुरू करने से पहले सामान्य नियम (सिविल) की धारा 70 के अनुसार आवश्यक सर्वेक्षण खर्च जमा करने में विफल रहे। एआईएमसी ने यह भी तर्क दिया कि एएसआई ने नियमों का उल्लंघन करते हुए उन्हें सर्वेक्षण के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी।
इस बीच, श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में वादी(plaintiff) संख्या 2 से 5 द्वारा दायर एक अन्य याचिका में एएसआई सर्वेक्षण के दौरान पाए गए सबूतों की सुरक्षा के लिए जिला मजिस्ट्रेट को आदेश देने की मांग की गई। इस मामले में दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें भी पेश कीं।
इन दलीलों के अलावा, अदालती कार्यवाही के दौरान ज्ञानवापी के सीलबंद क्षेत्र में सर्वेक्षण का अनुरोध करने वाली एक अलग याचिका पर भी चर्चा की गई। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 28 सितंबर तय की है।
श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर विवाद शामिल है, जिसमें इसकी ऐतिहासिक उत्पत्ति के संबंध में दावे और प्रतिदावे शामिल हैं। एएसआई सर्वेक्षण यह पता लगाने के लिए किया जा रहा है कि क्या मस्जिद पहले से मौजूद हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार मई 2022 से सील किया गया क्षेत्र विवाद का केंद्र बिंदु है, क्योंकि हिंदू वहां एक शिवलिंग (एक पवित्र प्रतीक) की उपस्थिति का दावा करते हैं, जबकि मुसलमानों का कहना है कि यह एक फव्वारे का हिस्सा है।