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Sultanpur Loksabha Election 2024: बसपा के प्रत्याशी न उतारने पर बिगड़ सकते हैं अन्य पार्टियों के समीकरण

If BSP does not field candidates in Sultanpur, the equations of other parties may deteriorate

If BSP does not field candidates in Sultanpur, the equations of other parties may deteriorate

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सुल्तानपुर सीट से भाजपा ने जहां मौजूदा सांसद मेनका गांधी को तो सपा से भीम निषाद को मैदान में उतारा हैं। वहीं बसपा से अभी तर इस सीट से अपने प्रत्याशी का नाम सामने नहीं लाया है जिससे चुनावी समीकरण को लेकर सभी पार्टियां संदेह की स्थिति में हैं।

बता दें कि सुल्तानपुर में आगामी आम चुनाव 2024 छठवें चरण में है पर भाजपा की ओर से मौजूदा सांसद मेनका गांधी चुनाव प्रचार में लग चुकी हैं। यहां से उनका मुकाबला इस बार सपा के प्रत्याशी भीम निषाद से है ऐसे में वो भी इस सीट से कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे में ये कयास लगाया जा रहा था कि कौन इस सीट से विजय पटाका ले सकता है। पर ये सारी बातें तब तक सफेद हाथी हैं जब तक बसपा अपने पत्ते को न खोल दे और यहां से अपने प्रत्याशी को उतार न दे क्योंकि इस सीट से बसपा दो बार सांसद दे चुकी है।

दो बार बसपा से बन चुके हैं यहां सांसद

पहली बार साल 1999 के आम चुनाव में बसपा से जय भद्र सिंह को जीत मिली थी । इसके बाद अगले आम चुनाव में भी बसपा के मोहम्मद ताहिर ख़ान ने मैदान मारा था। लेकिन इसके बाद बसपा को इस सीट से जीत नहीं मिली परंतु 2019 के आम चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन से बसपा के टिकट पर उतरे चंद्रभद्र सिंह सोनू ने भाजपा को एड़ी-चोटी का जोर लगाने पर मजबूर कर दिया था और काफी कम वोटों से भाजपा को जीत मिली थी।

बसपा के 2019 के प्रदर्शन को देखें तो साफ है कि पार्टी इस सीट पर मजबूत पकड़ रखती है। बसपा अपने प्रमुख वोटों के बूते जहां हमेशा एक मजबूत दावेदार रही है, वहीं इस काडर वोट में जिले के प्रभावशाली जाति के व्यक्ति को टिकट मिल जाए तो पार्टी मैदान में बाजी मार सकती है।

यहां अनुसूचित जाति की आबादी करीब 30 फीसदी है। ऐसे में बसपा यदि जीतने की स्थिति में दूर-दूर तक हो, तो भी किसी के जीत का गणित खराब कर सकती है। इसलिए अंतिम परिणाम और प्रत्याशी को मैदान में न उतारने तक किसी भी साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

हाथी राजा युद्ध के घोड़े न बन जाएं

शतरंज के खेल में देखें तो हाथी का चाल सीधा होता है। लेकिन सियासत में बसपा का हाथी सीधी चाल चलता रहे ऐसा जरूरी नहीं है। अपना बेस वोट बैंक के साथ-साथ बसपा यदि सामान्य जाति से कोई दमदार उम्मीदवार उतार देती है तो इससे सीधा नुकसान भाजपा को होगा। वहीं यदि बसपा मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाती है तो भी इसका सीधा नुकसान सपा को होगा। इसलिए देखना रोचक है कि हाथी सीधा राह छोड़कर, कहीं घोड़े की तरह ढाई घर की चाल न चल दे।

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