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UP Politics: उपचुनाव के माहौल में अखिलेश और केशव प्रसाद का एक-दूसरे पर तंज कसने का, ये है कारण…

चाहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हों या फिर यूपी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य हों, दोनो ही ओबीसी वर्ग के बड़े नेता माने जाते हैं। पर, इन दोनों ही नेताओं के बीच किसी-न-किसी मुद्दे पर जुबानी जंग चलती रहती है। गौरतलब है कि जहां एक तरफ अखिलेश केशव को भाजपा और योगी सरकार में कमजोर होने का ठीकरा फोड़ते हैं तो वहीं केशव अखिलेश को यादव और मुस्लिम का नेता साबित करने पर पूरा जोर लगाकर रखते हैं।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
Updated:
UP Politics: उपचुनाव के माहौल में अखिलेश और केशव प्रसाद का एक-दूसरे पर तंज कसने का, ये है कारण…

चाहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हों या फिर यूपी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य हों, दोनो ही ओबीसी वर्ग के बड़े नेता माने जाते हैं। पर, इन दोनों ही नेताओं के बीच किसी-न-किसी मुद्दे पर जुबानी जंग चलती रहती है। गौरतलब है कि जहां एक तरफ अखिलेश केशव को भाजपा और योगी सरकार में कमजोर होने का ठीकरा फोड़ते हैं तो वहीं केशव अखिलेश को यादव और मुस्लिम का नेता साबित करने पर पूरा जोर लगाकर रखते हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी तंज कसने में नहीं रहते पीछे…

‘केशव प्रसाद मौर्य, दिल्ली का मोहरा बन गए हैं। दिल्ली के वाई-फाई के पासवर्ड बन गए हैं। क्या सरकार ऐसे चलेगी? दिल्ली वाले किसी से मिलते, तो अब लखनऊ वाले भी लोगों से मिलने लगे हैं।’ (अखिलेश यादव ने X पर अपने पोस्ट में लिखा)

‘अखिलेश यादव खुद कांग्रेस का मोहरा हैं। वह अपनी पार्टी को संभालने पर ध्यान दें। बीजेपी 2017 की तरह 2027 भी जीतेगी।’ (केशव मौर्य ने X पर अखिलेश को जवाब देते हुए लिखा)

केशव के कमजोर होने पर सपा को कैसे होगा फायदा

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यदि प्रदेश डिप्टी सीएम को कमजोर करने में सफल हो जाते हैं ऐसे में राजनीति विशेषज्ञ की माने तो सपा की राह पीडिए मॉडल के रूप में बहुत आसान हो जाएगी क्योंकि भाजपा के डिप्टी सीएम की पैंठ ओबीसी वर्ग में काफी अच्छी है।

इन दोनों नेताओं के बीच विवाद के बीज 2016 में हुए अंकुरित

बता दें कि भाजपा ने यूपी में पिछड़े वर्ग को साधने के लिए 2016 में केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यभार सौंपा था। तब अखिलेश यादव यूपी के सीएम थे। फिर 2017 में विधानसभा चुनाव केशव मौर्य की अगुआई में ही लड़ा गया। केशव के चेहरे के दम पर भाजपा को गैर यादव छोड़कर सभी पिछड़ी जातियों का समर्थन भारी मात्रा में मिला। इसमें भाजपा ने सपा को बुरी तरह से हरा दिया।

उस दौरान केशव प्रसाद मौर्य सीएम पद के प्रबल दावेदार थे। हालांकि वह सीएम नहीं बन पाए और डिप्टी सीएम बनकर उन्हें संतोष करना पड़ा। ऐसा इसलिए क्योंकि आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दीर्घकालिक राष्ट्रवाद की राजनीति को और धार देने के लिए योगी आदित्यनाथ को सरकार की कमान सौंपी। 2017 के इस हार के बाद से ही अखिलेश के निशाने पर केशव बन गए। तब से अखिलेश लगातार केशव के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा में पिछड़े वर्ग के नेताओं का कोई वजूद ही नहीं है।

अखिलेश और केशव के बीच राजनीतिक जंग 2017 में विधान परिषद के सदन से और तेज हो गई। सदन में अखिलेश ने केशव पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए पर्सनल अटैक करना शुरू कर दिया। अखिलेश ने कहा, पिछड़े वर्ग के नेता केशव सरकार में भी पिछड़े हैं। एनेक्सी में चेंबर से उनकी नेम प्लेट हटवा दिया गया। उन्होंने यहां तक कहा कि केशव सरकार में रहते हुए भी विपक्ष में हैं। उसके बाद केशव ने भी अखिलेश पर जमकर हमला बोला।

केशव की अहमियत भी बनी रहती है

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि, अखिलेश जब केश‌व पर हमला करते हैं तो इससे भाजपा की राजनीति में केशव का कद बढ़ ही जाता है। उनके समर्थक भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह बताने का मौका नहीं छोड़ते कि केशव ही अखिलेश से मोर्चा ले सकते हैं। इसके जरिए ही केशव की राजनीति भी आगे बढ़ रही है।

मोदी-योगी पर नहीं करते पर्सनल अटैक

जानकार मानते हैं कि, अखिलेश यादव कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी पर सीधा अटैक नहीं करते हैं। जब कभी केंद्र या प्रदेश सरकार के नीतिगत निर्णय का विरोध भी करना होता है, तो घुमा-फिराकर हमला बोलते हैं। केशव मौर्य और अखिलेश यादव की ओर से ही एक-दूसरे पर पर्सनल अटैक किया जाता है।

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