हाथरस में यमुना विकास प्राधिकरण (यीडा) के अधिकारियों और बिल्डरों की मिलीभगत से हुए 23.92 करोड़ रुपए के जमीन घोटाले में बड़ा कदम उठाया गया है। कमिश्नरेट पुलिस ने इस मामले में तत्कालीन अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी (एसीईओ) और हिमालय इंफ्रा कंपनी के निदेशक के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। इसके अलावा दो अन्य अधिकारियों समेत तीन और लोगों के खिलाफ जल्द ही आरोप पत्र दाखिल होने की संभावना है।
अब तक इस केस में 12 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। मामले की जांच कर रहे एसीपी प्रथम नोएडा जोन प्रवीण कुमार सिंह ने यह जानकारी दी।
रिश्तेदारों के जरिए सस्ती जमीन खरीदवाई
वर्ष 2019 में यमुना विकास प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ पीसी गुप्ता, एसीईओ सतीश कुमार और ओएसडी वीपी सिंह समेत 29 लोगों के खिलाफ बीटा-2 थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोपों के अनुसार, जब यमुना विकास प्राधिकरण हाथरस जिले में जमीन खरीदकर उसे विकसित करने की योजना बना रहा था, तब अधिकारियों ने मिलीभगत कर अपने रिश्तेदारों और परिचितों के नाम पर जमीन किसानों से कम कीमत पर खरीदवा ली।
इसके बाद वही जमीन प्राधिकरण को ऊंची कीमत पर बेची गई, जिससे सरकार को करोड़ों का राजस्व नुकसान हुआ।
बिल्डर और अधिकारियों की सांठगांठ
जांच में यह भी सामने आया कि इस घोटाले में हिमालय इंफ्राटेक कंपनी के निदेशक विवेक जैन और ओएसडी के रिश्तेदार संजीव सहित कई लोग शामिल थे। इन्होंने किसानों से सीधे जमीन नहीं खरीदी, बल्कि फर्जी कंपनियों और दलालों के जरिए सस्ते में अधिग्रहण कर ऊंचे दामों पर बेचा।
सरकार को हुए नुकसान और इस गड़बड़ी को छिपाने के लिए मामले को लंबे समय तक लटकाया गया, लेकिन जब जांच एसीपी प्रथम प्रवीण सिंह को सौंपी गई, तब तेजी से कार्रवाई शुरू हुई।
आरोपियों पर कार्रवाई और संभावित गिरफ्तारियां
अब तक की जांच के आधार पर हिमालय इंफ्रा कंपनी के निदेशक विवेक कुमार जैन को 8 जनवरी को गिरफ्तार कर मेरठ जेल भेज दिया गया। अब इस मामले में तत्कालीन उप मुख्य कार्यपालक अधिकारी और अन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी की संभावना जताई जा रही है। सरकार से अभियोजन स्वीकृति मिलने के बाद ही आरोपियों पर कानूनी कार्रवाई आगे बढ़ेगी।
जरूरत से अधिक जमीन की खरीद-फरोख्त
जांच में पाया गया कि योजना के तहत सिर्फ 5 हेक्टेयर जमीन की जरूरत थी, लेकिन अधिक मुनाफा कमाने के लालच में 14.5 हेक्टेयर जमीन औने-पौने दामों में खरीद ली गई। कुछ समय बाद इसी जमीन की कीमत को तीन गुना बढ़ाकर बेचा गया, जिससे बिचौलियों और प्राधिकरण के अधिकारियों को करोड़ों का फायदा हुआ।
पहले भी हो चुका है ऐसा घोटाला
हाथरस जमीन घोटाले से पहले मथुरा में भी इसी तरह की हेराफेरी सामने आई थी। वहां भी 57 हेक्टेयर जमीन को पहले सस्ते में खरीदा गया और फिर ऊंची कीमत पर बेचा गया। हैरानी की बात यह है कि मथुरा घोटाले में शामिल लोग ही हाथरस घोटाले में भी सक्रिय थे।
सरकार की कार्रवाई और आगे की जांच
इस घोटाले को लेकर अब सरकार और प्रशासन सख्त कार्रवाई के मूड में है। जल्द ही बाकी आरोपियों की गिरफ्तारी और संपत्तियों की जांच की जा सकती है। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या सरकार भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करेगी, या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा?