भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आज़मगढ़ एक संसदीय क्षेत्र है जो की संसदीय सीट सुल्तानपुर और जौनपुर जैसे जिलों से बॉर्डर साझा करता है। आज़मगढ़ ज़िले का मुख्यालय भी है और तमसा नदी (टोंस नदी) के तट पर स्थित है। इस सीट पर यादव बाहुल्य वोटर ज्यादा हैं। यहां से मुगल शासन काल के दौरान कुछ राजपूतों ने धर्म परिवर्तन बेशक कर लिया था,पर बाकी लोग अपने धर्म पर अडिग रहे और मुगलों से डटकर मुकाबला किया था।
यह जिला मऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर और अंबेडकर नगर जिले की सीमा से बॉर्डर साझा करता है। आजमगढ़ उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीट में एक है। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा आती है। और इस लोकसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 18,38,930 हैं, जिसमें पुरुष मतदाता 9,70, 935 तो वहीं महिला मतदाता 8,67, 968 हैं। वहीं थर्ड जेंडर की संख्या भी 30 से ऊपर है।
इस लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो सबसे ज्यादा यहां यादव ओबीसी, मुस्लिम और दलित समाज के लोग हैं, जिसमें 21% यादव ओबीसी, 19% दलित और 17% मुस्लिम हैं। बाकी भूमिहार, ठाकुर, ब्राह्मण, कायस्थ की संख्या केवल 4 से 8 फीसदी है।
16वीं शाताब्दी के अंत में (1594 ईस्वी) दिल्ली का शासन मुगल शासक जहांगीर के हाथों में था, उस समय युसूफ खान को जौनपुर का सूबेदार बनाया गया था। वहीं, पास में स्थित फतेहपुर के राजपूत चंद्रसेन सिंह के पुत्र अभिमान सिंह (अभिमन्यू सिंह) मुगलों के सिपहसालार के रूप में कार्यरत थे। उस समय आसपास के इलाकों में अशांति का माहौल बना हुआ था, जिसे समाप्त करने के लिए जहांगीर ने अभिमान सिंह को कमान सौंपी और उन्होंने विद्रोह को कुचल दिया।
जिससे प्रसन्न होकर जहांगीर ने इनाम के रूप में 1500 घुड़सवार के साथ सवा 9 लाख रुपये देकर उन्हें जौनपुर के पूर्वी इलाकों की कमान दे दिया। इसके बाद अभिमान सिंह ने मेहनगर को अपनी राजधानी के रूप में चुना और बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार करके अपना नाम दौलत इब्राहिम खान रख लिया और पुत्र न होने के कारण अपने भतीजे हरिवंश सिंह को अपने राज का मालिक बना दिया।
आज़मगढ़ की स्थापना वर्ष 1665 में मुगल काल के समय हुई थी। 18 दिसंबर, 1832 को यह एक जिला के रूप में जाना गया और अंग्रेज सर थॉमसन को नवनिर्मित जिला “आजमगढ़” के पहले कलेक्टर नियुक्त किये गए थे। वर्तमान में यह जगह बनारसी साड़ियों के लिए काफी प्रसिद्ध है और इन बनारसी साड़ियों का निर्यात पूरे विश्व में होता है। इसके साथ-साथ यहां ठाकुरजी का एक पुराना मंदिर और राजा साहिब की मस्जिद भी है। पहले इस स्थान को कासिमाबाद कहा जाता था। कुछ समय बाद इस जगह का फिरसे पुर्ननिर्माण करवाया गया। इसे दुबारा राजा मुबारक ने निर्मित करवाया था।
1857 की क्रांति 10 मई को मेरठ से बेशक शुरू हुई थी, लेकिन आजमगढ़ में देश के क्रांति का असर 3 जून को दिखाई दिया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने पहली बार 3 जून 1857 को आजमगढ़ को, अंग्रेजों से मुक्त कराया ता और इसके बाद आजमगढ़ 25 जून 1857 तक आजाद था। इसके बाद फिर अंग्रेजों ने यहां कब्जा कर किया तो स्वतंत्रता सेनानियों ने फिर से 18 जुलाई 1857 से 26 अगस्त 1857 तक दूसरी बार आजमगढ़ को आजाद रहा। इसके बाद अंग्रेज फिर कब्जा करने में सफल हुए। तो वहींं स्वतंत्रता सेनानियों ने तीसरी बार फिर से 25 मार्च 1858 से 15 अप्रैल 1858 तक देश को अंग्रेजों से दूर रखा। ऐसे में इन 3 बार के फतह में कुल 81 दिनों तक आजमगढ़ अंग्रेजी हुकुमत से आजाद रहा।
इस लोकसभा सीट से 1989 से यादव या मुस्लिम ही जीतते आ रहे हैं। उससे पहले भी इस सीट से यादव उम्मीदवार जीत दर्ज कर चुके हैं। आजमगढ़ लोकसभा सीट कांग्रेस (Congress) के पास पहले लोकसभा चुनाव से 1971 तक रही। 1952 में अलगू राय शास्त्री, 1957 में कालिका सिंह, 1962 में राम हरख यादव, 1967 और 1971 में चंद्रजीत यादव ने कांग्रेस से जीत दर्ज की थी।
साल | विजेता (पार्टी) | हारे (पार्टी) |
2019 | आजम खां (सपा) | जया प्रदा (भाजपा) |
2014 | डॉक्टर नैपाल सिंह (भाजपा) | नसीर अहमद खान (सपा) |
2009 | जया प्रदा (सपा) | बेगम नूर बानो (कांग्रेस) |
2004 | जया प्रदा (सपा) | बेगम नूर बानो (कांग्रेस) |
1999 | बेगम नूर बानो (कांग्रेस) | मुख्तार अब्बास नकवी (भाजपा) |
1998 | मुख्तार अब्बास नकवी (भाजपा) | बेगम नूर बानो (कांग्रेस) |
1996 | बेगम नूर बानो (कांग्रेस) | राजेन्द्र शर्मा (भाजपा) |
1991 | राजेन्द्र शर्मा (भाजपा) | जुल्फीकार अली खान (कांग्रेस) |
1989 | जुल्फीकार अली खान (कांग्रेस) | राजेन्द्र शर्मा (भाजपा) |
1984 | जुल्फीकार अली खान (कांग्रेस) | राजेन्द्र शर्मा (भाजपा) |
आजम खान का जन्म 14 अगस्त 1948 रामपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी मां मुमताज खान थी। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून के विषय में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने 1981 में तजीन फातमा से शादी की और उनके दो बेटे हैं। वहीं राजनीति में आने से पहले, उन्होंने एक वकील के रूप में भी काम किया है। उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान 2017 से 2019 तक स्वारटांडा से विधायक थे। आजम खान रामपुर विधानसभा क्षेत्र से नौ बार विधायक रह चुके हैं। वह उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। 1980 और 1992 के बीच वे चार अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य भी रहे हैं और वर्तमान में समाजवादी पार्टी के सदस्य के रूप में अपने कार्यों का निर्वहन किया जाता है।