बागपत शहर को मूल रूप से ‘व्यग्रप्रस्थ’ नाम से विख्यात था – बाघों की भूमि से इस शहर ने बागपत नाम कैसे अर्जित किया है। इसके बारे में एक संस्करण बताता है कि शहर का मूल नाम पहले ‘व्यगतप्रस्थ’ था, जबकि एक अन्य संस्करण की माने तो, शहर ने हिंदी शब्द ‘वक्षप्रसथ’ से अपने आज के नाम को प्राप्त किया है, जिसका अर्थ है भाषण देने का स्थान। ऐसे शब्दों और संस्करणों से प्रेरित होकर आखिरकार बाद में ‘बागपत’ या ‘बाघपत’ नाम से बुलाया जाने लगा।
वहीं मुगल काल के दौरान 1857 के विद्रोह के बाद, शहर का महत्व बड़ गया और फिर इसे तहसील बागपत के मुख्यालयों के रूप में बसाया। बता दें कि लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। जिनके नाम सिवालखास, छपरौली, बड़ौत, बागपत और मोदीनगर हैं। इसमें सिवालखास सीट मेरठ जिले से और मोदीनगर गाजियाबाद जिले से शामिल की गई है।
बागपत सीट का संसदीय इतिहास
1989 और 1991 में इस सीट पर जनता दल की टिकट पर अजित सिंह प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे और चुनाव जीते थे। इसके बाद वे 1996 में कांग्रेस की तरफ से चुनाव जीते थे। वहीं 1999 में हुए आम चुनाव में अजित सिंह रालोद की टिकट पर जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। इस क्षेत्र के तहत विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनमें छपरौली, बड़ौत, सिवालखास, मोदीनगर व बागपत सीटें शामिल हैं। फिर केंद्रीय राज्यमंत्री और भाजपा उम्मीदवार सत्यपाल सिंह ने साल 2014 के आम चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह का किला मानी जाती है। ऐसे में इस सीट पर सपा के गुलाम मोहम्मद को हराकर कब्ज़ा किया।
2014 में क्या रहा परिणाम
- सत्यपाल सिंह, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 423,475, 42.2 फीसदी(जीते)
- गुलाम मोहम्मद, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 213,609, 21.3 फीसदी
- चौधरी अजित सिंह, राष्ट्रीय लोक दल पार्टी, कुल वोट मिले 199,516, कुल वोट का 19.9 फीसद
2019 में क्या रहा परिणाम
- बीजेपी के सत्यपाल सिंह को 5,25,789 वोट मिले (जीते)
- आरएलडी के जयन्त चौधरी को 5,02,287 वोट मिले
- नोटा को मतदाताओं ने 5,041 वोट दिए
2024 में कौन-कौन हैं इस सीट से उम्मीदवार
- भाजपा ने यहां से राजकुमार सांगवान को मैदान में उतारा है।
- सपा प्लस गठबंघन ने फिलहाल यहां से अभी तक किसी प्रत्याशी को नहीं उतारा है।
- बसपा ने इस सीट से प्रवीण बंसल को मैदान में उतारा है।
सत्यपाल सिंह के बारे में
सांसद सत्यपाल सिंह का जन्म 29 नवंबर 1955 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बसौली में रामकिशन और हुक्मवती के घर हुआ था। उन्होंने दिगंबर जैन कॉलेज, बड़ौत से रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है और दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में एम. फिल की डिग्री भी ली है। इसके बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से एमबीए किया और लोक प्रशासन में एमए और पीएचडी भी की है।
उन्होंने 31 जनवरी 2014 को अपने पुलिस पद से इस्तीफा दे दिया और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के लिए आवेदन किया और जल्द से जल्द अपने पद से मुक्त होने की मांग रखी ताकि वह आगामी राष्ट्रीय चुनाव में अपने आप को कैंडिडेट के रूप में खड़ा कर सकें। गृह मंत्री आरआर पाटिल , जो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से संबंधित थे , ने यह ऐलान किया कि डॉ. सिंह का आवेदन तत्काल स्वीकार कर लिया गया है।
सत्यपाल 2 फरवरी 2014 को मेरठ में आयोजित हो रहे एक रैली में भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, तत्कालीन भाजपा पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह और तत्कालीन यूपी प्रभारी अमित शाह की उपस्थिति में भाजपा पार्टी को ज्वाइन कर लिया।
बागपत संसदीय सीट का जातीय समीकरण
बागपत लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, और फिर उनके बाद जाट वोटर आते हैं तो गुर्जर की संख्या भी सवा लाख से ज्यादा है। वहीं इस सीट पर ब्राह्मण करीब डेढ़ लाख हैं।
बागपत क्यों प्रसिद्ध है
मुगल शासनकाल में इसे बागों का शहर के नाम से जाना जाना जाता था, ऐसे में बाद में इसे बागपत के नाम से जाना जाने लगा। आपको बता दें कि साल 1997 में मेरठ से विभाजित होकर स्वतंत्र जिले के रूप में सामने आया। इसी के साथ बागपत में ऐतिहासिक तौर पर बरनावा का लक्ष्य है, पुरा-महादेव मंदिर, मां मनसा देवी मंदिर समेत विभिन्न ऐतिहासिक स्थल बागपत जिले में ही स्थित है।