भारत में चुनाव एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में दुनिया के सबसे पुराने शहर और यहां से नरेंद्र मोदी का प्रत्याशी के रूप में(2014,2019 और 2019) उतरने से इस सीट पर सभी कि निगाहें जाना स्वभाविक है। बनारस के इस सीट पर सन 2009 से ही भगवा रंग का परचम फहरा रहा है। वहीं 2014 में यहां से गुजरात के वडोदरा सीट के साथ मोदी ने बनारस से भी नमांकन पत्र भर दिया तो वहीं केजरीवाल ने भी यहीं से संसदीय नमांकन कर दिया पर वहां उन्हें भारी हार का सामना करना पड़ा और वे दोबारा दिल्ली विधानसभा से चुनाव लड़ने लगे।
वाराणसी का इतिहास
पौराणिक रूप से वाराणसी शहर संसार के सबसे प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है। इस शहर को हिंदू धर्म के लोगों के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म के लोग भी पूजनीय और पवित्र मानते हैं। वहीं इस शहर का नाम पहले काशी था, जो बाद में बनारस के नाम से जाना गया और फिर वाराणसी का नाम से विख्यात हुआ। लेकिन, आज भी बड़ी संख्या में लोग इसे काशी और बनारस के नाम से ही बुलाते और जानते हैं।
बता दें कि बनारस का नाम वरुणा और असि नदी के नाम पर रखा गया तो वहीं इसका नया नाम वाराणसी है। ये दोनों वरुणा असि नदी वाराणसी से होकर गुजरती हैं। वैसे तो वाराणसी से कई छोटी-बड़ी नदियां गुजरती हैं लेकिन इन दो नदियों का शहर के साथ कुछ अलग ही संबंध रहा है। वाराणसी में बहने वाली वरुणा नदी उत्तर में गंगा नदी के साथ मिलती है तो असि नदी दक्षिण में गंगा से मिल जाती है। वरुणा और असि नदियों के साथ-साथ पवित्र गंगा नदी भी वाराणसी से होकर गुजरती है। इसी के साथ वाराणसी शहर को मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी, दीपों का शहर, ज्ञान नगरी, मुक्तिधाम जैसे नामों से भी जाना जाता है।
कब-कब कौन इस संसदीय सीट से जीता
वाराणसी संसदीय सीट साल 1957 में अस्तित्व में आई। वहीं 1951-52 के पहले आम चुनाव हुए थे तब वाराणसी जिले में बनारस पूर्व, बनारस पश्चिम और बनारस मध्य नाम से तीन लोकसभा सीटें थीं जिसे 1957 में एक सीट में बदल दिया गया। यहां हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी। कांग्रेस की तरफ से उतरे रघुनाथ सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार शिवमंगल राम को 71,926 वोट से मात दी थी। 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस से निर्वाचित रघुनाथ सिंह फिर से जीतने में सफल रहे थे। उन्होंने इस बार जनसंघ के उम्मीदवार रघुवीर को 45,907 वोटों से हराया था।
1967 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट से गैर कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। इस आम चुनाव में यहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने फते हासिल की थी और भाकपा उम्मीदवार एसएन सिंह ने कांग्रेस के आर. सिंह को यहां से 18,167 मतों से पीछे छोड़ दिया था। हालांकि, 1971 के चुनाव में जाने-माने शिक्षाविद राजा राम शास्त्री के इस सीट से लड़ने के कारण फिर से ये सीट कांग्रेस के पाले में आ गई। शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार कमला प्रसाद सिंह को 52,941 वोट से मात गिया था।
- 1971 के बाद आपातकाल का दौर आया जो कि 1976 में खत्म हुआ। और 1977 में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। वाराणसी सीट भी पार्टी के हाथ से निकल गयी ।यहां कांग्रेस के राजा राम को भारतीय लोक दल के चंद्रशेखर ने 1,71,854 वोट से हरा दिया।
- 1980 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने वाराणसी सीट पर वापसी की। यहां कांग्रेस की तरफ से उतरे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने पार्टी को जीत दिलाई। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) के प्रत्याशी, राज नारायण के खिलाफ 24,735 मतों से जीत प्राप्त की।
- 1984 में भी कांग्रेस ने अपने जीत को बरकरार रखा। इस चुनाव में पार्टी के श्याम लाल यादव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी ऊदल के कंपेरिजन 94,430 वोटों से विजयी हुए।
- साल 1989 के आम चुनाव में भी कांग्रेस को इस सीट से हाथ गवाना पड़ा। इस बार जनता दल के अनिल शास्त्री ने कांग्रेस के उम्मीदवार श्याम लाल यादव को 1,71,603 वोटों से परास्त कर दिया था।
- वहीं साल 1991 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट पर भाजपा आसीन हुई। भाजपा के शीश चंद्र दीक्षित ने माकपा के राजकिशोर को 40,439 मतों से परास्त कर ये साट अपने पाले में कर ली। तब से यह सीट भाजपा का गढ़ रही है।
- 1991 के बाद 1996 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने जीत दर्ज कर जायसवाल ने माकपा के राजकिशोर को 1,00,692 वोटों से मात दिया।
- 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने दूसरी बार वाराणसी लोकसभा सीट अपने नाम की। इस बार जायसवाल के खिलाफ माकपा पार्टी से उतरे दीनानाथ सिंह यादव को 1,51,946 वोटों से करारी हार मिली थी।
- 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने जीत की हैट्रिक लगाई। उन्होंने इस बार कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा को 52,859 मतों से हराया।
- 2004 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट पर 15 साल बाद कांग्रेस ने अपनी वापसी की। पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर हारने वाले राजेश कुमार मिश्रा ने अबकी बार यहां से जीत कर भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल के इंजन को रोक दिया। राजेश मिश्रा यह चुनाव 57,440 मतों से जीते थे।
- साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट एक बार फिर से देश की महत्वपूर्ण सीटों में शामिल हो गई। 2009 के इस चुनाव में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी उम्मीदवार थे। उनसे मुकाबले के लिए बसपा ने बाहुबली मुख्तार अंसारी को उतार दिया था और जब परिणाम आए तो करीबी मुकाबले में जोशी जीत दर्ज करने में सफल रहे। भाजपा ने इस चुनाव में 17,211 वोटों से जीत दर्ज की थी।
2014 के आम चुनाव से बदल गया खेल
लोकसभा चुनाव से पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को भाजपा पार्टी ने प्रधानमंत्री पद को अपने पार्टी के चेहरे के रूप में घोषित कर दिया था। वहीं, जब चुनाव लड़ने की बात आई तो नरेंद्र मोदी ने वडोदरा के साथ-साथ वाराणसी सीट से भी अपना नामांकन किया। उधर मोदी के खिलाफ आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल तो कांग्रेस से अजय राय मैदान में उतर चुके थे। उस चुनाव में वाराणसी पूरे देश में हॉट सीट के रूप में समझी जाने लगी।
इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी को 5,81,022 वोट मिले थे। वहीं दूसरे स्थान पर रहे केजरीवाल के पक्ष में 2,09,238 लोगों ने वोट दिया था। इस तरह से नरेंद्र मोदी 3,71,784 वोटों से चुनाव जीतने में सफल हुए थे। इसी जीत के साथ नरेंद्र मोदी संसद पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री बने। बता दें कि मोदी को वडोदरा सीट पर भी जीत मिली पर उन्होंने प्रतिनिधित्व के लिए वाराणसी को चुना।
2019 में क्या रहा परिणाम
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में उतरे। उनके सामने कांग्रेस ने अजय राय और सपा ने शालिनी यादव को उतारा। पर नतीजे एक बार फिर भाजपा के पक्ष में रहे और यहां प्रधानमंत्री ने सपा की शालिनी यादव को 4,79,505 मतों के बड़े अंतर से हराया। इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को 6,74,664 वोट, सपा उम्मीदवार शालिनी को 1,95,159 और कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय को 1,52,548 वोट मिले। ऐसे में मोदी दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने।
मोदी के बारे में
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को मेहसाणा जिले के वडनगर नामक एक छोटे से शहर में हुआ था, जो कि एक समय बॉम्बे में था लेकिन वर्तमान में गुजरात में स्थित है। बचपन से ही उन्होंने कई कठिनाइयों और बाधाओं का सामना किया, लेकिन उन्होंने अपने चरित्र और साहस के बल पर सभी चुनौतियों को अपने विकास के रूप में प्रयोग किया।
इसी के साथ नरेंद्र मोदी ने आरएसएस के साथ अपने कार्यकाल में विभिन्न अवसरों पर कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें 1974 के नवनिर्माण भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और 19 महीने (जून 1975 से जनवरी 1977) की कठोर सेवा, ‘आपातकाल की स्थिति’ शामिल थी जब भारतीयों के मौलिक अधिकार को खत्म करके नागरिकों का गला घोंट दिया गया था।
भाजपा में शामिल
1987 में, मोदी भाजपा में शामिल हुए और मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश कर गए। महज एक साल के भीतर उन्हें बीजेपी की गुजरात इकाई के महासचिव के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। इस समय तक वे एक अत्यधिक कुशल संगठनकर्ता के रूप में पार्टी में जाने, जाने लगे थे। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को सही इरादे से तैयार करने का चुनौतीपूर्ण कार्य किया जिससे पार्टी को राजनीतिक लाभ भी मिला और अप्रैल 1990 में केंद्र में गठबंधन की सरकार बनी।
हालाँकि ये सरकार सत्ता में अल्पकालिक ही रही और कुछ ही महीनों में बिखर गई, लेकिन भाजपा ने गुजरात पर जीत हासिल कर लिया और 1995 में गुजरात में अपने दम पर दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में अपना पैठ जमा लिया। तब से लेकर आजतक भाजपा गुजरात की निदेशक रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2014 से लगातार देश के शीर्ष पद पर काबिज हैं। वे पिछले 9 वर्षों से सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं। इन 9 वर्षों में वे पुरे विश्व पटल पर अपने कार्यों को लेकर छाए रहे और देश-विदेश में भारत का नाम ऊंचा किया है।
विश्व पटल पर भी शीर्ष देशों के साथ ही अन्य देशों के नेताओं ने प्रधानमंत्री के काम करने की सराहना की और उन्हें विश्व के शीर्ष नेताओं में शुमार किया है। प्रधानमंत्री ने 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान विषय से प्रथम श्रेणी में एमए किया और स्नातक की परीक्षा डीयू से 1978 में पूर्ण की थी।
इस बार बनारस संसदीय क्षेत्र से कौन हैं प्रत्याशी
लाकसभा 2024 आम चुनाव में वाराणसी संसदीय सीट से भाजपा की तरफ से तीसरी बार नरेंद्र मोदी ही प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए हैं, परंतु इंडी गठबंधन और अन्य पार्टियों ने अभी तक यहां किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। लेकिन सूत्रों के हवाले से यह बात सामने आ रही है कि इंडी गठबंधन की और से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को उतारा जा सकता है पर इसपर मोहर लगना अभी बाकी है।