LOK–SABHA POLL : 2024 : Badayoon : तकरीबन 19 लाख की आबादी वाले मुस्लिम बहुल एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां की लोक सभा की सियासत पर यादव मुस्लिम वोटर्स का सर्वाधिक असर रहा है। यह गठजोड़ चुनावी सियासी तस्वीर बदलने में भी सक्षम रहा है। इस कारण आजादी से अब तक छह बार मुस्लिम वर्ग के नेता इस क्षेत्र से सांसद रहे । पांच बार सलीम इकबाल शेरवानी और एक बार मोहम्मद असरार अहमद को सांसद चुना गया। इसलिए सीएए कानून लागू होते ही एहतियाती सतर्कता बढ़ाई गई। प्रदेश के उन जिलों में बदायूं शामिल है, जहां सीएएए को लेकर अलर्ट जारी है।
सभी राजनीतिक दलों के लिए अहम् भी रही है यह सीट
नोएडा : Badayoon : लोक सभा पर लोक सभा चुनाव को लेकर नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत पिछले 18 मार्च को हो चुकी है। इसके साथ ही राजनीतिक सरगर्मियां भी अपने चरम पर हैं। यह सीट अमूनन सभी राजनीतिक दलों के लिए अहम् मानी जाती है। लोक सभा चुनाव 2024 के शुरुआती दौर में पिछले 11 अप्रैल को यहां चुनाव भी कराये जा चुके हैं। सहरानपुर से चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवारों ने अपनी -अपनी जीत सुनिश्चित करने को जाल तो फेंका ही कई लोक -लुभावन वायदों से मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट डालने को हर तिकड़म भी अपनाया।
सबसे अधिक बार रशीद यहाँ से बने सांसद
अगर हम के चुनावी इतिहास की पड़ताल करें तो पहले ही संसदीय चुनाव से यह कांग्रेस के लिए गढ़ रही है। और देश के पहले संसदीय चुनाव वर्ष 1952 से लेकर 1971 तक चार लोक सभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों ने विजय पताका फहराया। हालांकि कांग्रेस के विजय रथ को जनता पार्टी सेक्यूलर के रशीद मसूद ने रोक दिया जो कि पांच बार सांसद भी रहे। दिलचस्प बात यह रही है कि उन्होंने इस दरमियान चार बार पार्टी बदली और जीत हासिल किया।
इस लोक सभा सीट पर समाजवादी पार्टी को सिर्फ एक ही बार जीत का स्वाद चखने का मौका मिला जब कि बहुजन समाजवादी पार्टी ने यहां से दो बार जीत हासिल की। वहीं , भाजपा को यहाँ से तीन बार जीतने का मौका मिला।
दूसरे लोकसभा चुनाव में मिला स्वतंत्र सीट का नाम
दलित और मुस्लिम बहुल यह क्षेत्र 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के दौरान दो लोकसभा क्षेत्रों में बंट गया था। इस क्षेत्र का एक हिस्सा देहरादून जिला और बिजनौर उत्तर-पूर्व लोकसभा सीट का हिस्सा था, जबकि दूसरे हिस्से का नाम सहारनपुर पश्चिम और मुजफ्फरनगर उत्तर लोकसभा सीट था। 1957 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले इस निर्वाचन क्षेत्र को दोबारा गठित कर सहारनपुर लोकसभा का नाम दिया गया। 1957 में दूसरी लोकसभा के चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस ने अजीत प्रसाद जैन और सुंदरलाल को चुनाव लड़ाया था।
अजीत प्रसाद को 202081 लाख वोट मिले, जबकि सुंदर लाल को 161181 लाख वोट मिले। दोनों उम्मीदवारों को विजेता घोषित किया गया। गौरतलब है कि संभवत: उस वक्त लोकसभा क्षेत्र का आकार बड़ा होने के चलते दो विजेता घोषित किए गए थे और यह स्थिति देश के 40 से अधिक लोकसभा क्षेत्रों की थी। इस सीट पर निर्दलीय लड़े अख्तर हसन ख्वा़जा 138996 लाख वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे।
जब पांच लाख वोटों से जीती थी कांग्रेस
1962 में बदायूं लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। कांग्रेस की लहर में इस निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर लड़े सुंदर लाल ने 104709 लाख वोट हासिल करके जीत दर्ज की। उन्होंने जनसंघ के ममराज को पांच लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। इसी तरह 1967 के चुनाव में भी कांग्रेस से लड़े सुंदर लाल ने 120891 लाख वोट हासिल कर जीत दर्ज की।
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे एस सिंह 83239 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस की जीत का यह सिलसिला 1971 में भी चला। 1977 में छठी लोकसभा के लिए हुए मतदान में यहां कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस की लहर यहां थम गई। भारतीय लोकदल के उम्मीदवार राशीद मसूद ने कांग्रेस प्रत्याशी जाहिद हसन को करारी शिकस्त दी। राशीद मसूद सातवीं लोकसभा के लिए 1980 में भी सहारनपुर से सांसद चुने गए। वह जनता पार्टी सेक्यूलर के टिकट पर चुनाव लड़े थे।
दो बार हार के बाद कांग्रेस को मिली जीत
1984 में कांग्रेस ने बदायूं सीट पर पलटी मारी और दो बार की हार के बाद जीत हासिल की। कांग्रेस के यशपाल सिंह को 277339 लाख वोट मिले, जबकि भारतीय लोकदल प्रत्याशी राशीद मसूद को 204730 लाख वोट हासिल हुए। इसके बाद 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में राशीद मसूद जनता984 में कांग्रेस ने सहारनपुर सीट पर पलटी मारी और दो बार की हार के बाद जीत हासिल की। कांग्रेस के यशपाल सिंह को 277339 लाख वोट मिले, जबकि भारतीय लोकदल प्रत्याशी राशीद मसूद को 204730 लाख वोट हासिल हुए। इसके बाद 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में राशीद मसूद जनतादल प्रत्याशी बने और जीत हासिल की। कांग्रेस दोनों बार यहां दूसरे नंबर पर आई।
इस बीच भाजपा ने देश की राजनीति में बढ़त बनाते हुए 1996 और 1998 में बदायूं सीट को अपने नाम कर किया। 1999 में बसपा ने दर्ज की जीत 1999 में 13वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में सहारनपुर सीट पर बसपा ने जीत हासिल की। यहां रालोद के राशीद मसूद ने बसपा उम्मीबदवार को कड़ी टक्कर दी। उन्हें 213352 लाख वोट मिले, जबकि विजेता बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खान को 235659 लाख वोट मिले। कई दल बदलने वाले राशीद मसूद ने 2004 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की।
राशीद को बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खान ने कड़ी टक्कर दी। राशीद को 353271 उन्हें 213352 लाख वोट मिले, जबकि विजेता बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खान को 235659 लाख वोट मिले। कई दल बदलने वाले राशीद मसूद ने 2004 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की।
राशीद को बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खान ने कड़ी टक्कर दी। राशीद को 353271 लाख वोट मिले, जबकि मंसूर को 326441 लाख वोट प्राप्त हुए। 15वीं लोकसभा के लिए 2009 में सहारनपुर सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया। उसके प्रत्याशी जगदीश सिंह राणा को 354807 लाख वोट पाए, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सपा नेता राशीद मसूद को 269934 लाख वोट मिले।
16 साल बाद भाजपा को मिली जीत
16वीं लोकसभा के लिए 2014 के चुनाव में मोदी लहर का असर रहा और बदायूं सीट पर भाजपा को 16 साल बाद जीत नसीब हुई। इससे पहले भाजपा 1998 में इस सीट से चुनाव जीती थी। 2014 में भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल को 472999 लाख वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेता इमरान मसूद को 407909 लाख वोट हासिल हुए।
अंत में हम यह भी जानेंगे कि सहारनपुर की स्थापना किसने की थी तो आपको हम बताना चाहेंगे कि राजा सहारन पीर ने बसाया था सहारनपुर
सहारनपुर की स्थापना 1340 के आसपास हुई और इसका नाम एक राजा सहारन पीर के नाम पर पड़ा। सहारनपुर की काष्ठ कला और देवबन्द दारूल उलूम विश्व पटल पर सहारनपुर को अलग पहचान दिलाते हैं। सहारनपुर में प्राचीन शाकुम्भरी देवी सिद्धपीठ मंदिर, इस्लामिक शिक्षा का केन्द्र देवबन्द दारूल उलूम, देवबंद का मां बाला सुंदरी मंदिर, नगर में भूतेश्वर महादेव मंदिर और कम्पनी बाग इसके प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। लकड़ी पर नक्काशी करने का काम सहारनपुर में काफी अधिक होता है। लखनऊ से इसकी दूरी 702.6 किलोमीटर और दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर है।