गाज़ीपुर शब्द का जिक्र इतिहास के पन्नों में नहीं हैं पर कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि राजा गढ़ी महारसी जमदग्नी के पिता थे। उस समय यह जगह को जंगलों से ढकी हुई थी जिसमें कई आश्रम थे जैसे कि यमदग्नी (परशुराम के पिता) आश्रम, पारसूम आश्रम, मदन वैन आदि। वहीं महर्षि गौतम का आश्रम यहां से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर था।
गाजीपुर प्राचीन काल से ही भारत के गुरुओं का गढ़ रहा है। गाजीपुर पर अपने अधिकार को लेकर देश के कई चक्रवर्ती सम्राटों से लेकर मुगल बादशाहों और अंग्रेजी शासकों तक एड़ी-चोटी तक जोर लगा दिया था। जिसके लिए कितने युद्ध लड़े गए, कितना खून बहा इस गाजीपुर पर अधिकार को लेकर ये सब इतिहास के पन्नो में रंगे हुए हैं। सम्राट हर्षवर्द्धन के शासन काल में भारत की यात्रा पर आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में गाजीपुर को ‘चेन-चू’ कहा है। चेन-चू यानी युद्ध के देवता की भूमि, जिसका संस्कृत अनुवाद ‘गर्जपतिपुर’ या ‘युद्धरणपुर’ है।
वहीं छठी शताब्दी के ईसा पूर्व में भारत में सोलह महाजनपदों का साम्राज्य कायम था। जिनमें मगध, काशी और कोसल तीनों साम्राज्यों की सीमा पर गाजीपुर स्थित था। स्वभाविक है मगध के प्रतापी राजा ‘अजातशत्रु’ और कोसल के सम्राट ‘प्रसेनजीत’ में गाजीपुर पर अधिकार को लेकर भयंकर युद्ध हुआ जिसमें विजय मगध साम्राज्य की हुई। जबकि मौर्यकाल में सम्राट अशोक ने अपने शासन में पूरे देश के महत्वपूर्ण केंद्रो पर स्तम्भ गड़वाए जिनमें पूरब में चंपारण से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान के कंदहार तक सम्मिलित है। सम्राट अशोक ने गाजीपुर के जमानिया में भी एक स्तंभ लगवाया जो आजतक मौजूद है। तो वहीं गुप्तकाल में भी गाजीपुर में सम्राट स्कंदगुप्त का एक बड़ा शानदार महल भितरी (सैदपुर) में बनाया था।
ये तथ्य इस बात को सिद्ध करते हैं कि प्राचीनकाल से ही गाजीपुर एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यही कारण है कि बाद में मुगल बादशाह हुमायूं, अकबर और ईस्ट इंडिया कंपनी को गाजीपुर पर अधिकार के लिए लंबी लड़ाइयां करनी पड़ी। लेकिन गाजीपुर का इतिहास गवाह है कि जिसने भी यहां अधिकार जमाया वो पूरे देश का बादशाह बन बैठा।
अब तक कुल 17 बार गाजीपुर लोकसभा सीट पर चुनाव हुए हैं वहीं कभी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस का गढ़ गाजीपुर लोकसभा सीट कही जाती थी।इस लोकसभा से कांग्रेस को लगातार 1952, 57, 62 में जीत मिली थी।फिर कांग्रेस को लोकसभा चुनाव 1980 व 1984 में विजय हासिल हुई थी।इसके बाद कांग्रेस को इस सीट से जीत कभी नसीब नहीं हुई।
1. हर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)- 1952
2. हर प्रसादसिंह (कांग्रेस)- 1957
3. विश्वनाथ सिंह, गहमरी (कांग्रेस) – 1962
4. सरजू पांडेय (सीपीआई) – 1967
5. सरजू पांडेय (सीपीआई) – 1971
6. गौरी शंकर राय (जनता पार्टी) – 1977
7. जैनुल बशर (कांग्रेस-आई) – 1980
8. जैनुल बशर (कांग्रेस-आई)- 1984
9. जगदीश कुशवाहा (निर्दलीय) – 1989
10. विश्वनाथ शास्त्री (सीपीआई) – 1991
11. मनोज सिन्हा (भाजपा)- 1996
12. ओमप्रकाश सिंह (सपा)- 1998
13. मनोज सिन्हा (भाजपा)- 1999
14. अफजाल अंसारी (सपा)- 2004 15. राधे मोहन सिंह (सपा) – 2009
16. मनोज सिन्हा (भाजपा)- 2014
17. अफजाल अंसारी (बसपा)- 2019
2019 के लोकसभा आम चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार अफजल अंसारी ने बाजी मारी थी। उन्हें इस आम चुनाव में कुल 566,082 वोट मिले थे जो कि कुल वोट प्रतिशत का 51.52 फीसद था। वहीं दूसरे नंबर पर भाजपा पार्टी के मनोज सिन्हा रहे जिन्हें 446,690 वोट मिले ये कुल वोट प्रतिशत का 40.65 फीसद था। वहीं तीसरे नंबर पर रामजी राजभर-सुहेलदेव भाकपा के गठबंधन को 33,868 वोट मिले थे।
अफ़ज़ाल अंसारी (14 अगस्त 1953) उत्तर प्रदेश के एक राजनेता हैं जिन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल का बहुजन समाज पार्टी में विलय कर लिया था। इन्होंने अपनी राजनीतिक शुरुआत वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव से कम्युनिष्ट पार्टी के टिकट के साथ किया था। वे पहली बार वर्ष 1985 में कम्युनिष्ट के टिकट पर मुहम्मदाबाद से विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे और जीतकर विधायक बने। अफजाल अंसारी अब तक दस चुनाव लड़ चुके हैं जिसमें से सात बार जीत हासिल कर चुके हैं।
इसके बाद वह वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा से पहली बार सांसद बने। परंतु वर्ष 2009, 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। वर्ष 2019 में अफजाल अंसारी ने सपा-बसपा गठबंधन में बसपा से चुनाव लड़कर तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को हरा दिया। ऐसे में 2024 के आम चुनाव में एक बार फिर सपा हाईकमान ने उनपर दांव लगाया है।
गाजीपुर में वोटरों के जाति समीकरण की बात की जाए तो ज्यादातर इन्हीं आंकड़ों को केंद्र में रखकर राजनीतिक पार्टियां अपनी सियासी मैदान की तैयारी करती हैं। इस सीट पर यादव वोटर 4.50 लाख, दलित 4 लाख, मुस्लिम 2.70 लाख, राजपूत 2.70 लाख, कुशवाहा 1.20 लाख, बिंद 1 लाख, अन्य पिछड़े 1.50 लाख, ब्राह्मण 1.60 लाख, भूमिहार 0.40 लाख, वैश्य अगड़े 0.30, वैश्य पिछड़े 1.50 और अन्य 0.20 लाख हैं।