लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के मतदान 19 अप्रैल से होने जा रहा है पर झांसी में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रहा है। यहां जिलाध्यक्ष और ज्वाइनिंग कमेटी को बगल में करके दो नेताओं को भगवा पट्टा पहनाने का मामला शांत नहीं हुआ था और अब एक और मामला यहां उबाल मारने लगा है। यहां एक विधायक अपने करीबी पूर्व उप सभापति को भाजपा में दोबारा से वापस लाने के प्रयास में लगे हैं।
जिसको लेकर पार्टी के अंदर ही एक बड़े विधायक के साथ एक अन्य विधायक अंदर ही अंदर विरोध में आ गए हैं। वहीं एक ज्वाइनिंग के संदर्भ में भाजपा नेताओं के बीच शह-मात का गेम चल रहा है। पर अब आगे देखना होगा कि क्या इन तमाम मतभेदों के बाद उनकी वापसी हो पाएगी? इसको लेकर राजनीतिक सलाहकारों की बात को माने तो इस दौरान यहां पार्टी के अंदर ऐसी उठक-पटक होना पार्टी के लिए नकारात्मक रूप ले सकती है।
पिछले साल नगर निगम चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने कई सिटिंग पार्षदों के टिकट को काटकर प्रत्याशी ही बदल दिए थे। पार्टी के इस फैसले से नराज होकर पार्षदों ने भाजपा प्रत्याशी के विरोध में निर्दलीय उम्मीदवार को खड़ा कर दिया था। जिनमें से कुछ को ते जीत का स्वाद मिला पर ज्यादातर को मुंह की खानी पड़ी थी।
अब लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले पार्टी ने ऐसे तमाम नाराज धड़ों की घर वापसी शुरू करानी शुरू कर दी है, जो पार्टी में विश्वास रखते हैं। बता दें कि पिछले दिनों महापौर बिहारी लाल आर्य व नेता सदन दिनेश प्रताप सिंह उर्फ बंटी राजा की अगुवाई में पार्षद लखन कुशवाहा, राहुल कुशवाहा, ममता सुगर पाल, रामजी यादव, अतुल कुमार, पूजा शशिकान्त श्रीवास व रिंकू वंशकार को लखनऊ ले जाकर सदस्यता ग्रहण कराकर पार्टी की शपथ दिलाई थी।
ये सभी वही पार्षद हैं, जिन्होंने नगर निगम चुनाव के समय भाजपा से बगावत कर चुनावी रण में बाजी मार लिया था। इनके अलावा भी रामजी रामायणी, मनीष खटीक, रणजीत सोनी समेत कुछ और बागियों को भी भाजपा में दोबारा से सम्मिलित कर लिया गया है।
बागियों की इस भीड़ में नगर निगम के एक पूर्व उप सभापति भी शामिल थे। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए थे। अब उनकी घर वापसी को लेकर दो गुटों में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। दरअसल, इस पूर्व उप सभापति को एक विधायक का बेहद करीबी माना जाता है। इसलिए विधायक उनकी घर वापसी कराने के प्रत्येक टिकड़म के अपना रहे हैं।
पर संगठन के एक पदाधिकारी ने उनके इस काम में रोड़ा अटका दिया है और इसके लिए उन्हें दूसरे विधायकों का समर्थन भी मिल चुका है। ऐसे में अब पूर्व उप सभापति को लेकर दोनों धड़े आमने-सामने आ गए हैं, लेकिन यह पूरा खेल पार्टी के परिवेश में चल रहा है, जिस पर कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है।