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मिल्कीपुर उपचुनाव: भाजपा-सपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई, लगा रहीं एड़ी-चोटी का जोर

मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। जहां भाजपा अयोध्या में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, वहीं सपा के लिए यह सीट बचाने की चुनौती है।

By: Rekha  RNI News Network
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मिल्कीपुर उपचुनाव: भाजपा-सपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई, लगा रहीं एड़ी-चोटी का जोर

मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। जहां भाजपा अयोध्या में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, वहीं सपा के लिए यह सीट बचाने की चुनौती है।

भाजपा के लिए ‘हिसाब बराबर’ करने का मौका

मिल्कीपुर विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में शामिल हो गई है। जनवरी 2024 में राममंदिर उद्घाटन के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर हार का सामना करना पड़ा। सपा इसे धर्मनिरपेक्षता की जीत के तौर पर प्रचारित करती रही। इस हार के बाद भाजपा मिल्कीपुर उपचुनाव को जीतकर अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस पाना चाहती है।

सपा के लिए ‘सीट बचाने’ का लक्ष्य

मिल्कीपुर सीट सपा सांसद अवधेश प्रसाद के लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद खाली हुई है। अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा इसे हर हाल में जीतने की कोशिश कर रही है। अखिलेश ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित करने की रणनीति अपनाई है, ताकि चुनावी प्रक्रिया पर अधिक निगरानी रखी जा सके।

भाजपा और सपा के लिए क्यों अहम है यह चुनाव?

हाल ही में उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने सात सीटें जीतीं, जबकि सपा को केवल दो सीटों से संतोष करना पड़ा। अब मिल्कीपुर उपचुनाव भाजपा के लिए अयोध्या क्षेत्र में अपनी मजबूत स्थिति का संदेश देने का मौका है। दूसरी ओर, सपा के लिए यह सीट उनकी साख से जुड़ी हुई है।

कौन मारेगा बाजी? 8 फरवरी को होगा फैसला

दोनों पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा नेतृत्व जहां क्षेत्रीय मतदाताओं को लुभाने में जुटा है, वहीं सपा अपने कार्यकर्ताओं को संगठित कर रही है। इस उपचुनाव का परिणाम यह तय करेगा कि मिल्कीपुर की जनता भाजपा के विकास एजेंडे को अपनाती है या सपा के धर्मनिरपेक्षता के नारे को।

क्या सपा अपनी सीट बचा पाएगी या भाजपा हिसाब बराबर करेगी? इसका जवाब 8 फरवरी को आएगा।

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