यह लाख टके का सवाल है कि इस बार के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का मुस्लिम मतदाता किस पार्टी का रुख करते हैं जहाँ मतदान को महज एक हफ्ताह का ही समय शेष रह गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में यह सवाल भी उठा है कि क्या वहां की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी कुछ अलग ही फैसला कर सकते हैं क्योंकि अलीगढ में सियासी तस्वीर नित -प्रतिदिन नयी करवट ले रहा है। वहीं , यहाँ की मुस्लिम मतदाताओं की बैचैन करने वाली खामोशी सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच रही है। आईये जानते हैं क्या है पूरी तस्वीर, कैसा है मुस्लिम मतदाताओं का मूड ?
नोएडा : पश्चिमी उत्तर -प्रदेश में अलीगढ एक ऐसा मुस्लिम बहुल लोक सभा क्षेत्र है जहां की सियासी तस्वीर नित -प्रति दिन बदल रही है। इस बार यहां के मुसलमान वोट देने को लेकर खामोशी साधे हुए है जो सत्ता में बैठे लोगों के साथ उन लोगों की बैचनी को बढ़ा रही है जो उनसे इस बार बड़ी आस भी लगा बैठे हैं। हालांकि प्रदेश के मुस्लिम वोटर्स बैंक पर सपा -कांग्रेस के गठबंधन वाली इंडिया गठबन्धन सबसे बड़ी दावेदारी जता रहा है उधर बहुजन समाजवादी पार्टी की भी मुस्लिम मतदाताओं से कुछ अपेक्षायें हैं। साढ़े तीन लाख की आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र में सांसद असउद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन भी अपना दल कमरौदी के साथ पीडीएम गठबंधन कर मैदान में उतर पड़ी है वहीं , भारतीय जनता पार्टी भी इस कोशिश में है कि उसे भी मुसलिम आबादी का वोट मिले।
प्रदेश के मुस्लिम वोट बैंक पर विपक्षी दलों की ही नहीं बल्कि भाजपा की भी दावेदारी है। बसपा ने अब तक सपा से आगे बढ़कर 11 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जबकि सपा ने सिर्फ तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को अब तक टिकट दिया है। कांग्रेस ने अभी तक दो मुस्लिम प्रत्याशी दिए हैं। असद्उद्दीन ओवैसी ने अपना दल कमेरावादी के साथ पीडीएम गठबंधन बनाकर अभी जो पहली सूची जारी की है, उसमें एक मुस्लिम उम्मीदवार है। ऐसे में मुस्लिम वोटरों की अहमियत को देखते हुए भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दल उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में इंडिया एलायंस के बैनर तले सपा और कांग्रेस के बीच समझौता हो गया। चुनाव में मुस्लिमों को लुभाने के लिए गठबंधन किसी भी तरह की कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता। दरअसल, दोनों दलों सपा-बसपा में गठबंधन की मुख्य वजह मुस्लिम वोट बैंक को बंटवारे से रोकना ही था।
भाजपा अपने खाते में मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ने के लिए सहयोगी दलों की मदद से साधने की कोशिश कर रही है। भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले ग्रामीण मुस्लिमों को जोड़ने पर दांव लगा रही है। भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा ने इसके लिए कौमी चौपाल लगाने की शुरुआत की है। मुस्लिम महिलाओं को लुभाने के लिए शुक्रिया मोदी भाईजान (एसबीएम) अभियान पर काम हो रहा है।