बस्तीः जमीन को हथियाने के लिए चालबाज नए नए खेल खेल रहे हैं। जिसके चलते जमींदार लोग राजस्व दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। चालबाजों ने विभाग की मिलीभगत से राजस्व अभिलेख ही गायब कर दिए। इन जमीनों पर दूसरों का कब्जा हो गया है। मामला बस्ती जनपद के शहरी क्षेत्र स्थित सदर तहसील के पिकौरा शिवगुलाम मौजे का है। यहां की फसली वर्ष 1381 से 1390 तक यानी नौ वर्ष की नान जेडए खतौनी कलेक्ट्रेट स्थित जिला अभिलेखागार से गायब है। तहसील में भी इसका रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। बीस साल से तमाम फरियादी मुआयने के लिए भटक रहे हैं। इसकी पोल तब खुली जब इसी मौजे के एक जमींदार कुनबे के काश्तकार ने अपनी नान जेडए भूमि का मुआयना शुरू किया। पिछले बीस साल से उन्हें इस मौजे की नौ वर्ष की अवधि की खतौनी जिला अभिलेखागार से लगायत तहसील के रिकॉर्ड रूम तक में उपलब्ध नहीं है।
तहसील प्रशासन ने स्वीकारी बात
दरअसल शहरी क्षेत्र के पिकौरा शिवगुलाम मौजे की लगभग 40 साल पहले की नौ वर्षों की नान जेडए खतौनी गायब है। सरकारी मुलाजिम लिखित रूप से इस बात को स्वीकार कर रहे हैं। फरियादी के मुआयना संबंधी प्रार्थना पत्र पर 20 साल पहले ही जिला अभिलेखागार की ओर से पिकौरा शिवगुलाम मौजे की फसली वर्ष 1381 से 1390 तक की नान जेडए खतौनी तहसील से जमा न किए जाने का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। वहीं तहसील प्रशासन ने भी फरियादी के प्रार्थना पत्र पर इस अवधि की खतौनी का विवरण रिकार्ड में अंकित न होना बताया गया है।
शिकायतों के बावजूद नहीं हुई कार्रवाई
आपको बता दें कि फरियादी की नान जेडए भूमि दूसरों के कब्जे में है। लंबे समय से खतौनी में नाम भी बदल चुका है। फरियादी ने अपनी जमीन की तलाश में मुख्यमंत्री, राजस्व परिषद तक से गुहार लगाई है, लेकिन अभिलेख न मिलने से कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
समझिए पूरा प्रकरण
पिकौरा शिवगुलाम के रहने वाले सदानंद शुक्ल और राधेश्याम शुक्ल जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पूर्वजों के नाम भुजैनी पोखरा के नाम से नान जेडए जमीन दर्ज थी। 20 साल पहले उन्हें पता चला कि संबंधित भूखंड दूसरों के नाम दर्ज हो गया है और कब्जा भी हो चुका है। दोनों अपने पूर्वजों की नान जेडए जमीन की छानबीन शुरू की। पता चला कि फसली वर्ष 1390 के बाद की खतौनी में संबंधित भूखंड पर दूसरों का नाम दर्ज है। वह सत्यता की जांच के लिए इसके पूर्व फसली वर्ष 1381 से 1390 तक के खतौनी के मुआयना के लिए तहसील में प्रार्थना पत्र दिए। तहसील से बताया गया कि इस अवधि की खतौनी दाखिल दफ्तर हो गई है। इसके बाद वे जिला अभिलेखागार गए जहां से संबंधित अवधि की खतौनी जमा न होने संबंधी टिप्पणी के साथ उन्हें लौटा दिया गया। बाद में तत्कालीन तहसीलदार ने भी इस अवधि की खतौनी का ब्योरा विभागीय रिकार्ड में अंकित न होना बताया। 20 साल बीत गए अभी तक उन्हें इस अवधि की खतौनी मुआयने के लिए उपलब्ध नहीं कराई जा सकी है। यह तो एक बानगी भर है। बताया जा रहा है कि ऐसे ही शहरी क्षेत्र के अन्य मौजों की भी नान जेडए की पुरानी खतौनियों के गायब होने की खबर है।
डीएम ने की दोषियों पर कार्रवाई की बात
इस पूरे प्रकरण में जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने बताया कि इस प्रकरण जानकारी मिली हैं। जिसमें नॉन जेडए जमीन की 9 फसली वर्षो की खतौनी न मिलने की जानकारी मिली है। मामले की जांच के लिए टीम गठित कर दी गई है। जांच रिपोर्ट में दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
फसली वर्ष में होती हैं खितौनियां अफडेट
आपको बता दे कि राजस्व विभाग प्रत्येक फसली वर्ष में खतौनियों को अपडेट करता है। पुरानी खतौनियों को कलेक्ट्रेट स्थित जिला अभिलेखागार में जमा करा दिया जाता है। ताकि काश्तकार के मुआयने में, विभाग या न्यायिक प्रकिया में पुराने अभिलेखों से सत्यता का मिलान आसानी से हो सके। नान जेडए, सरकारी एवं सार्वजनिक उपयोग की जमीनों को हड़पने में पुरानी खतौनियों को ही आधार बनाया जाता है। इसमें छेड़छाड़ के बगैर नई खतौनी में नाम दर्ज करा पाना संभव नहीं होता है। वहीं जानकारों का कहना है कि नान जेडए जमीन जमींदार या राजा की होती है। यदि इस पर दूसरों का कब्जा है तो वह सिर्फ इसका उपभोग कर सकते हैं। इसे बेच नहीं सकते हैं। मालिकाना हक जमींदार का ही रहेगा।
बस्ती से संवाददाता धर्मेन्द्र द्विवेदी की रिपोर्ट