नोएडा के बहुचर्चित स्पोर्ट्स सिटी घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अपनी जांच को आगे बढ़ाते हुए सीधे बिल्डर साइटों का निरीक्षण किया। जांच के दौरान सीबीआई अधिकारियों ने लॉजिक्स इंफ्रा डेवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, लोटस ग्रीन कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड और जनायडु स्टेट की साइटों पर जाकर ब्रोशर और स्वीकृत नक्शों के अनुसार निर्माण की स्थिति का आकलन किया।
ब्रोशर में किए गए वादों और वास्तविक निर्माण में अंतर
सीबीआई की टीम ने बायर्स को दी जाने वाली सुविधाओं की स्थिति का मूल्यांकन किया और यह देखा कि क्या निर्माण कार्य ब्रोशर और स्वीकृत नक्शों के अनुरूप हुआ है या नहीं। इस दौरान कई खामियों और संभावित नियम उल्लंघनों का पता चला, जिन्हें टीम ने विस्तार से केस डायरी में दर्ज किया।
सीबीआई ने नोएडा प्राधिकरण से यह भी जानकारी ली कि इस निर्माण कार्य की निगरानी किस अधिकारी की जिम्मेदारी थी, और किसने ब्रोशर में दिए गए वादों की मंजूरी दी थी, जब वे प्राधिकरण के नियमों के खिलाफ थे।
सीबीआई फिर आ सकती है नोएडा प्राधिकरण, नोडल अधिकारी नियुक्त
इस जांच को विस्तार देने के लिए प्राधिकरण ने एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया है जो सीबीआई द्वारा मांगे गए दस्तावेज समय पर उपलब्ध कराएगा। संभावना है कि अगले सप्ताह सीबीआई की टीम फिर से नोएडा प्राधिकरण आ सकती है, ताकि दस्तावेज़ों और गवाहियों के आधार पर केस को मजबूत किया जा सके।
इससे पहले भी सीबीआई ने भूमि आवंटन, बकाया राशि, निर्माण की स्थिति, और उस दौरान तैनात अधिकारियों की सूची मांगी थी। जांच एजेंसी ने तीनों बिल्डरों के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण के कई पूर्व और वर्तमान अधिकारियों को संदेह के घेरे में रखा है।
तीन बिल्डरों के खिलाफ दर्ज हैं एफआईआर, हाईकोर्ट ने दिए थे जांच के आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में CBI और ED दोनों को जांच के आदेश दिए थे। CBI ने तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की हैं—लॉजिक्स इंफ्रा डेवेलपर्स, लोटस ग्रीन कंस्ट्रक्शन, और जनायडु स्टेट के खिलाफ। आरोप है कि इन कंपनियों ने 2011 से 2017 के बीच नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से घर खरीदारों के साथ धोखाधड़ी की।
CAG रिपोर्ट में हुआ था 9000 करोड़ के घोटाले का खुलासा
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में इस घोटाले की वित्तीय अनियमितताओं का गंभीर खुलासा हुआ था। रिपोर्ट में बताया गया कि नोएडा प्राधिकरण ने डेवलपर्स को ज़मीन बाजार दर से बेहद कम कीमत पर दी, जिसके कारण राज्य सरकार और प्राधिकरण को करीब 9000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
इसके अलावा, लीज प्रीमियम, ट्रांसफर चार्ज, और जुर्माना जैसे महत्वपूर्ण भुगतान नहीं किए गए, फिर भी अधिभोग प्रमाण पत्र (ओसी) जारी कर दिए गए। खेल से जुड़े बुनियादी ढांचे को विकसित किए बिना ही यह प्रमाण पत्र जारी किया जाना स्पष्ट नियामकीय चूक को दर्शाता है।