UP LS Election 2024: सपा के संरक्षक और संस्थापक के मृत्यु के बाद सपा सबसे बड़ी चुनावी लड़ाई के राजनीतिक मैदान पर हैं। इस आम चुनाव में अखिलेश के साथ-साथ उनके परिवार के अन्य सदस्यों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। हालांकि यह पहली बार सपा के राजनीतिक समर में हो रहा है कि सपा ने अपने परिवार के सदस्यों के अलावा किसी और यादव को अपने पार्टी से टिकट नहीं दिया है।
ऐसे में अखिलेश की राजनीतिक सोच उनके पिता मुलायम सिंह यादव से अलग दिखती है। उनके पिता मुलायम जहां यादवों के दम पर राजनीतिक मैदान में परचम लहराया और यादव समाज से ही किसी न किसी को प्रत्याशी के रूप में मैदान पर उतारा। परंतु अखिलेश की मौजूदा रणनीति ने भाजपा हैरान कर रखा है।
सूत्रों की माने तो सपा अब खुद को घोषित तौर पर यादवों की पार्टी के रूप में पहचान नहीं बनाना चाहती है। क्योंकि सपा परिवारवाद के आरोपों का तो जमकर खंडन कर सकती है लेकिन जब वह समाज के प्रत्येक तबके की बात करें तो ऐसे में वह सिर्फ यादवों की पार्टी बने रहने का आरोप अपने सर पर नहीं लेना चाहती है। वहीं कई मौकों पर परिवारवाद के जवाब में अखिलेश यादव स्वयं कह चुके हैं कि जो लोग परिवार वाले हैं वह बीजेपी को वोट न करें या बीजेपी उनसे वोट न मांगे।
मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मैदान नें उतरी सपा 62 सीटों के साथ मैदान पर है। अब तक सपा ने 59 उम्मीदवार भी उतार दिए गए हैं हालांकि कन्नौज से खुद सपा प्रमुख, आजमगढ़ से धर्मेंद्र, मैनपुरी से डिंपल, बदायूं से आदित्य और फिरोजाबाद से अक्षय यादन प्रत्याशी हैं। एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार राज्य में 19.40 फीसद संख्या यादव की हैं। ऐसे में यादव समाज अखिलेश के इस नए प्रयोग से खुद को कितना जोड़ पाते हैं ये तो खैर वक्त ही बताएगा।
बीते आम चुनाव की बात करें तो साल 2019 में सपा ने 11 यादवों को प्रत्याशी के रूप में मैदान पर उतारा था। इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश के अलावा अन्य सभी 9 प्रत्याशी मैदान हार गए थे। वहीं साल 2014 में सपा ने 13 यादवों को मैदान पर उतारा था जिसमें मुलायम सहित पांच उम्मीदवार चुनाव जीते थे। गौरतलब है कि उस समय अखिलेश यूपी के सीएम थे। आपको बता दें कि 7 बार के सांसद मुलायम सिंह यादव ने पहली बार साल 1999 में लोकसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। उसके बाद साल 2000 में अखिलेश लोकसभा चुनाव के रण में उतरे और मैदान को फतह किया।