प्रयागराज में लुप्तप्राय हो रहे पनियाले को योगी सरकार फिर से पुनर्जीवन देने जा रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ की पहल से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पहले से ही जुड़ा हुआ है और पहले से ही इस संदर्भ में अपना काम कर रहा है।
इस पुनर्जीवन कार्य में गोरखपुर स्थित जिला उद्यान विभाग और स्थानीय स्तर पर मजबूत कुछ प्रगतिशील किसान भी बागवनी संस्थान को अपनी यथा-संभव मदद दे रहे हैं।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी दामोदरन ने कहा कि संस्थान का प्रयास होगा कि यहां से विकसित किए जाने वाले पौधों में फल की संख्या अधिक हो। इसी के साथ लगने वाले फलों की गुणवत्ता भी बेहतर करना भी प्राथमिकता में शामिल है। बागवानों को कैनोपी प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। ताकि आगे भी बागों का रखरखाव भी आसानी से संभव हो सके।
पांच से छह दशक पहले पूर्वांचल में खूब मिलता था पनियाला
गौरतलब है कि पनियाला के पेड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाये जाते हैं। पर पांच से छह दशक पहले इनके आंकड़ों को देखें तो इन क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाला पनियाला पेड़ अब लुप्तप्राय की कैटेगरी में आ गया है।
स्वाद में कुछ खट्टा तो कुछ मीठे के साथ कसैला भी होता है इसका फल
स्वाद में इसका फल खट्टा कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैला होता है। जामुनी रंग के कुछ गोल और चपटे पके फल को हाथ में लेकर थोड़ा सा घुलाने से इसका स्वाद में मीठापन आ जाता है। स्वाद में खास होने के साथ-साथ यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
सरकार ने पनियाला को लुप्त होने से बचाने और बेहतर गुणवत्ता के पौध तैयार करने के लिए पिछले साल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्धित केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों के साथ गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया था।
इस दौरान इस संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. दुष्यंत मिश्र और डॉ. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने भी लिए थे। दोनों वैज्ञानिकों ने कहा कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का पता किया जा जाने का प्रयास किया जा रहा है।
उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन करके और उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए पौधों को तैयार कर किसानों और बागवानों को उपलब्ध कराया जाएगा।
इस साल भी गोरखपुर और आसपास के जिलों में निरक्षण करने जाएगी टीम
डॉक्टर दुष्यंत ने कहा कि पिछले साल जब हम इन पेड़ों का निरिक्षण करने गए थे तो सीजन ऑफ हो गया था। फलों की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं थी। फिर भी जो फल और पौधे लाए गए थे उनका एक ब्लॉक बनाकर विकास किया जा रहा है।
इस साल दशहरे के आस पास जब पनियाला का पीक सीजन होता है उस समय संस्था की टीम जाकर गुणवत्ता के फल लाकर उनकी गुणवत्ता चेक करेगी। जो सबसे बेहतर गुणवत्ता के फल होंगे उनसे ही नर्सरी तैयार कर किसानों को पौधे दिए जाएंगे।वहीं निदेशक टी दामोदरन का कहना है कि संस्था किसानों को तकनीक के अलावा बाजार उपलब्ध कराने तक सहयोग करने को तैयार है।
एंटीऑक्सीडेंट के साथ पनियाला में एंटीबैक्टीरियल गुण
मालूम हो कि पनियाला के पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी पाई जाती है। जिसेक कारण पेट के कई रोगों में ये काम आते हैं। स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में भी प्रयोग होता रहा है।
फल, लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाया गया है। पनियाला के फल में विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट मौजूद हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल को 300 से 400 रुपये किलो तक बेंचा जाता है।
इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर के भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) के रूप में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पनियाल के फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है। लकड़ी, जलावन और कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी है।
पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी जीआई
औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला के लिए जीआई टैगिंग संजीवनी साबित होगी। इससे लुप्तप्राय हो रहे इस फल की संख्या में फिर से वृद्धि देखने को मिलेगी। सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेराकोटा की तरह गोरखपुर का खास ब्रांड में शुमार होगा।
पूर्वांचल के दर्जन भर जिलों के लाखों किसान परिवार होंगे लाभान्वित
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के वरिष्ठ हॉर्टिकल्चर वैज्ञानिक डॉक्टर एस पी सिंह के अनुसार जीआई टैग मिलने का लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी मिलेगा।
ये सभी जिले समान एग्रोक्लाइमेटिक जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं। इन जिलों के कृषि उत्पादों की खूबियां भी एक जैसी होंगी।
जीआई टैग के लाभ
जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है। विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार-प्रसार करने में आसानी होती है।
आर्थिक महत्व
पनियाला परंपरागत खेती से अधिक लाभ देता है। कुछ साल पहले करमहिया गांव सभा के करमहा गांव में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के आर. दूबे गये थे। पारस के पास पनियाला के नौ पेड़ थे।
अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे। प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये आय होती थी। अब तो ये दाम पांच से छह गुने तक हो गए हैं। लिहाजा आय भी इसी अनुरूप बढ़ गई। खास बात ये है कि पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है। लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है।