संगम नगरी प्रयागराज में होली की शुरुआत एक अनूठी परंपरा, हथौड़ा बारात के साथ होती है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे होली के रंगों से सराबोर हुलियारों (होली खेलने वालों) द्वारा पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाया जाता है। इस बारात में दूल्हे के रूप में एक हथौड़े को सजाया जाता है, जबकि बाराती के रूप में सिर पर लाल पगड़ी बांधे सैकड़ों लोग ढोल-नगाड़ों और बैंड-बाजों की धुन पर झूमते नजर आते हैं।
शाही अंदाज में निकली हथौड़ा बारात
इस साल भी हथौड़ा बारात पूरी भव्यता और शान के साथ निकाली गई। प्रतीकात्मक रूप से इक्कीस तोपों की सलामी के साथ बारात का शुभारंभ हुआ, जिसे देखने के लिए शहर की गलियों और सड़कों पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी। बिजली की रंगीन रोशनियों और आतिशबाजी ने इस अनोखी परंपरा को और खास बना दिया।
दूल्हे हथौड़े की हुई नजर उतारी और आरती
बारात की शुरुआत से पहले दूल्हे यानी हथौड़े को पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार सजाया गया। किसी की नजर न लगे, इसलिए उसकी नजर उतारी गई और काला टीका लगाया गया। इसके बाद मेहमानों ने उसकी आरती उतारी, ठीक वैसे ही जैसे किसी पारंपरिक दूल्हे की होती है।
सब्जियों की माला से हुआ बारातियों का स्वागत
इस भव्य आयोजन में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरि और प्रयागराज के मेयर गणेश केसरवानी ने बारात की अगुवाई की। सिर पर लाल पगड़ी बांधे बाराती मस्ती में सराबोर होकर नाचते-गाते आगे बढ़ रहे थे। खास बात यह रही कि बारातियों का स्वागत फूलों की जगह सब्जियों की मालाओं से किया गया।
महंगाई डायन के पुतले से हुई हथौड़े की शादी
इस बार की हथौड़ा बारात में एक नया आयाम जोड़ा गया—हथौड़े की शादी महंगाई डायन के पुतले से कराई गई। इस प्रतीकात्मक विवाह का उद्देश्य यह दर्शाना था कि हथौड़ा महंगाई पर वार करके उसका अंत करेगा।
होलिका दहन के बाद होती है मुर्दे की बारात
प्रयागराज में होली की परंपराएं केवल हथौड़ा बारात तक सीमित नहीं हैं। इसके अगले दिन मुदगर बारात निकाली जाती है, जबकि होलिका दहन के बाद ‘मुर्दे की बारात’ निकालने की परंपरा भी निभाई जाती है। इन अनोखी परंपराओं को देखने के लिए दूर-दूर से लोग प्रयागराज पहुंचते हैं।
तीन दिनों तक रंगों से सराबोर रहती है प्रयागराज की सड़कों
जबकि भारत के अधिकांश हिस्सों में होली एक दिन मनाई जाती है, प्रयागराज में होली के रंग पूरे तीन दिनों तक विभिन्न अनूठी परंपराओं के साथ बिखरते हैं। हथौड़ा बारात, मुदगर बारात और मुर्दे की बारात जैसी परंपराएं इसे और खास बनाती हैं।