लखनऊ से भाजपा सांसद राजनाथ सिंह को एक बार फिर से मोदी मंत्री मंडल में रक्षा मंत्री का कार्यभार सौंपा गया है। गौरतलब है कि उन्हें 2019 के आम चुनाव में जीतने के बाद रक्षामंत्री का पद सौंपा गया था और 2024 में उन्हें यह पद फिर से सौंपा गया है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से उनके जीवन के बारे में जानते हैं और ये भी जानते हैं कि उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता बनने में कैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
राजनाथ सिंह का जन्म (10 जुलाई 1951 को) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी (अब जिला चंदौली में स्थित) जिले के एक छोटे से ग्राम बाभोरा में हुआ था। उनका जन्म एक राजपूत यानी क्षत्रीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राम बदन सिंह और माता का नाम गुजराती देवी था। वे क्षेत्र के एक साधारण कृषक परिवार में जन्में थे और आगे चलकर उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में भौतिक शास्त्र में आचार्य की उपाधी प्राप्त की। वे 13 वर्ष की आयु से (सन् 1964 से) संघ परिवार से जुड़े हुए हैं। मिर्ज़ापुर में भौतिकी व्याख्यता में शिक्षक की नौकरी लगने के बाद भी संघ से जुड़े रहे।
उन्होंने वर्ष 1974 में राजनीति में प्रवेश किया और कुछ समय बाद मिर्जापुर के भारतीय जनसंघ के सचिव बने। वर्ष 1975 में, वह जनसंघ के जिला अध्यक्ष और जेपी आंदोलन के जिला समन्वयक बने। वर्ष 1977 में, उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक के रूप में नामित किया गया।
राजनाथ सिंह के परिवार के बारे में बात करें तो उनके जीवन संगिनी का नाम सावित्री सिंह है। इनके 3 बच्चे हैं जिनमें से 1 पुत्री और 2 पुत्र हैं। जिनमें से बेटी का नाम अनामिका सिंह है। वहीं बेटों की बात करें तो एक बेटा पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं तो वहीं छोटा बेटा नीरज सिंह विकसित भारत और नमों ऐप के अम्बेस्डर रह चुके हैं।
राजनाथ सिंह ओर लाल कृष्ण आडवाणी का संबंध वर्तमान में और पहले भी अच्छा रहा है। असल में 2013 में जब राजनाथ सिंह बीजेपी के अध्यक्ष थे तो मोदी को पीएम पद बनाए जाने पर यह बात उठी थी कि राजनाथ सिंह और आडवाणी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और वे इससे नाराज हैं। लेकिन मीडिया में इस बात के उठने पर राजनाथ ने सामने आकर मीडिया को यह स्पष्ट किया कि लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दिए जाने से पैदा हुए संकट पर RSS दबाव में है। उन्होंने कहा कि ये खबरे पूरी तरह से निराधार हैं, मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि ये सभी बातें केवल हवा है। हां, यदि वे पार्टी के बड़े नेता हैं ऐसे में वे उचित सम्मान के हकदार हैं जिसको लेकर बीजेपी सजग है।
लेखक गौतम चिंतामणि की किताब राजनीति: “ए बायोग्राफी ऑफ राजनाथ सिंह” में इमरजेंसी के समय राजनाथ के स्थिति के बारे में बताया है। आपको बता दें कि राजनाथ सिंह मां से उनके अंतिम समय में मिल भी नहीं पाए थे, उन्हें उनकी मां के अंतिम संस्कार के लिए भी इमरजेंसी में जेल से रिहा नहीं किया गया था। अब आपको गौतम चिंतामणि के पुस्तक के निष्कर्ष को बताते हैं। जब राजनाथ सिंह को मिर्जापुर से गिरफ्तार कर लिया गया था।
साल 1975 में कांग्रेस की इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। जिसके बाद कई विरोधी नेताओं को बिना किसी कारण के जेल में डाल दिया जाने लगा। राजनाथ उस समय मिर्जापुर में संघ का काम देखते थे और साथ ही कॉलेज में शिक्षक की नौकरी भी करते थे। प्रतिदिन की तरह राजनाथ सिंह 12 जुलाई 1975 की सुबह उठने और कसरत करने के बाद कॉलेज जाने की तैयारी करने लगे। उसी समय दरवाजे पर पुलिसवालों ने दस्तक दिया जो कि उन्हें गिरफ्तार करने आए थे।
राजनाथ सिंह को मिर्जापुर में मीसा के अंतर्गत पुलिस ने गिरफ्तार किया। उन्हें इसलिए उस समय गिरफ्तार किया गया क्योंकि वे उस समय मिर्जापुर संघ के बड़े नेता बन चुके थे। इसलिए सख्त हिदायत के साथ किसी भी कोताही को बरतने के लिए मना कर दिया गया था। गौरतलब है कि मीसा के तहत गिरफ्तार हुए लोगों को, परिवार या किसी भी बाहरी सदस्यों से मिलने की इजाजत नहीं होती है। शुरुआत में तो वे मिर्जापुर जेल में बंद रहे पर बाद में उन्हें इलाहाबाद के नैनी जेल में भेज दिया गया।
परिवार को जब राजनाथ के इलाहाबाद जेल जाने की सूचना मिली तो उन्होंने उनसे मिर्जापुर रेलवे स्टेशन पर मिलने का प्लान बनाया। क्योंकि मिर्जापुर से उन्हें ट्रेन से ही इलाहाबाद ले जाया जा रहा था। उनकी पत्नी सावित्री और मां गुजराती देवी ट्रेन के पहुंचने से बहुत पहले ही रेलवे स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। परिवार इस घटना से बहुत डरा हुआ था क्योंकि किसी को नहीं पता था कि वह कितने समय तक जेल में रहेंगे। राजनाथ को ले जाने के लिए स्टेशन की सुरक्षा की व्यवस्था भी पूरी थी।
वहीं राजनाथ सिंह ने बहुत दूर से ही पत्नी और मां को देख लिया था। उनके साथ काम करने वाले कुछ कार्यकर्ता भी रेलवे स्टेशन पर मौजूद थे। लोगों ने उन्हें देखकर समर्थन में नारे लगाने शुरू किए ऐसे में राजनाथ सिंह के लिए मां और पत्नी की बात सुन पाना मुश्किल था। वहीं पुलिसकर्मी जल्दी से जल्दी उन्हें ट्रेन में बैठाना चाहते थे। इस दौरान उनकी मां ने राजनाथ को कहा, ‘बबुआ। माफी मांगना नहीं। चाहे उम्र भर काल-कोठरी में क्यों न कट जाए। कभी सिर मत झुकाना।’
मां की कही इस बात को सुनकर राजनाथ सिंह बहुत भावुक हो गए और उन्होंने राजनीति क्षेत्र में आगे बढ़ने का फैसला लिया। इमरजेंसी के दौरान अगस्त 1975 तक करीब 50 हज़ार लोगों को मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया था। इसी के साथ भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 में मिलने वाले सभी मौलिक अधिकार भी वापस ले लिए गए थे ऐसे में कोई कोर्ट के दरवाजे भी नहीं खटखटा सकता था। वहीं जब राजनाथ वापस आए तो वह एक शिक्षक नहीं बल्कि एक लोकप्रिय नेता बनकर लोगों के सामने उभरे।
बात 14 फरवरी 2016 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में पुलिस की कार्रवाई के विरोध के बीच उन्होंने एक विवाद पैदा कर दिया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि “JNU की घटना” लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद द्वारा समर्थित थी।
मई 2016 में, उन्होंने दावा किया कि दो साल की अवधि में पाकिस्तान से घुसपैठ में 52% की गिरावट आई है। 9 अप्रैल 2017 को, उन्होंने बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार के साथ भारत के वीर लॉन्च किया। यह उनके द्वारा शहीदों के परिवार के कल्याण के लिए की गई एक पहल थी।
राजनाथ सिंह (30वें रक्षा मंत्री ) को भाजपा ने 2024 में एक बार फिर से रक्षा मंत्रालय सौंपा है, आपको बता दें कि इससे पहले 2019 में (29वें रक्षा मंत्री )आम चुनाव के जीत के बाद हाई-कमान ने उन्हें गृहमंत्री से रक्षा मंत्री का परभार सौंपा था और गृह मंत्री का पद अमित शाह के दिया।