अयोध्या नगरी अपने लल्ला श्रीराम के स्वागत के लिए आंखे गढ़ा कर तैयार बैठी है। समस्त रामभक्त अब 22 जनवरी 2024 का बेसबरी से इंतेजार कर रहे हैं जब अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर श्रीराम लला अपने स्थान पर प्रतिष्ठित होंगे। परंतु यह खुशी राम भक्तों को ऐसे ही नहीं मिली है, राम भक्तों ने इसके लिए अपने सीने पर गोलियां भी खाई, जेल भी गए और कई अनसन और आंदोलन भी किए। जिसके फलस्वरूप श्री राम अपने जन्मस्थल पर विराजित होने जा रहे हैं और भक्तों को उनके 550 वर्ष से चले आ रहे संघंर्ष का फल देने जा रहे हैं।
बता दें कि राम मंदिर विवाद का मामला साल 2019 में 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के आदेश के बाद लगभग 550 सालों के बाद खत्म हुआ। इस आदेश के पहले यह मामला लगभग 350 साल से राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद के नाम से जाना जाता था। अब आइए इस विवाद के जन्म से लेकर इसके अंत तक हुई घटनाओं को विस्तार से जानते और समझते हैं और यह भी जानने का प्रयास करते हैं कि इस मामले को लेकर समय-समय पर प्रशासन और लोगों की क्या प्रक्रिया रही है।
इतिहासकारों की साक्ष्यों को माना जाए तो कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी के रूप में अवध को कालांतर काल में अयोध्या को नाम से जाना जाता था तो वहीं बौद्धकाल में साकेत नाम से जाना जाता था। वहीं अयोध्या को लेकर यह भी साक्ष्य सामने आते हैं कि अयोध्या मूल रूप से मंदिरों के शहर के रूप में जानी जाती थी। यह बात अयोध्या में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के अवशेषों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है। वहीं जैन धर्म की मान्यता की बात करें तो जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित 5 तीर्थकारों का जनम यहीं हुआ था। वहीं बौद्ध मत की माने तो यहां पर भगवान बुद्ध ने कुछ महीनों तक विहार(बौद्ध भिक्षुओं को कहा जाता है) किया था।
अयोध्या धाम को भगवान श्रीराम के पूर्वज तिवस्वान(सूर्य) के पुत्र वेवस्वत मनु ने बसाया था। तब से लेकर सूर्यवंशी के राजाओं ने अयोध्या पर राज किया और उनके राज करने की विजय पटाका महाभारत काल तक लहराता रहा। वहीं प्रभू श्रीराम के जन्म की बात करें तो इनका जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के घर में राजरानी और माता कैकेई के कोंख से हुआ था।
महर्षि वाल्मीकी ने रामायण ग्रंथ में रामजन्म भूमि की शोभा और महत्वता की तुलना देवताओं के राजा इंद्र के इंद्रलोक से की है। जो कि सभी तरह के धन और धान्य से परिपूर्ण रत्नों से गढ़ा बटाया है। जहां अतुलनीय छटा और गगन चुंबी इमारते शहर की सोभा में चार चांद लगा रही हैं।
वहीं ऐसा माना जाता है कि सरयू में श्रीराम द्वारा समाधि लेने के बाद अयोध्या नगरी उजड़ सी गई थी परंतु जन्मभूमि की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया था। इसके बाद श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या को पुनर्निमित किया और अगले 44 पीढ़ी तक रघुवंशियों की ध्वज पटाका लहराती रही।
इस ध्वज पटाका के नीचे आखिरी राजा के रूप में कौशलराज महाराज बृहब्दल तक चरम पर रही। जिन्हें महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के हाथों वीरगति प्राप्त करने के बाद अयोध्या अक बार फिर उजड़ गई पर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व बना रहा।
बाबरनामा के अनुसार 1526 में अयोध्या के पड़ाव के दौरान बाबरी मस्जिद को निर्माण कराने का फरमान जारी किया था। वहीं अयोध्या में निर्मित की गई मस्जिद में जुड़े दो संदेशों के अवशेषों से इसका पता चलता है। इस अवशोषों में से एक संदेश में खासतौर पर यह उल्लेखनीय है जिसमें लिखा है, ‘जन्नत तक जिसके न्याय के चर्चे हैं, ऐसे महान शासक बाबर के आदेश पर दयालु मीरबाकी ने फरिश्तों बात मानकर, इस जगह को मुकम्मल रूप दिया।’
हालांकि यह भी माना जाता है कि अकबर और जाहगीर के शासनकाल में हिंदुओं को यह भूमि चबूतरे के रूप में सौंप दिया था परंतु क्रूर शासक औरंगजेब ने अपने पूर्वज बाबर के पथ पर चलते हुए भव्य मस्जिद का निर्माण कराया था जिसका नाम बाबरी मस्जिद रखा।
1526 में बाबर का अयोध्या के दौरे के दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। ऐसा माना जाता है कि यह मस्जिद उसी जगह बनी है जहां श्रीराम का जन्म हुआ था। बाबर के सम्मान में सूबेदार मीर बाकी ने इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा।
बता दें कि यह वह दौर था जब मुगल शासन पूरे देश में पैठ जमा रहे थे। ऐसे में हिंदू समुदाय के लोग मुगलों और नवाबों के शासन के दौरान 1528 से 1853 तक इस संबंधित मामले में हिंदू मुखर होकर सामने नहीं आ पाए। वहीं अंग्रेजों का शासनकाल आने पर 19वीं सदी में मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने लगा और अंग्रेजी हुकूमत पूरी तरह से प्रभावी हो चुकी थी।
ऐसे में हिंदुओं ने यह मामला इस दौर में उठाना शुरू किया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। जिसके बाद से रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू हो गई थी।
वर्ष 1528 में मुगलबादशाह बाबर के सुबेदार मीरबाकी ने विवादित स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसको लेकर हिंदू समुदाय ने दावा किया कि यह स्थान उनके आराध्य प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि है और यहां एक प्राचीन मंदिर था। वहीं हिंदू समुदाय ने आगे कहा कि मस्जिद के तीनों गुंबदों में से बीच वाले गुंबद के नीचे राम जन्मभूमि के अवशेष हैं पर उस समय यह बात मुखर रूप से बाहर नहीं आ सकी क्योंकि उस समय मुगलिया शासन था ऐसे में इसे पूरी तरह से दबा दिया गया था।
औपनिवेशिक काल से भारत के आजाद होने के बाद वर्ष 1949 में इस मुद्दे पर एक बार फिर से विवाद शुरू हो गया। साल 1949 में दिसंबर 23 को भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गई। ऐसे में हिंदू पक्ष ने कहा था कि भगवान राम अपने जन्मस्थान पर प्रकट हुए हैं वहीं मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इस मूर्ति को चोरी-छिपे यहां स्थापित किया गया है।
समस्या बढ़ते देख उस समय की यूपी सरकार ने मूर्तियों को परिसर से निकालने का आदेश दिया। परंतु फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं को भड़कने के संदेह के कारण इस आदेश को पूरा करने में सफल नहीं रहे। ऐसे में विवादित ढांचे को घेर कर ताला जड़ दिया गया।
इसके बाद वर्ष 1950 में फैजाबाद कोर्ट में हिंदू पक्ष की तरफ से दो अर्जी दाखिल की गई। जिसमें से एक में रामलला की पूजा कि बात की गई तो दूसरे अर्जी में विवादित ढांचे में राम लला की मूर्ति को स्तापित करने की इजाजत मांगी। इसी के साथ साल 1959 में निर्मोही अखाड़े ने एक तीसरी अर्जी दाखिल कर दी।
वहीं दो वर्ष के बाद या साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल करके विवादित स्थान से पोजेशन और मूर्तियों को हटाने की मांग की।
25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने अपने रथ यात्रा का प्रारंभ सोमनाथ मंदिर से शुरू किया। यह एक प्रकार की धार्मिक यात्रा थी जिसका आयोजन भारतीय जनता पार्टी और उसके हिंदू राष्ट्रवादी सहयोगियों द्वारा किया गया था। इस यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और धार दे दिया। बता दें कि इस समय देश की राजनीति बहुत तेजी से परिवर्तित हो रही थी। ऐसे में आडवाणी गिरफ्तार हो गए। इस गिरफ्तारी के साथ केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी हुआ। भाजपा के समर्थन से बनी जनता दल की सरकार गिर गई। कांग्रेस के समर्थन से उस समय चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। लेकिन ये सरकार भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी। ऐसे में देश में नए सिरे से चुनाव हुए और एक बार फिर केंद्र में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई। इन सब के बीच आई वो ऐतिहासिक तारीख जिसका बयान किए बिना ये किस्सा पूरा नहीं हो सकता है।
वह तारीख थी 6 दिसंबर 1992, इसी दिन अयोध्या पहुंचे हजारों की संख्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। इसी के साथ इसकी जगह इसी दिन शाम को कारसेवकों ने अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। केंद्र में स्थित तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने राज्य की कल्याण सिंह सरकार सहित अन्य राज्यों में, सत्ता पर आसीन भाजपा सरकारों को भी सस्पेंड कर दिया।
इसी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा को देखा गया, जिसमें अनेक लोग मौत के घाट उतर गए। वहीं अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में भाजपा के कई नेताओं समेत हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया। इसके साथ ही रामकाज से संबंधित कानूनी लड़ाई में मुकदमों की संख्या में और अधिक इजाफा हुआ।
बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के दो दिन बाद ही यानी 8 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया था। वहीं वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में यह गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम को भोग की अनुमति प्रदान की जाए। ऐसे में करीब 25 दिनों के बाद 1 जनवरी 1993 को न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी। 7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया।
साल 2002 में हिंदू कार्यकर्ता को लेकर जा रही ट्रेन में गोधरा नामक स्थान पर आग लगा दी गई थी, जिसके कारण 58 लोगों की आसामयिक मृत्यु हो गई थी। इस घटना के बाद गुजरात में बड़े स्तर पर दंगे और आगजनी हुई और लगभग 2000 से ज्यादा लोग इन घटनाओं में मारे गए। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री पर पर नरेंद्र मोदी आसीन थे जो कि वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री हैं और आगामी 22 जनवरी 2024 को उनके ही हाथों श्रीराम प्रभु का अयोध्या धाम में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रहा है।
इस हत्याकांड के लगभग 1 साल के बाद, हाईकोर्ट ने 2003 में विवादित जगह की खुदाई करवाई। ये जानने के लिए कि मंदिर और मस्जिद के दावों की सच्चाई क्या है। खुदाई में मिले सबूतों की जांच के बाद पता चला कि मस्जिद वाली जगह पर कभी हिंदू मंदिर हुआ करता था।
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था। जिसमें राम लला विराजमान थे वह हिस्सा हिंदू महासभा को दे दिया गया। वहीं दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को तो तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया गया।
इस फैसले को करते हुए हाई कोर्ट ने अपने फैसले में पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को आधार माना था जिसमें साफ कहा गया था कि खुदाई के दौरान विवादित स्थल पर मंदिर के प्रमाण मिले थे। इसके अलावा इस फैसले में भगवान राम के जन्म के होने की मान्यता को भी शामिल किया गया था। हालांकि कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि साढ़े चार सौ साल से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की भी अनदेखी नहीं किया जा सकता है।
ऐसे में एक बार फिर 30 सितंबर 2010 को संबंधित पक्ष(हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ, दिसंबर में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी।
नवंबर 9, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के बेंच ने एकसाथ रामलला के पक्ष में अपना आदेश दिया जिसमें निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया। इसी के साथ 2.77 एकड़ की विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को देते हुए राज्य सरकार से मुस्लिम पक्ष द्वारा मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर देने की बात कही। जिसे कुछ समय बाद ही उत्तर प्रदेस राज्य सरकार द्वारा पूरा कर दिया गया।
इस आदेश के बाद मार्च 25, 2020 में लगभग 28 वर्षों के बाद रामलला टेंट से निकलकर फाइवर के मंदिर में शिफ्ट हो गए।
अध्यक्ष के रूप में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रहे वहीं अन्य प्रमुख जज के नाम हैं- जस्टिस एएस बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे।
इसी के साथ दशकों से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई। अब बारी थी निर्माण की तो 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। वहीं छह महीने बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए और अपने हाथों से उन्होंने ये आधारशिला की नींव रखी।
अब 22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है जिसके बाद मंदिर लोगों के लिए खुल जाएगा। इस प्राण प्रतिष्ठा को लेकर लगभग सभी भारतवासी खुश हैं और इस अलौकिक दिन के लिए अपने सुविधानुसार खुशियां मनाने के कार्यक्रम बना रहे हैं।
This post is written by Abhinav Tiwari…
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