कानपुरः एक तरफ विजयदशमी के मौके पर देशभर में रावण के पुतला का दहन किया जाएगा। वहीं कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां रावण की पूजा आराधना कर अपनी मनोकामना मांगी जाती है। आज हम आपको कुछ इसी तरह की परंपरा वाली जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां लोग लंकेश्वर की पूजा आराधना कर अपना मनोरथ मांगते हैं। विजयदशमी के त्यौहार को बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। कानपुर के शिवाला में स्थित दशानन मंदिर में दशहरे के दिन सुबह से भक्त रावण की पूजा करने के लिए पहुंचते हैं। ये मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और खास बात ये है कि इस मंदिर को साल में सिर्फ एक ही बार विजयदशमी के दिन खोला जाता है। दशानन मंदिर के पुरोहित राम बाजपेयी ने बताया कि हम दशहरा के दिन इस मंदिर को खोलते हैं और दशहरा के दिन रावण की पूजा करते हैं और फिर शाम को पुतला जलाने के बाद इस मंदिर को बंद कर दिया जाता हैं। ये केवल दशहरे के दिन ही खुलता है. उन्होंने बताया कि हम लोग रावण की विद्वता की पूजा करते हैं। उन्होंने कहा कि रावण जैसा विद्वान, ज्ञानी, शक्तिशाली, बलशाली कोई नहीं था। रावण में एक कमी थी अहंकार और उसी का पुतला जलाते हैं। शाम को रावण का पुतला जलाकर अहंकार नष्ट करते हैं।
शक्ति के प्रतीक के रूप में होती है रावण की पूजा
रावण के उपासक यहां सुबह से पहुंचकर पूजा आराधना करने में लग जाते हैं। दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है। विजयदशमी के दिन सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खोले गए और रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया गया। इसके बाद आरती हुई। इस मंदिर की स्थापना सन 1890 में गुरु प्रसाद शुक्ल ने की थी।
कानपुर से राजन साहू की रिपोर्ट