हमेशा से मुस्लिम यादव की राजनीति करने वाली पार्टी सपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव से पहले PDA की बात सामने रखी तो ये नया तरीका लगा। पर आम चुनाव 2024 के परिणाम आने के बाद अखिलेश का यह पैंटरा सटीक रहा। ऐसे में सपा सुप्रीमों ने एक बार फिर अपने फैंसले से चौकाने का काम किया है।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को यह उम्मीद थी की कोई नेता प्रतिपक्ष से पीडीए का नहीं होगा। पर अखिलेश ने सभी को अलग करते हुए ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया। वहीं अखिलेश ने ऐसे ही किसी ब्राह्मण चेहरे को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष नहीं बना दिया। असल में इसके पीछे बहुत बड़ा राज छिपा है और वह राज है 2027 में होने वाला यूपी में विधानसभा चुनाव।
इसी के साथ उन्होंने विधानमंडल के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष, मुख्य सचेतक, उप-सचेतक और अधिष्ठाता मंडल का भी ऐलान किया है। इसमें अखिलेश ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) के फार्मूले को ही अपनाया है।
बता दें कि विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। विधानसभा में मुस्लिम समुदाय के कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक का कार्यभार सौंपा है। महबूब अली को अधिष्ठाता मंडल में नियुक्ति मिली है। उप मुख्य सचेतक पद पर कुर्मी समाज के बड़े चेहरे डॉ. आरके वर्मा को कार्यभार सौंपा गया है।
दरअसल, अखिलेश का यह पैंतरा केवल 10 विधानसभा सीटों तक ही सीमित नहीं हैं। वे इससे भी ज्यादा दूर यानी 2027 के विधानसभा चुनाव को देख रहे हैं। जिसका संकेत वे साफ तौर पर दे चुके हैं। यादव से विधान परिषद और विधानसभा में मनोनित करने के लिए मुस्लिम-यादव के साथ ही PDA और अगड़ा की राजनीति को अपना लिया है।
उल्लेखननीय है कि अयोध्या की मिल्कीपुर, अंबेडकरनगर की कटेहरी, प्रयागराज की फूलपुर विधानसभा सीट, मिर्जापुर का मझवां, अलीगढ़ की खैर, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, गाजियाबाद की गाजियाबाद सदर, मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर उपचुनाव होने वाला है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अखिलेश ने जो पैंतरा अपनाया हौ उससे सपा को 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में फायदा मिल सकता है। इसके चांसेज ज्यादा हैं कि कुर्मी और ब्राम्हण को वोट बैंक, सपा के लिए शिफ्ट हो जाएं।
यूपी में 115 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर ब्राह्मण वोटरों का अच्छा खासा प्रभाव है। 14 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण वोट वाले 12 जिले हैं। इनमें बलरामपुर, बस्ती, संत कबीरनगर, महराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज भी शामिल है। यही कारण है कि सभी पार्टियों ने इस वर्ग के नेताओं को तवज्जो दिया है। स्पष्ट कर दें कि यूपी के 21 में से 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे हैं।
1993 में बनी सपा के पास विधानसभा में 7 बार नेता प्रतिपक्ष चुनने का मौका रहा। 2 बार मुलायम सिंह यादव, एक-एक बार धनीराम वर्मा, आजम खान, शिवपाल सिंह, रामगोविंद चौधरी और अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। मतलब 4 बार मुलायम परिवार ने नेता प्रतिपक्ष के पद पर आसीन रहे हैं। ऐसे में पार्टी के इतिहास में पहली बार किसी अगड़े को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का ओहदा सपा ने सौंपा है।