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VNS NEWS: संस्कृत विश्वविद्यालय में शुरू होगा ‘अक्षर पुरुषोत्तम दर्शनम’ का अध्ययन

वाराणसी स्थित सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में अब ‘अक्षर पुरुषोत्तम दर्शनम’ का पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा। यह कोर्स स्वामी नारायण संप्रदाय और विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास से तैयार किया गया है। इस पहल का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देना और इसे व्यापक स्तर पर प्रचारित करना है।

स्वामी भद्रेश दास का विश्वविद्यालय दौरा

स्वामी नारायण संप्रदाय के श्रीस्वामीनारायण भाष्य के प्रतिष्ठित संत स्वामी भद्रेश दास प्रणीत ने विश्वविद्यालय का दौरा किया और कुलपति बिहारी लाल शर्मा से मुलाकात की। कुलपति ने इस अवसर को विश्वविद्यालय और संप्रदाय के बीच नए युग की शुरुआत बताया।

ज्ञान को सर्वसुलभ बनाना मुख्य उद्देश्य

कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि स्वामी नारायण संप्रदाय का मुख्य लक्ष्य भारतीय शास्त्रों और विद्याओं में निहित गूढ़ ज्ञान को आमजन तक पहुंचाना है। इसी उद्देश्य से ‘अक्षर पुरुषोत्तम दर्शनम’ पाठ्यक्रम तैयार किया गया है, जिसे अब विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा।

वैश्विक स्तर पर शिक्षा केंद्रों की स्थापना

स्वामी नारायण संप्रदाय ने दुनिया भर में अपने अनुयायियों के लिए शैक्षिक केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया है। इन केंद्रों को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त होगी, जिससे विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

234 वर्षों से संस्कृत और भारतीय परंपरा का संरक्षण

स्वामी भद्रेश दास ने विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्थान 234 वर्षों से भारतीय संस्कृति, परंपराओं और संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर का गहन निरीक्षण किया और कहा कि यह स्थान ऋषि तुल्य आचार्यों की तपस्थली है। यहां संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों में अनमोल ज्ञान का भंडार है।

यज्ञशाला से सकारात्मक ऊर्जा का संचार

स्वामी भद्रेश दास ने विश्वविद्यालय की यज्ञशाला का भी अवलोकन किया, जहां निरंतर महायज्ञ होते रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस पवित्र स्थान से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार में सहायक है।

संस्कृत शिक्षा में नवाचार की पहल

सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और स्वामी नारायण संप्रदाय की इस साझेदारी से संस्कृत शिक्षा में नवाचार होगा। इस नई पहल के माध्यम से भारतीय शास्त्रों को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ाया जाएगा और इसे वैश्विक स्तर पर प्रसारित किया जाएगा।

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