आसन्न संसदीय चुनाव को लेकर देश के सर्वाधिक अहम् माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों के जीत के लक्ष्य के साथ धरातल पर उतरी भाजपा को इस बार अपना हर एक कदम फूंक-फूंककर चलने को मजबूर होना पड़ रहा है। ये इस बात से स्पष्ट होता है कि साल 2019 तक सपा की गढ़ कहीं जाने वाली फिरोजाबाद सीट पर अब तक वो अपना प्रत्याशी भी नहीं घोषित नहीं की है।
यही कारण है कि जातीय समीकरण पर चुनावी जुगत भिड़ा रही सत्तासीन भाजपा इस सीट पर अक्षय यादव के खिलाफ किसी यादव या लोधी समाज के नेता पर दांव लगा सकती है। समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी में मुलायम सिंह की विरासत सहेजने के साथ ही पिछले चुनाव में गंवाई फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर वापसी के लिए सपा की छटपटाहट ने भगवा खेमे की जद्दोजद के साथ-साथ टेंशन को बढ़ा दिया है।
यही वजह है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी तक फिरोजाबाद सीट पर प्रत्याशी तय नहीं कर पाया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के अहम् माने जाने वाले इस सीट से समाजवादी पार्टी ने साल 2014 में जीते और सैफई परिवार की दूसरी पीढ़ी के नेता अक्षय यादव को टिकट दिया था तो इससे अखिलेश से नाराज होकर खुद उनके चाचा शिवपाल खुद की पार्टी बनाकर चुनावी मैदान का रुख कर लिया था।
इस बार सपा शासन में पर्यटन मंत्री को मैनपुरी से प्रत्याशी बनाने के बाद पार्टी का किसी पिछड़े पर दांव लगाने का विचार स्पष्ट हो गया है। यादव और लोधी के साथ अन्य विकल्पों पर भी मंथन चल रहा है। वैसे तो कुल मिलाकर स्थिति ये है और इसे भारतीय जनता पार्टी के नीति नीयनताओं की मजबूरी कहिये कि फिरोजाबाद और मैनपुरी लोकसभा सीट पर चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया 12 अप्रैल से शुरू होगी, लेकिन भाजपा अब तक प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है।
मैनपुरी की तरह फिरोजाबाद भी सपा का गढ़ है। 2009 में अखिलेश यादव ने यहां से चुनाव लड़ा। उन्होंने सीट छोड़ी तो उप चुनाव में अपना कब्जा बनाए रखने के लिए सैफई परिवार ने पहली बार डिंपल यादव के मैदान में उतार दिया। ये अलग बात है कि कांग्रेस के राजबब्बर के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2014 के चुनाव में सैफई परिवार ने अक्षय यादव को लांच किया गया। उनकी जीत के लिए सरकार ने पहले से तैयारी की। इसका परिणाम अक्षय की जीत के रूप में सामने आया।
अब जानते हैं यहाँ से सपा के चुनावी इतिहास पर तो 2019 में पार्टी को यहां से मिली थी हार। 2019 के चुनाव में जब सैफई परिवार बिखरा हुआ था तब भी फिरोजाबाद सीट पूरे परिवार के लिए अहम रही। सपा ने अक्षय यादव को दूसरी बार चुनाव लड़ाया तो उन्हें पटकनी देने के लिए अपनी अलग पार्टी बना चुके शिवपाल यादव ने भी यहीं से चुनाव लड़ा।
इसका नतीजा यह हुआ कि चाचा-भतीजे दोनों हार गए और कमजोर माने जा रहे भाजपा के डा. चंद्रसेन जादौन संसद पहुंच गए। इस बार सपा इस सीट पर वापसी के लिए पूरी दम लगाए हुए है। अक्षय यादव की जीत को अपनी साख का प्रश्न बना लिया है। इस चुनाव का परिणाम उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। चाचा शिवपाल के साथ आने से अक्षय की स्थिति पहले से काफी मजबूत मानी जा रही है। ऐसे में भाजपा इस बार कोई चांस लेना नहीं चाहती। इसलिए प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि, राजनीतिक पकड़ और जातीय आंकड़ों का भी ध्यान रखा जा रहा है।
लोधी या यादव समाज से प्रत्याशी बना सकती है भाजपा
भाजपा के साथ ही अन्य दलों के नेताओं का मानना है कि मैनपुरी से पर्यटन मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह को प्रत्याशी बनाने के बाद भाजपा फिरोजाबाद से किसी यादव या लोधी को प्रत्याशी बना सकती है। इसलिए सिरसागंज के पूर्व विधायक हरिओम यादव और पूर्व जिलाध्यक्ष मानवेंद्र प्रताप सिंह लोधी की दावेदार मजबूत मानी जा रही है।
राज्य सभा सदस्य अनिल जैन और रामकैलाश यादव के नाम भी चर्चा में हैं। वहीं, मंत्री की दावेदारी खत्म होने से टिकट मांग रहे भाजपा के अन्य नेताओं की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। और ऐसे में जब कि 2024 के संसदीय चुनाव के कुछ ही दिन बचे हैं पार्टी के जमीनी हालात काफी बदले हुए हैं। पिछले साल सपा संस्थापक मुलायम सिंह के निधन के पहले तक भतीजे अखिलेश के खिलाफ ताल ठोंक रहे शिवपाल अब समाजवादी पार्टी की कमान थामे हुए हैं और पार्टी की जीत की रणनीति तय करने में जुटे हुए हैं।