वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अनोखी परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। हर साल यहां होलिका दहन के दौरान अलग-अलग थीम पर आयोजन किए जाते हैं, लेकिन इस बार श्मशान घाट के दृश्य को दर्शाने वाला होलिका दहन चर्चा का विषय बन गया है।
मसाने की होली: एक अनोखी परंपरा
काशी की मणिकर्णिका घाट पर होने वाली चिता भस्म की होली को लेकर इस बार विवाद छिड़ गया है। यह अनोखी परंपरा वर्षों से चली आ रही है, जहां होलिका दहन के बाद चिता की भस्म से होली खेली जाती है। इसे मसाने की होली कहा जाता है, जो काशी की विशिष्ट परंपराओं में से एक है।
पांडेयपुर में होलिका दहन में श्मशान घाट का दृश्य
इस बार वाराणसी के पांडेयपुर क्षेत्र में आयोजित होलिका दहन में श्मशान घाट का दृश्य बनाया गया, जिसमें जलती चिताओं, अर्थी और श्मशान घाट का चित्रण किया गया। यह दृश्य स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
विवाद के बीच आयोजकों का बयान
मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली के आयोजन पर विवाद के बीच आयोजकों ने कहा है कि यदि वहां चिता भस्म की होली खेलने की अनुमति नहीं मिली, तो वे इसे किसी अन्य स्थान पर मनाएंगे। आयोजकों का कहना है कि यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे हर हाल में जारी रखा जाएगा।
धर्म नगरी काशी की विशेष होली
काशी की चिता भस्म की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जिस तरह मथुरा में लट्ठमार होली खेली जाती है, उसी तरह वाराणसी में मसाने की होली मनाई जाती है। इसमें लोग भस्म और गुलाल उड़ाकर होली का आनंद लेते हैं।
विश्वभर से आते हैं श्रद्धालु
काशी की मसाने की होली को देखने और इसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यह आयोजन जीवन और मृत्यु के चक्र को स्वीकार करने का प्रतीक माना जाता है। यहां मनाई जाने वाली यह अनूठी होली काशी की अद्वितीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है।