मैनपुरी को सपा का गढ़ भी कहा जाता है जहां मुलायम सिंह से लेकर डिंपल यादव तक, एक ही परिवार का स्वामित्व और एकाधिकार रहा है। जिसके चलते लोकसभा चुनाव 2019 हो या उससे पहले के चुनाव हो भाजपा और बसपा जैसी पार्टियों ने बेशक कई तिकड़म बाजी लगाई पर कोई असर नहीं हुआ। आइए इस पोस्ट के माध्यम इस कारण के बारे में जानते हैं…
सपा पार्टी को बनाने वाले नेता मुलायम सिंह का जन्म बेशक उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ हो, पर उनकी कर्मभूमि के रूप में मैनपुरी मध्य रही है और ये बात वहां की जनता को भी पता है। वहीं उन्हें जब भी लगा की मैनपुरी के इस संसदीय सीट पर खतरा मंडरा रहा है वे स्वयं इस सीट से प्रत्याशी के रूप में उतरे और भारी मतों से विजयी भी हुए। मुलायम को इस सीट से इतना लगाव था कि उन्होंने अपने खुद के भतीजे और पौत्र के रिकॉर्ड जीत के बाद भी मैनपुरी से खुद चुनाव लड़ा था।
वर्ष 2004 में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी लोकसभा संसदीय सीट पर विजयी होकर इस सीट को छोड़ दिया था। फिर उन्होंने उपचुनाव में अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव को यहां से प्रत्याशी के रूप में मैदान पर उतार दिया। वहीं इस चुनाव में धर्मेंद्र यादव ने 3,48,999 मत प्राप्त किए और बसपा के अशोक शाक्य को 1,79,713 मतों से हरा दिया। वर्ष 2009 में जब आम-चुनाव हुआ तो प्रदेश में बसपा की सरकार थी।
उस समय सपा के मुखिया मुलायम सिंह को यह पता चला कि मैनपुरी में बसपा कुछ झोल कर सकती है। ऐसे स्थिति में मुलायम सिंह 2009 के आम चुनाव में फिर से प्रत्याशी के रूप में मैदान में कूद गए और उन्होंने बसपा के विनय शाक्य को पराजित करके 1,73,069 मतों से अपने किले को अपने शासन में कर लिया।
वर्ष 2014 के आम चुनाव में जीत के बाद मुलायम सिंह ने फिर से मैनपुरी सीट से अपना हाथ उठा लिया। फिर उन्होंने अपने पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव को इस संसदीय सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया। तेज प्रताप यादव ने इस 2014 के आम चुनाव में रिकॉर्ड 6,53,786 मत मिले। इस चुनाव में तेज प्रताप ने मोदी की आंधी के बावजूद भाजपा के प्रेम सिंह को 3,21,149 मतों से हरा दिया था। वर्ष 2019 में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। ऐसे में उन्होंने 2019 के चुनाव में तेज प्रताप की टिकट कटवा दी और स्वयं प्रत्याशी बन गए। यह चुनाव काफी रोमांचकारी रहा था। जिसमें मुलायम सिंह यादव को 94,389 मतों से जीत मिली थी।