महाकुम्भ 2025 में निर्वाणी अखाड़ा विशेष महत्व रखता है, जहाँ साधुओं के चार प्रमुख विभाग होते हैं: हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया और सागरिया। वैष्णव संप्रदाय के तहत निर्वाणी अखाड़ा सांस्कृतिक और भक्ति के संरक्षण में सबसे अग्रणी माना जाता है। अयोध्या में हनुमानगढ़ी पर अधिकार होने की वजह से इसे सबसे ताकतवर अखाड़ा समझा जाता है। इसके लिए साधुओं को महंत की पदवी प्राप्त करने हेतु तीन साल की सेवा के बाद ‘मुरेटिया’ का दर्जा दिया जाता है।
पंचायती नया उदासीन अखाड़ा संस्कृत, संस्कृति, ज्ञान, भक्ति और नैतिकता के प्रचार का एक प्रमुख केंद्र है। इसकी स्थापना 1902 में हरिद्वार के कनखल में हुई थी। इस अखाड़े में पंच प्रेसीडेंट का सर्वोच्च स्थान है, और पूर्ण निर्णय उन्हीं की सहमति से होते हैं। उदासी परंपरा का यह अखाड़ा अपनी परंपराओं के साथ नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए संकल्पित है।
देश भर में इसके सात सौ से अधिक डेरे हैं और 1.50 लाख से अधिक संत इससे जुड़े हुए हैं। संस्कृत महाविद्यालय और धर्म प्रचार केंद्रों का संचालन इसके अंतर्गत होता है। अखाड़े के सचिव जगतार मुनि बताते हैं कि ये संस्थान नैतिक मूल्यों के संरक्षण के साथ राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने पर भी विशेष ध्यान देते हैं।
महाकुम्भ के दौरान हो या शाही स्नान या अन्य महत्वपूर्ण आयोजन, इन अखाड़ों की उपस्थिति प्रमुख रहती है। संगत साहिब की सवारी अखाड़ों की शोभा बढ़ाती है। उदासीन संप्रदाय के संत पंचतत्व की पूजा करते हैं, और इनके द्वारा संचालित आश्रम संस्कृत और वेद शिक्षा में पूरी तरह समर्पित रहते हैं।
इन अखाड़ों का उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में व्यापक प्रभाव है, जहाँ ये धार्मिक और शैक्षिक गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं। महाकुम्भ 2025 में इन अखाड़ों की परंपराएं और संस्कार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।