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Mahakumbh Prayagraj: महाकुंभ में अग्नि तपस्या की अनोखी परंपरा, 18 वर्षों तक आग के घेरे में साधना

प्रयागराज महाकुंभ में वैष्णव साधुओं द्वारा एक दुर्लभ तपस्या का प्रारंभ हुआ है, जिसमें साधक जलती आग के बीच बैठकर आध्यात्मिक साधना करते हैं। बसंत पंचमी के पावन दिन से शुरू हुई इस कठोर साधना को "पंच धूनी तपस्या" या "अग्नि स्नान साधना" कहा जाता है।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
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Mahakumbh Prayagraj: महाकुंभ में अग्नि तपस्या की अनोखी परंपरा, 18 वर्षों तक आग के घेरे में साधना

प्रयागराज महाकुंभ में वैष्णव साधुओं द्वारा एक दुर्लभ तपस्या का प्रारंभ हुआ है, जिसमें साधक जलती आग के बीच बैठकर आध्यात्मिक साधना करते हैं। बसंत पंचमी के पावन दिन से शुरू हुई इस कठोर साधना को “पंच धूनी तपस्या” या “अग्नि स्नान साधना” कहा जाता है। इस दौरान साधु अपने चारों ओर अग्नि के घेरे बनाकर उनके मध्य ध्यानमग्न होते हैं, जिससे उनकी सहनशक्ति और आध्यात्मिक प्रतिबद्धता की परीक्षा होती है।

तपस्वी नगर में जागी अग्नि की ज्वाला

महाकुंभ का तपस्वी नगर साधनाओं और तपस्याओं का केंद्र बना हुआ है। यहाँ बसंत पंचमी से प्रारंभ हुई इस विशेष साधना को देखने के लिए श्रद्धालुओं में उत्सुकता है। पंच धूनी तपस्या में साधक इतनी तीव्र आँच के बीच बैठते हैं कि सामान्य व्यक्ति के लिए उसके निकट जाना भी दुष्कर होता है। यह परंपरा वैष्णव अखाड़ों के “खालसा” संप्रदाय से जुड़ी है, जिसमें केवल वही साधु भाग ले सकते हैं जो दीर्घकालीन त्याग और अनुशासन से गुजर चुके हों।

18 वर्षों की कठोर साधना

श्री दिगंबर अनी अखाड़े के महंत राघव दास के अनुसार, यह तपस्या 18 वर्षों तक चलती है, जिसमें प्रतिवर्ष 5 महीने अग्नि के बीच बिताने होते हैं। इस अवधि में साधु अन्न-जल ग्रहण नहीं करते और निरंतर साधना में लीन रहते हैं। सफलता पर उन्हें “वैरागी” की उपाधि मिलती है। इसके पूर्व साधक को “जल तपस्या” (बहते पानी में खड़े होकर 108 घड़ों से स्नान) और “वर्षा तपस्या” (मानसून में खुले आकाश के नीचे रहकर) जैसी कठिन परीक्षाएँ भी देनी होती हैं।

साधना की विशिष्टताएँ

इस तपस्या में काले तिल (10 किग्रा), चावल (5 किग्रा), और जौ (2.5 किग्रा) जैसी सामग्री का उपयोग होता है। साधु नग्न अवस्था में रहते हैं और प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करते हुए भी साधना जारी रखते हैं। उदाहरण के लिए, ओलावृष्टि होने पर वे केवल लौकी की टोपी धारण कर सकते हैं, शेष शरीर को प्रकृति के समर्पित कर देते हैं।

छह साधुओं ने आरंभ की तपस्या

इस वर्ष बजरंगदास, रामजीदास, गंगादास, बालकदास, और मुकेशदास सहित छह साधुओं ने इस अग्नि तपस्या का शुभारंभ किया है। महंत बालकदास के अनुसार, यह साधना अखाड़े की दीक्षा का अभिन्न हिस्सा है, जो साधक के मनोबल और शारीरिक सामर्थ्य को परखती है। उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया न केवल आध्यात्मिक उन्नति बल्कि आत्मनियंत्रण का भी मार्ग है। इस प्रकार, महाकुंभ में यह अग्नि तपस्या न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि मानवीय सीमाओं को चुनौती देने वाली एक जीवंत परंपरा का प्रतीक बनी हुई है।

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