महाकुंभ मेले में अखाड़ों की विशिष्ट परंपराएं अत्यंत महत्व रखती हैं। इनमें पेशवाई और शाही स्नान की परंपरा का श्रेय महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों को जाता है। इस बात का उल्लेख श्रीमहंत लालपुरी की पुस्तक ”दशनाम नागा संन्यासी एवं श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी” में गहराई से किया गया है।
महानिर्वाणी अखाड़ा: पेशवाई का श्रीगणेश
महाकुंभ में अखाड़ों की धर्म ध्वजा स्थापना और शाही स्नान की शुरुआत की कहानी अनोखी है। पहली बार, महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने मकर संक्रांति के अवसर पर शाही स्नान की शुरुआत की। इस दिन वे हथियारों से सुसज्जित होकर स्नान के लिए निकले, जिसने इस सांस्कृतिक-आध्यात्मिक उत्सव को विश्व स्तरीय आकर्षण बना दिया।
हरिहर मिलन और शाही स्नान
महंत लालपुरी के उल्लेख के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत कपिल मुनि और भगवान शिव के मिलन के जश्न से हुई। हरिहर की पावन ध्वनि के साथ ही अखाड़े के संतों ने अग्निहोत्र और हर्रास पूजा की। महानिर्वाणी अखाड़े ने इस प्रकार प्रयागराज के कुंभ में गौरवपूर्ण प्रवेश किया।
कुंभ में प्रथम शाही स्नान
महानिर्वाणी अखाड़े के संस्थापक संतों और नागाओं के नेतृत्व में शाही स्नान का यह सिलसिला शुरू हुआ। महंत रवींद्रपुरी बताते हैं कि इस दिन नागा संन्यासियों ने पर्व-ध्वजा स्थापित कर हर्षोल्लास के साथ स्नान किया। इसके बाद अन्य संत और श्रद्धालु भी संगम में स्नान के लिए उमड़े। शाही स्नान की यह परंपरा आज भी जारी है, जहां महानिर्वाणी अखाड़ा सबसे पहले स्नान के लिए निकलता है।
अंतिम शाही स्नान: दशनामियों की सहभागिता
महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने मास पर्यंत वसंत पंचमी के दिन महाकुंभ का आखिरी स्नान संगम के तट पर किया। इस स्नान में दशनामी परंपरा के सभी संन्यासियों ने भाग लिया। इसके बाद, दूसरों अखाड़ों ने इसी परंपरा का अनुसरण करना शुरू किया। यह अनूठी परंपरा आज भी महाकुंभ में जारी है, जहां सुबह से शाम तक अखाड़े बारी-बारी से शाही स्नान करते हैं।